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वीर सेवा - मन्दिर -- समन्तभद्राश्रम का मुखपत्र" अनेकान्त" इतिहासादि विषयक अनुसंधानात्मक ख्याति प्राप्त एक आदर्श पत्र है । इसमें समाज के अनेक विद्वानो और त्यागियों के विविध विषयक खोज पूर्ण लेख है जैनतर विद्वानो के भी विशिष्ट उपयोगी लेख है जो अब तक १॥ हजार से ऊपर पहुँच गये है।
इस पत्र के संस्थापक -- प्रवर्तक स्व० पडितवय्यं जुगल किशोर जी मुख्तार सरसावा निवासी थे वे ही इसके प्रमुख सम्पादक थे उनके सैकड़ो खोजपूर्ण लेखों ने और उनकी प्रतिभापूर्ण गहन सम्पादन कला ने इसको उच्चकोटि का पत्र बना दिया था। मुख्तार मा० पुत्र विहीन थे किन्तु यह उनका वास्तविक आत्मज - पुत्र था एक पुत्र की तरह ही उन्होने इसका लालन-पालन किया था । पत्र के नाम ( श्रनेकान्त ] के अनरूप निम्नाकित श्लोक M TTO में से कोई भी प्रत्येक धक के प्रारंभ में दिए जाते श्रा रहे है ।
१- परमागमस्य बीज निषिद्धास्यतपुर विधान सकलनयविलसिताना विरोधमथन नमाम्यनेकातम || पुरुषार्थ मिद्धघुपाय ( अमृतचन्द्रसूरि ) २ नीतिविषयी लोकव्यवहारवत्तंकः सम्यक् । परमागमस्य वीजं, भुवनेगुरुजनेातः ॥
वर्ष
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प्रारम्भ काल
१ १२ मासिक वि० स० १६८६ मगशिर
वि० सं० १९९५
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" अनेकान्त" एक आदर्श पत्र
पं० मिलापचन्द्र रतनलाल जैन कटारिया
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२।। )
६८८
१९९६ ३) ७६४
६३२
१६६८
४२६
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भाद्रपद २००० ४) ३५६
ताछ २००१
२२८
पोष २००२
४७२
मूल्य कुलपृष्ठ
४) ६७२
फागुण १६६७
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३ -- एकेनां कर्षन्ती, इलथयंती वस्तुत्वमितरेण । अन्तेन जयति जैनी, नीतिर्मयाननेषमिव गोपी ॥ - पुरुषार्थ सिदधुपाय विधेय वा चानुभयमुभय मिश्रमपि तद् विशेष: प्रत्येक नियम विषयश्चापरिमितः । सदान्योन्यापेक्षैः सकलभुवनज्येष्ठ गुरुणा, त्वया गीत तत्व बहुविवक्षेतरवशात् ॥
- ( स्वयंभू स्तोत्र )
४
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५- सर्वान्त-वत्तद्गुण मुख्यकल्प, सर्वन्ति शून्यं च मिथोऽनपेक्ष ।
सर्वापदामन्तकरं निरंत सर्वोदयं तीर्थमिदं तव ॥ ( युक्त्यनुशासन ) लोक मुख पृष्ठ पर के "जंनीनीति" लिए तथा पाचवा श्लोक मुख पृष्ठ कल्पनात्मक चित्र के लिए प्रयुक्त
( इनमें से तीसरे पौधे कल्पनात्मक चित्र के पर के सर्वोदय तीवं" किए जाते रहे है)
"अनेकान्त" विक्रम सम्वत् १९८६ के मगसर मास में दिल्ली से प्रकट हुआ था इस वक्त विक्रम सं० २०२६ में उसे ४० वर्ष हो गये है किन्तु इस समय उसका २२ वां वर्ष चल रहा है इस हिसाब से यह १८ वर्ष बीच-बीच में बन्द रहा है नीचे २२ वर्षों का विवरण प्रस्तुत किया जाता है :
सम्पादक
विशेष प० जुगलकिशोरजी मुख्तार मुखपृष्ठ पर ३० प्रारोंका धनेकान्तात्मक चक्र - चित्र संचालक - तनसुखरायजी, प्रथम प्रक वीरशासनांक
दिल्ली
मुखपृष्ठ पर "जंनी नीति" चित्र
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किरण ५-६ मुख्तार सम्मान प्रक
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