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________________ मुस्लिम युगीन मालवा का जैन पुरातत्त्व लेख मिलता है जो तारापुर तीर्थ निर्माण-काल पर प्रकाश निपुणः जिनाधीनः स्वांतः १६ स्वगुरुचरणाधनपर. । पुनीडालता है तथा जिससे यह प्रमाणित हो जाता है कि उप- भार्या मुक्तोनुभवतिगृह स्वाश्रयसुख ॥१॥ चिर नदतु ।। युक्त लेख से उत्पन्न भ्राति दूर हो जाती। पूरा लेख' सर्व शभ भवत् ॥श्रीरस्तु॥ निम्नानुसार है .-. इस युग में भी बड़े-बड़े पदो पर कुछ जैनी नियुक्त १॥५०॥ श्रीजिनाय नमः । जयति परमतत्वानन्द केली- थे। उनमे संग्रामसिंह सोनी, चादाशाह, जीवणशाह, पुजविलास - त्रिभुवनमहनीयः सत्वरूपविधिवास.-२ दलित- राज, मन्त्री मेघराज और जीवनराज आदि आदि । विषयदोपोरिक्तजन्मप्रयास' प्रभरनुपमधामावकृतः श्रीम- ममार्मासह सोनी के द्वारा मक्सी पाश्वनाथ तीर्थ का निर्माण पासः ॥१॥ सवत १५५१ वर्षे...शाके---(३) १४१६... हा, ऐसा उल्लेख मिलता है'। वैसाखमुदी षष्टी शुक्रवासरे पुनरवसुनक्षत्र (मालवीद्र) चन्देरी का चौबीसी जैन मन्दिर भी उल्लेखनीय है। सुलताण श्री ग्यासदीन विजय ४ राज्ये । तस्य पुत्र सुलताण इस मन्दिर का निर्माण विक्रम स० १८६३ अर्थात् सन् श्री नासिरमाही युवराज्ये । मन्त्रीवर माफरकमलिक श्री १८६३ मे हुआ था। और इसके बाद के भी अनेक उदापुजराज बाधव मुजराज सहित । श्रीमालजातीय बुहरा- हरण हमे मिल सकते है । गोत्र बुहरारणमल्ल भार्या रयणाये । पुत्र बुहग श्रीपारस या रयणाय । पुत्र बुहग थापारस चकि इस काल में निर्माण के स्थान पर तोड़-फोड भार्या उभय ६ कुलानन्ददायिकी सत्पुत्र रत्नगर्भा...त्पुत्र एव विघ्वस अधिक हना है। इसके प्रमाण यत्र-तत्र विखरे बहरा गोपाल । उभयकुलालंकरण । सुशी नाभार्या पूनी ७ पडे है तथा इतिहास भी इसका माक्षी है । अनेक देवलयों पत्र संग्राम जी जा बहरा मग्राम भायों करमाई। जो जा को मसलमान शासकों ने मस्जिद में परिवर्तित कर लिया भार्या जी वारे । प्रमुख म्बकुटुम्बयुनेन ॥ श्रीभिन्नमाला है और जिसके प्रमाण हम बराबर मिलते है। श्री गणेशवडगच्छे श्रीवादी देवमूरी मताने । स्वगुरु श्रीवीरदेवसूरीः। दन शर्मा 'इद्र' का कहना है, "अागरा की जामामस्जिद तत्प? श्री अमरप्रभमूरी तत्पट्टालकार विजयवता ६ जिसे "होशंगमाही मस्जिद" भी कहते है, एक जैन मन्दिर गच्छ नायक पूज्यश्री श्री कनकप्रभसूरीश्वराणाम । उप- तोडकर बनवाई गई। दम मस्जिद में उस समय का एक देशेन प्रगटप्रतापमल्लेन । परोपकारकरणचतुरेण १० शिलालेख भी है, जो फारसी भाषा का होने से ठीक-ठीक निजभुजोपाजितवित्तव्ययपुण्यकार्य स्वजन्म मफलीकरणेन। पढ़ा और ममझा नही जा सका।" उज्जैन की बिना गजराजेन्द्रमभा सशोभितेन । सज्जनजन ११ मानसराज- वीक की मस्जिद के विषय में श्री ब्रजकिशोर चतुर्वेदी का हसेन। श्री शत्रुजयादितीर्थावतारचतुष्टग पट्ट निर्माप- कथन है, "यह मस्जिद अनन्तपेठ में एक जैन मन्दिर को णेन श्री देवगुरु आत्मपालनतत्परेण । सर्व ॥१२॥ कार्य नोडकर सन १३६७ ई० में मालवे के मूबेदार दिलावर विदुरेण श्रीमालज्ञाति बुहराणाच विभूषणेन । सर्वदा श्री खान गौरी ने बनवाई थी।" ये तो साधारण से उदाजिनधर्म सत्कर्मकरण निर्दषणेन । श्रीमन् १३ मडपाचल हरण है। यदि केवल मन्दिर परिवर्तन के प्रकरण को निवासीय विजयवत् बुहरा श्रीगोपालेन । मडपपुर्यात् दक्षि- लेकर समस्त भारतवर्ष मे अनुसन्धान किया जाय तो हमे णदिगविभागे तलहट्या श्री नारापुरे स्वपुण्यार्थ मनोवाछित इस प्रकार के अनेक प्रमाण मिल सकते हैं। दायक सद्धर्म श्रीसपाव जिनेन्द्रस्य सर्वजन मजनिताल्हादः १. माडवगढ तीर्थ पृष्ठ २६ सुप्रसादः प्रादादः कारितः १५ सा गोपालः गीलाभरण R. Annual Report of the Archaeological विलसद्वृत्ति रमलो विनीतः प्रज्ञावान् विविधमुकृतारंभ ___Deptt Gwalior State for 1924-25. PP. 12 १. Parmar Inscriptions-in Dhar State 875. ३ मध्यभारत सदेश १५ मई १९५४ पृष्ठ ५ 1310 A. D. By C.B. Lele. पृष्ठ ८९-६० ४ मस्कृति केन्द्र उज्जयिनी वृष्ठ १४०
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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