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________________ अब मुखरित विनाश के पथ पर नूतन अनुसन्धान है। कल्याणकुमार जैन 'शशि' मानब के चरित्र का, दिन दिन होता जाता ह्रास है। सात्विकता को निधियों पर प्रब रहा नहीं विश्वास है। विश्व हड़प लेने को प्रतिदिन बढ़ती जाती प्यास है। कथनी और करनी में दिखता, घोर विरोधाभास है। रोम रोम में व्याप्त हो रहा अतहाहाकार है। भौतिकता का भूत, हमारे सिर पर प्राज सवार है। माज चन्द्रमा को प्रसने को लगी भयंकर होड़ है। पत्थर ही पा सके वहाँ भी, किन्तु अभी तक दौड़ है। अध्यात्मिकता इन्हें न छूती, भौतिकता के भक्त हैं। भ-पर इनको कुछ न मिल रहा, ये नभ पर प्रासक्त हैं। इनके लिए व्योम, वैभव है, मातृ भूमि निःसार है। भौतिकता का भूत, मनुज के सिर पर हुमा सवार है। कितनी धरती का स्वामी हो, पर न जरा सन्तोष है। छल प्रपंच लम्पटता पर अधिकारों का जयघोष है। पब मानवता के विरुद्ध ही उमड़ रहा प्रति-रोष है। अन्तरङ्ग में भरा दीखता, घोर घृणा का कोष है। रण-विभीषिकानों में सारा रंगा हा संसार है। भौतिकता का भूत मनुज के सिर पर हुमा सवार है। प्रण की उन्नति पर रोझा है, फल का रच न ध्यान है। मानवता का क्षय करने में, बना हुमा पाषाण है। रही न मानवता की इसको प्राज तनिक पहचान है, अब मुखरित विनाश के पथ पर, नूतन अनुसंधान है। शान्ति नाम की बंधी हुई, 'रण-गृह' पर बन्दनवार है। भौतिकता का भूत मनुज के सिर पर प्राण सवार है।
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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