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________________ गुणस्थान, एक परिचय ११७ सम्यक्त्व उपशम सम्यक्त्व है। इनके क्षमोपशम से होने का स्पर्श हो जाये तो कुछ न्यून अर्ध पुद्गल परावर्तन में वाला सम्यक्त्व, क्षायोपशमिक है। इसका भेद और है, वह निश्चित मोक्ष जायेगा। चाहे क्रिया नही हो पाती जिसका नाम है सास्वादन सम्यक्त्व क्षयोपशम से क्षायक सम्यक दर्शन है तो उसका आयुष्य विमान वासी देवों सम्यक्त्व भी होता है उस स्थिति मे क्षयोपशमिक सम्यक्त्व का ही बंधता है। अर्थात् चौथे गुणस्थान में प्रायुष्य सिर्फ के प्रतिम" समय को वेदन सम्यक्त्व कहा जाता है। बैमानिक या मनुष्य का ही बधता है अन्य किसी का नही अर्थात्-वह इन प्रकृतियों के प्रदेशोदय में वेदन होने पहले का बधा हुआ हो तो वहां तो जाना ही पड़ेगा। वाला अतिम क्षण है, उसके बाद क्षायक होना है । वेदक सम्यक्त्व प्राप्ति के बाद ही व्यक्ति श्रावक या साधुत्व सम्यक्त्व की स्थिति जघन्य उत्कृष्टतः एक समय की है। की भूमिका पा सकता है। अध्यात्म में सम्यक दर्शन को इन प्रकृतियो के क्षय होने से होने वाली दर्शन सम्बन्धी मूल बतलाया है । यही से प्रात्म ज्ञान का प्रारम्भ होता उज्ज्वलता को क्षायक सम्यक्त्व कहते है। इस प्रकार १. चिन्तन मे विशुद्धि करण पाता है। सम्यक्त्व के श्रोत उपशम सम्यक्त्व २. क्षयोपशम सम्यक्त्व ३. सास्वादन से निकलने वाला हर उपक्रम अध्यात्म को परिपुष्ट करने सम्यक्त्व ४. वेदक सम्यक्त्व ५. क्षायक सम्यक्त्व ये पाच वाला सिद्ध होता है। इसीलिए प्राप्त पुरुषो ने कहाप्रकार कर्म निर्जरा की अपेक्षा से हुए है। "सम्मत्त दसी न करेई पाव" सम्यक् दर्शन मे रहा हुआ सम्यक्त्व प्राप्ति के लक्षणो की अपेक्षा से रुचि की प्राणी सब से बडा पाप जो मिथ्यात्व का है, उसे वह कभी अपेक्षा से सम्यक्त्व के अनेक विकल्प है। किसी को उपदेश नहीं करता। यह है सम्यक्त्व का फल । इसे मोक्ष का से सम्यक्त्व के प्राप्ति हुई किसी को नैसर्गिक सम्यक्त्व प्राप्ति द्वार कह सकते है, साधना की प्राधार शिला मान हुई। किसी को सक्षेप मे तत्व की जानकारी है, किसी सकते है। को विस्तार से तत्वज्ञता" प्राप्त है। उत्तराध्ययन प्रज्ञापना पांचवां व्रतावती श्रावक गुणस्थानपादि प्रागमो मे ऐसे सम्यक्त्व के दश विकल्प बतलाये हैं। अप्रत्याख्यानी" कषायचतुष्क का क्षयोपशम होने से १. निसर्ग रुचि, २. उपदेश रुचि, ४. सूत्र रुचि, ५. बीज प्रात्मा सवर की ओर प्रयत्नशील होती है। प्रवृत्ति प्रधान ६. अभिगम रुचि, ७. विस्तार रुचि ८ क्रिया रुचि ह सक्षेप जीवन मे निवृत्ति को स्थान देती है। पुर्णत: चारित्रशील रुचि १० धर्म रुचि । न होने पर भी पाशिक चारित्र (व्रत) को ग्रहण कर सम्यक्त्व से लाभ उपासना युक्त जीवन व्यतीत करने वाला व्यक्ति श्रावक सम्यक्त्व से क्या लाभ है? इस सदर्भ मे अगर चौथे कहलाता है । कुछ व्रत और कुछ अव्रत इस मिश्रित प्रात्म गुणस्थान को देखे तो अनुभव होगा कि चौथा गुणस्णान ही अवस्था को व्रताव्रती गुणस्थान कहते हैं। चौथा गुणस्थान चौदहवे गुणस्थान की भूमिका है-निर्वाण की भूमिका है। जहाँ सर्वथा अविरति था। वहा पाचवां गुणस्थान व्रताव्रती मागमों में कहा है-अन्तर"मुहर्त मात्र भी अगर सम्यक्त्व अवस्था में पहुँचा। उपासना के क्रम में इस गुणस्थान १४. तच्च वेदगसम्यक्त्वं सम्यक्त्वपुंजस्य बहुतरक्षपितस्य वाले व्यक्तियो को श्रावक कहा जाता है । आगमों में एक चरमपुद्गलाना वेदनकाल ग्रास समये भवति । प्राणातिपात का त्याग करने वाले से लेकर एक प्राणाति पात जिसके बाकी है, उन सबको पचम गुणस्थानवर्ती मभिः १५. निसग्गुवएसरुई प्राणारुइ सुत्त-वीयइमेव । बतलाया है। श्रावक के बारह व्रत और ग्यारह प्रतिमा अहिगमवित्थाररुई, किरियासखेवधम्मरुई। १७. सम्मद्दिट्टी जीवो गच्छइ नियमा विमाणावासीसु । १६ उ०२८ जइ न विगयसम्मत्तो महवा न वद्धाउमो पुन्विं । १६. अंतोमुहूर्तमित्तं, विफासिय हुज्जे हिंसम्मत्त । स्थान० टी० ते सि प्रवड्ढ़ पुग्गल-परियट्टोचेवसंसारो ॥ १८. प्रत्याख्यानोदयात्देश विरती यत्र जायते तत्, श्रद्धत्वं १। स्थान० टी. देशोन पूर्व कोटिगुरुस्थिति : २४ गुणस्थान क्रमारोह
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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