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________________ 55 सर्वप्रथम यही उपदेश दिया था कि "अपनी इच्छाओं को नियन्त्रित करो। भोग को लालसाओं को सीमित करो। अपार सम्पत्ति और प्रगणित दास प्रादि जो भी तुम्हारे अधिकार में केन्द्रित है, उन्हें मुक्त करो, उनका विसर्जन करो अथवा उनका उचित परिमाण करो ।" गरीबी स्वयं में कोई समस्या नहीं, किन्तु प्रमीरी ने समस्या बना दिया है। गड्ढा स्वयं मे कोई बहुत बडी बीज नहीं किन्तु पहाड़ों की असीम ऊंचाईयों ने इस धरती पर जगह-जगह गड्ढे पैदा कर दिये हैं। पहाड़ टूटेंगे तो गड्ढे अपने आप भर जायेंगे, सम्पत्ति का विसर्जन होगा तो गरीबी अपने आप दूर हो जायेगी । संग्रह की अग्नि भोगेच्छा के पवन से प्रज्ज्वलित होती है । भ० महावीर ने अपरिग्रह को दो रूपों मे अभिव्यक्ति दी वस्तु का परिमाण धौर भोगेच्छा पर नियन्त्रण व्यक्ति की भोगेच्छा जब सीमित हो जाती है तो वह विश्व के प्रसीम साधनों को अपने पास बटोर कर रखने की चेष्टा नहीं करता । जितनी श्रावश्यकता उतना ही संग्रह | आवश्यकता रूप सयम की प्रास्था को सुदृढ करने के लिए महावीर ने एक बार कहा कि जो आवश्यकता से अधिक संग्रह करता है - वह स्तेन कर्म (चोरी) का दोष करता है। अर्थात् आवश्यकता से अधिक संग्रह करने वाला समाज की चोरी करता है । महावीर के इस अपरिग्रह दर्शन ने समाज शुद्धि की प्रक्रिया को बल प्रदान किया । समाज मे परिग्रह की जगह त्याग की प्रतिष्ठा हुई जनता की निष्ठा भोग से हटी, त्याग की ओर बढ़ी। त्याग की निष्ठा एवं तप की प्रतिष्ठा ही समाज की पवित्रता और श्रेष्ठता का प्रमाण है । मर्क्स एवं लेनिन ने समाज के सशोधन की अपेक्षा ऐसे समाज की रचना पर बल दिया है जिसमें बुराइयाँ ही पैदा न हों। बुराई को जन्म लेने का अवसर हो न मिले । समाज व्यवस्था के नाते मार्क्स एवं लेनिन की यह सैद्धान्तिक प्रक्रिया ठीक है परन्तु वह मानवसमाज पर ऊपर से बलात् नही थोपी जानी चाहिए, स्वयं उभरनी चाहिए। मानवता के विकास में मार्क्स, टोल्सटॉय, तथा लेनिन का महत्वपूर्ण योगदान इतिहास में स्वर्णाक्षरों से अंकित है। अनेकान्त यदि महावीर के अहिंसा, अनेकान्त एवं अपरिग्रह पर नवीन दृष्टि से चिंतन किया जाय, तो इस समस्या का भारत की प्रोर से सांस्कृतिक समाधान श्राज हमें मिल सकता है । महावीर ने समाज रचना की अनेक तात्कालिक एव चिरकालिक समस्याओं का समाधान जिस अहिंसा और अपरिग्रह की व्यापक प्रक्रिया के द्वारा किया उसके मूल मे मानव चेतना की आन्तरिक शुद्धि एवं पवि त्रता पर बल दिया गया था । अतः वह मानव के श्रन्तद्वन्द्वों का क्षणिक समाधान नही, शाश्वत समाधान था । श्राज भी इसी प्रक्रिया के बल पर हम समाज को धन की गुलामी से मुक्त करके अपरिग्रह की प्रतिष्ठा कर सकते है। इस प्रकार महामानव महावीर ने हिंसा-शक्ति का सशोधन प्रहिसा और मंत्री की प्रक्रिया से धन की कलुपता का परिमार्जन अपरिग्रह तथा संयम से एव बौद्धिक विग्रह का समाधान अनेकान्त एव स्याद्वाद दृष्टि से करने का स्पष्ट मार्गदर्शन किया । श्रहिंसा, अपरिग्रह और अनेकान्त की उपलब्धि महावीर के धर्म की महान् उपलब्धि है । भारतीय संस्कृति प्रारम्भ से ही विश्वशान्ति के लिए सह श्रस्तित्व एवं पारस्परिक सहयोग की उद्घोषणा करती आई है । स्वतन्त्र भारत की राजनीति का श्राधार भी शान्तिपूर्ण सह प्रस्तित्व एवं पारस्परिक सहयोग रहा है। भारत के प्राचीन ऋषियों ने भ० महावीर एव महात्मा बुद्ध ने इसी का जीवन संदेश दिया, हमारे राष्ट्र पिता महात्मा गांधी ने इसी सिद्धान्त को जीवन मे प्रगट कर विश्व को मार्गदर्शन किया। भारत के स्व० प्रधान मन्त्री प० जवाहरलाल नेहरू, श्री लालबहादुर शास्त्री और वर्तमान प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गाधी ने भी इसी सह अस्तित्व एवं पारस्परिक सहयोग की राजनीति द्वारा विश्वशान्ति के मार्ग को प्रशस्त किया है और कर रहे हैं। भारत और रूस इस विश्व की सबसे महान शक्तियाँ भाज सह-अस्तित्व सिद्धान्त के श्राधार पर परस्पर अभिन्न मित्र बने हुए है। इतना ही नहीं समग्र विश्व में शान्तिपूर्ण सह प्रस्तित्व एवं पारस्प रिक सहयोग द्वारा शान्ति एवं मंत्री स्थापित करने के लिए उत्सुक एवं प्रयत्नशील हैं। धाज का सम्मेलन भी
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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