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________________ राजस्थान के जैन सन्त मुनि पद्मनन्दी परमानन्द जैन राजस्थान भारतीय जैन संस्कृति का प्राचीन समय थे। विशुद्ध सिद्धान्त रत्नाकर और प्रतिभा द्वारा प्रतिष्ठा मे केन्द्र रहा है। राजस्थान मे निमित अनेक गगनचुम्बी को प्राप्त हुए थे। उनके शुद्ध हृदय में अभेदभाव से विशाल एवं कलापूर्ण जिन मन्दिर उसकी शोभा को प्रालिङ्गन करती हुई ज्ञान रूपी हंसी प्रानन्दपूर्वक क्रीड़ा दुगणित कर रहे है। यहां से सहस्रो जिन मूर्तियो का करती है । स्यावाद सिन्धुरूप प्रमत के वर्धक थे। जिन्होंने निर्माण और उनका प्रतिष्ठादि कार्य सम्पन्न हुआ है। जिनदीक्षा धारण कर जिनवाणी और पृथ्वी को पवित्र अनेक महापुरुषो ने यहाँ जन्म लेकर राजस्थान की कीर्ति किया था। महाव्रती पुरन्दर तथा शान्ति से रागांकुर को दिगन्त व्यापी बनाने का यत्न किया है। यहाँ अनेक दग्ध करने वाले वे परमहस, निर्ग्रन्थ पुरुषार्थशाली, अशेषमुनि पुगव प्राचार्य, भट्टारक और विद्वान हुए है । जिन्होने शास्त्रज्ञ सर्वहित परायण मुनिश्रेष्ठ पपनन्दी जयबन्त रहे ।' जैन धर्म की पताका को उन्नत मे पूरा सहयोग प्रदान इन विशेषणो से पानन्दी की महत्ता का सहज ही बोष किया है। राजस्थान मे अनेक महानुभाव दीवान जैसे हो जाता है। इनकी जाति ब्राह्मण थी। एक बार प्रतिष्ठा राज्यकीय उच्चपदों पर प्रतिष्ठित रहे है। और राज्य- महोत्सव के समय व्यवस्थापक गृहस्थ की अविद्यमानता मे श्रेष्ठी तथा कोषाध्यक्ष भी रहे है। जिनमे से कुछ ने प्रभाचन्द्र ने उस उत्सव को पट्टाभिषेक का रूप देकर प्रात्म-साधना के साथ जनसाधारण की भलाई करने मे पद्मनन्दि को अपने पट्ट पर प्रतिष्ठित किया था। इनके अपने जीवन का उत्सर्ग कर दिया है। अनेक सन्तो और पट्ट पर प्रतिष्ठित होने का समय पट्टावली में सं० १३८५ विद्वानो के उपदेश से जनसाधारण में प्रात्म-हित की पौष शुक्ला सप्तमो बतलाया गया है। वे उस पट्ट पर भावना प्रकट हुई है। जन सन्तो ने विविध प्रकार के स० १४७३ तक तो पासीन रहे ही हैं, इसके अतिरिक्त साहित्य की सष्टि कर जैन सस्कृति का विस्तार किया है। और कितने समय तक रहे यह कुछ ज्ञात नही हुमा, भोर और साहित्य का सकलन तथा उसकी सुरक्षा का भी कार्य न यह ही ज्ञात हो सका कि उनका स्वर्गवास कहाँ और किया है। जैन विद्वानो ने बिना किसी स्वार्थ के सत् १. श्रीमत्प्रभाचन्द्रमुनीन्द्रपट्टे साहित्य की सृष्टि कर तथा सस्कृत-प्राकृत के प्रथों का शश्वत प्रतिष्ठा प्रतिभागरिष्टः । हिन्दी गद्य-पद्य में अनुवादित कर जन मानस में जैन धर्म विशुद्धसिद्धान्तरहस्यरत्न रत्नाकरा नदतु पयनन्दी ॥ के अहिंसा तत्त्व का प्रचार व प्रसार किया है। दूसरी -शुभन्द्र पट्टावली प्रोर अनेक जैन वीरो ने राज्य की सुरक्षा के हित प्रात्म- हंसो ज्ञान मरालिका सम समाश्लेष प्रभूतामृता । बलिदान किया है, और उसकी समृद्धि बढ़ाने में अपने नन्द क्रीडति मानसेति विशदे यस्या निशं सर्वतः । कर्तव्य का पालन किया है । प्राज इस छोटे से लेख द्वारा स्याद्वादामृत सिन्धु वर्धन विधी श्रीमत्प्रभेन्दु प्रभाः । राजस्थान के एक जनसेवी सन्त का संक्षिप्त परिचय दे पट्टे सूरि मतल्लिका सजयतात् श्री पद्मनन्दी मुनिः । रहा है जिसने अपने जीवन का समग्र बहुभाग जैन संस्कृति महावत पुरन्दरः प्रशमदग्घरोगांकरः। के साथ लोक में शिक्षा का प्रादर्श उपस्थित किया है और स्फुरत्परम पौरुषः स्थितिरशेष शास्त्रार्थ वित् । अपने विशुद्ध निर्मल पाचार द्वारा जनता में नैतिक बल यशोभर मदोहरी कृत समस्त विश्वम्भरः । का संचार किया है। परोपकृति तत्परो जयति पद्मनन्दीश्वरः। जैन सन्त पद्मनन्दो भट्रारक प्रभाचन्द के पट्टधर शिष्य -शुभचन्द्र पट्टावली।
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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