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________________ वायुपुराण और जैन कथाएं डा० विद्याधर जोहरापुरकर १. प्रास्ताविक-भगवान महावीर के पूर्व के भारत हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा प्रकाशित हुमा है। के इतिहास के कोई निश्चित साधन उपलब्ध नहीं है। कालचक्र कल्पना-पउमचरिय (प्रध्याय ३ व २०) में उस प्राचीन युग के बारे मे जैन, वैदिक और बौद्ध साहित्व बताया गया है कि भरत व ऐरावत क्षेत्रों मे काल का मे प्राप्त कथानों से ही कुछ अनुमान किये जाते है । इनमे चक्रवत परिवर्तन होता है। प्रवसपिणी मे प्रथम सुषमा बौद्ध साहित्य मे विविध प्रकीर्ण उल्लेख ही मिलते है- सुषमा काल होता है, दूसरा सुपमा, तीसरा सुषमा दुषमा, कोई सुसंगत व्यवस्थित वर्णन नहीं मिलता। जैन और चौथा दुषमा सुषमा, पाचवां दुषमा तथा छठा दुषमा दुषमा वैदिक पुराणों मे उस प्राचीन युग की कथानों को व्यव- होता है। तदनन्तर उत्सपिणी मे पहला दुषमा दुषमा, स्थित करने का प्रयास देखा जाता है। इनमे वैदिक दूसरा दुषमा इस प्रकार से छह काल होते है। वायुपुराण पुराणों के अाधार पर इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास में काल का परिवर्तन कुछ भिन्न प्रकार से बताया है का वर्णन करने का प्रयत्न किया है (जिसका उत्तम (अध्याय ४८)। सुखपूर्ण कृतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग तथा उदाहरण भारतीय विद्याभवन बम्बई द्वारा प्रकाशित 'दि दुःखपूर्ण कलियुग ऐसा क्रम यहां बताया है तथा कलियुग वेदिक एज' ग्रंथ मे मिलता है)। किन्तु जैन कथापो का के बाद पुनः कृतयुग का प्रारम्भ कहा है। अर्थात् जहाँ के बाद पनः क्रता ऐसा समुचित उपयोग नहीं किया है। प्रस्तुत लेखमाला जैन कथानो में समय परिवर्तन क्रमिक है। वहाँ वायुमे हम जैन और वैदिक कथा ग्रन्थों की कुछ समानतामों पुराण मे कलि के बाद माकस्मिक परिवर्तन से कृत के और भिन्नताओं का अध्ययन कर रहे है। प्रारम्भ का वर्णन है। इनमें चारों युगो का सम्मिलित २ प्राधार भूत साहित्य-वैदिक पुराणो मे मुख्य- समय १२ हजार दिव्य वर्ष (एक दिव्य वर्ष मनुष्यों के मुख्य ग्रथों मे गुप्तवश तक के भारतीय राजापो का ३६० वर्षों के बराबर) माना है। जैन परम्परा मे उत्सउल्लेख मिलता है अत. उनका वर्तमान स्वरूप चौथी- पिणी के तथा अवसर्पिणी के समय के लिए दस कोटाकोटी पाचवी शताब्दी का है यद्यपि उनमें प्रथम पुराण-वर्णन का सागर शब्द का प्रयोग किया है (एक योजन व्यास के समय महाभारत युद्ध के बाद की पाचवी पीढी के राजा एक योजन गहरे वृत्ताकार खडु मे नवजात बकरो के अधिसीमकृष्ण का राज्यकाल बताया है। प्रस्तुत लेख मे सूक्ष्मातिसूक्ष्म जितने रोमखड समाते है उसके सोगुना जिस वायुपुराण का अध्ययन किया गया है उसमें भी वर्षों को पल्य कहा जाता है तथा दस कोटाकोटी पल्यों यही वर्णन है। दूसरी ओर जैन कथामो का प्रथम विस्तृत का एक सागर होता है)। अथ विमलसूरि का पउमरिय प्रथम शताब्दी का है ४ चौदह मनु-पउमचरिय (म० ३) में तीसरे (यद्यपि कुछ विद्वान उसे तीसरी शताब्दी का मानते है) मखमा नित ह) सुषमा दुपमा काल के अन्त मे चौदह कुलकर हुए तथापि उनमे भी कहा गया है कि भगवान महावीर से ऐसा वर्णन है जिन्हें अन्य जैन ग्रंथों में मनु भी कहा गया चली आई श्रुतपरम्परा उसका प्राधार है। इस लेख में है (जैसे वरांग चरित्र स. २७ श्लो० ३६) । वायुपुराण पउमचरिय के प्राकृत टेक्स्ट सीरीज द्वारा प्रकाशित सस्क- ( १००) में भी चौदह मनुप्रो का वर्णन है। किन्तु रण का तथा वायुपुराण के श्री रामप्रताप त्रिपाठी द्वारा एक मनु से दूसरे मनु तक का समय यहाँ इकहत्तर चतुकिये गए हिन्दी अनुवाद का उपयोग किया है (यह अनुवाद युंग बताया है । अर्थात् दो मनुषों के बीच कृत प्रादि चार
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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