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'पनेकान्स' के लेखक
सुमेरचन्द्र दिवाकर-१४॥३३१, १४११६३, ७१९०, (मुनि श्री हिमाशु विजय-१६०५
६.६२, ६।१०४, ६।३०२, २२४१, ५२४०५, ५।२६४ (श्री) हीरक-६।२४५ ४।१७०,३१४८
हीराचन्द बोहरा बी. ए.-१३।१४२ सुमंगला प्रसाद शास्त्री-११३७८
(डा.) हीरालाल जैन एम. ए.-१३।१७५, १३३२५६, सुरेन्द्र-४।५३
११३१०५, १०१३४६, १०॥३६०, It, ८।१६३, (प.) सूरजचन्द्र-७१५८, २१३२८
८।२६, ८८६, ८।१२५, ७।१५०, ७.३०, ७५२, (बाब) सूरजभान वकील-३।२२१, ३।३८५, ३।३६९,
७.६२, ६।१८०, ६।६५, १५॥१८३, ३१६३५, ३।१०५, ३१५५६. २।३११, २।३३, २।१८७, २।२६६
३१४०६ २०१३७, २।३५६, २।४०८, २।४६३, २१६२३, हीरालाल पाडे-४।४४८ २०६४१, २१५२०, २१५७५
(पं.) हीरालाल शास्त्री-१६२५६, १९१९२, १४।२२१, (साध्वी) सघमित्रा–२१११४, १८:१६६, १७१११४ १४१५६, १४।२५२, १४१७७, १४।३१७, १४।२६६, (श्री) स्वतत्र-६।२२०
१४।११२, १४१२३५, १४११६८, १११४५, १४॥
१५६, १४॥१६३, १४१२३८, १४१२५३, १४०२०८, हजारीमल बांठिया-८३६
१४।२७४, १४१२२५, १३७८, १३.४०, १३।४३ हरदयाल एम. ए.-३१३६०
१३।१०, १३।६७, १३।२०४, १३।१८, १३।५१, हरिप्रसाद शर्मा 'अविकसित'-६।६३, ५।३०, २।१४५ १२।३६२, १२।३३०, ११॥३५१, ६१६६, ६/६७, हरिशंकर शर्मा-३१५१०
४।२५२, २०५४८ हरिसत्य भट्टाचार्य-३।४६७
हेमचन्द्र मोदी-३।२४३, ११५३६ हरीन्द्र भूषण-४।६७
हेमलता जैन-२२३८ (डा.) हरीश-१२१४३, १५॥१८०
(प्रो.) हेमुल्ट ग्लाजेनाय-८।८०
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'अनेकान्त' 8 मासिक : एक दृष्टि में
गोपीलाल 'प्रमर'
अनेकान्त का रहस्य
हारिक तत्वों को हमारी संस्कृति से रुखसत करने में 'मनेभारतीय संस्कृति का प्रमर सदेश देने वाली पत्रि. कान्त'ने सख्ती से काम लिया है; तकंसगत मोर प्रत्यक्षसिद्ध कामों में 'अनेकान्त' का स्थान उल्लेखनीय है। प्राज जब बातों को, किसी भी परम्परा के विरुद्ध पड़ने पर भी सस्कृति के क्षेत्र में युगान्तरकारी परिवर्तन हो रहे है तब साहस के साथ मजूर किया है। फलस्वरूप, 'भनेकान्त' भारतीयता के शाश्वत मूल्यों की सुरक्षा और संपोषण एक को जितनी प्रसिद्धि संस्कृति के संरक्षक और व्याख्याकार चुनौती बन गया है । इस चुनौती का मुकाबला 'पनेकान्त' के रूप मे मिली उससे भी अधिक प्रसिद्धि संशोधक पौर जैसी पत्रिकाएं बखूबी करती पायी हैं। खास बात ये है समालोचना के रूप में मिली। और यही 'अनेकान्त' की कि इस पत्रिका ने हमारी सांस्कृतिक धरोहर की सुरक्षा भनेकान्तता का रहस्य है। पौर संपोषण के साथ उसका परिष्कार भी किया है। 'अनेकान्त' की मापबीतीपरिस्थितियों के बदौलत मा धुसे मवैज्ञानिक और अव्याव- मंगजिन साइज की ॥ पृष्ठीय मासिकी भौर ४८