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निर्वाणकाण्ड के पूर्वाधार तथा उसके रूपान्तर
डा० विद्याधर जोहरापुरकर
१. प्रस्ताविका :
के कारण वे चौदहवी सदी के बाद के भी प्रतीत नहीं होते । दिगम्बर जैन समाज में निर्वाणकाण्ड एक सुपरिचित ३. गणकोति :रचना है। १६ प्राकृत गाथानों में निबद्ध यह र वना कई पन्द्रहवी सदी मे गुणकीर्ति ने धर्मामृत नामक मराठी पूजापाठों तथा स्तोत्रसग्रहों में प्रकाशित हो चुकी है। ग्रन्थ लिखा। इसके १६७वे परिच्छेद मे निर्वाणकाण्डइसका भैया भगवतीदास जी ने जो हिन्दी अनुवाद किया वणित सभी १६ तीर्थों का उल्लेख है तथा अतिशयक्षेत्रहै। वह भी कई बार छप चुका है। इस निबन्ध में निर्वा- काण्ड के मथुरा, अहिछत्र तथा वरणयर को छोडकर सभी णकाण्ड के अन्य रूपान्तरों तथा उसके पूर्वाधारो का परि
तीर्थों का उल्लेख है । मालवशान्तिनाथ, तिलकपुर, वाडवचय दिया जा रहा है।
जिनेन्द्र तथा माणिकदेव ये जो क्षेत्र उदयकीर्ति द्वारा २. उदयकोति :
वणित है इनका भी गुणकीति ने उल्लेख किया है। उनके इनकी तीर्थवन्दना में अपभ्रश भाषा में १८ पद्य है। जनता
वर्णन में तीर्थनामो के रूपान्तर इस प्रकार है-मगलपुर
पाता दस प्रकार है निर्वाणकाण्ड के कैलास, चम्पापुर, ऊर्जयन्त, पावापुर, के स्थान में मगलावती, अरमारंभ के स्थान मे आसारम्य सम्मेदशिखर, गजपथ, तारापुर, पावागिरि, (लवकुश पाटन। पावागिरि के स्थान में पावा महागढ तथा तारापूर सिद्धिस्थान), शत्रुजय, तुगी, रेवातट तथा बडवानी इन के स्थान में तारगागिरि । उन्होन कथगिरि के स्थान पर बारह तीर्थ क्षेत्रो का उदयकीति ने उल्लेख किया है। केवल वसथल पर्वत कहा है, चलना नदीतट का उल्लेख सवणागिरि, सिद्धवरकूट, रिस्सिदगिरि, कोटिशिला, कुथु- किया है किन्तु पावागिरि यह नाम छोड दिया है, इसी गिरि, मेढागिरि, दोणगिरि तथा पावागिरि (सुवर्णभद्र- प्रकार फलहोडी ग्राम का उल्लेख किया है किन्तु द्रोणगिरि सिद्धिस्थान) का इन्होंने उल्लेख नहीं किया है। अतिशय
यह नाम छोड दिया है। क्षेत्रकाण्ड के नागदह, मगलपुर, अस्सारम्भ, पोदनपुर, ४ मेघराज :हस्तिनापूर, वाराणसी, अग्गलदेव, सिरपुर तथा हुलगिर इनकी गुजराती नीर्थ वन्दना मे २२ पद्य है। ये इन नौ तीर्थों का उदयकीर्ति ने उल्लेख किया है तथा सोलहवी शताब्दी के प्रारम्भ में हुए है। इनकी रचना में मथुरा, अहिछत्र, जम्बूवन एव वरनगर का उल्लेख नहीं निर्वाणकाण्ड वणित तीर्थों में सिद्धवरकूट, पावागिरि (सबकिया है।
र्णभद्र-सिद्धिस्थान) नथा द्रोणगिरि को छोड़कर शेष सभी उदयकीति ने निर्वाणकाण्ड में अनुल्लिखित पाँच क्षेत्रों का उल्लेख है। अतिशयक्षेत्रकाण्ड के नागद्रह, पोदनपुर, का अधिक उल्लेख अपनी रचना में किया है, ये क्षेत्र है हस्तिनापुर, मिरपुर तथा होलागिरि (इसके नामान्तर -मालव शान्तिजिन, तिउरी के त्रिभुवनतिलक, कर्णाटक लक्ष्मीस्वर का उल्लेख है) इन पाच तीर्थों का मेघराज ने के वाडवजिनेन्द्र, तिलकपुर के चन्द्रप्रभ तथा माणिकदेव। उल्लेख किया है। इनके अतिरिक्त बेलगुल के गोमटस्वामी,
उदयकीति का समय निश्चित ज्ञात नही है तथापि तेर के वर्षमान, समुद्र के आदिनाथ, वडभोई के पार्श्वनाथ, इतना कहा जा सकता है कि वे बारहवी सदी के बाद के जीराउल के पार्श्वनाथ तथा तिलकपुर के चन्द्रनाथ का है क्योकि हुलगिरि के वर्णन में उन्होंने विज्जण राजा का भी उन्होने उल्लेख किया है। उल्लेख किया है। विज्जण बारहवी सदी मे कल्याण के ५. चिमणापण्डित :--सत्रहवी शताब्दी में उन्होंने कलचुर्य वंश में हुया था । त्रिपुरी और तिलकपुर के वर्णन मराठी मे ३७ पद्यों की तीर्थवन्दना लिखी है। इसमें