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________________ मागम-प्रन्थों के प्राधार पर : पारस्परिक विभेव में प्रभेद को रेखाएँ का वहां मन नहीं लगता। और सघ के लिए भी यह परीक्षा ली जाती थी। प्राचार्य यह भी देखते थे कि मै स्थिति हितकर नही होती। उपसपदा समाचारी के अनु- अपने संघ के सदस्यो को भूल होने पर उन्हें सावधान सार किसी व्यक्ति के परिहार और स्वीकार मे सघ का करता है, अध्यन और साधना मादि विषयो में प्रेरित परामर्श लेना, होता था। करता है पर प्रतिच्छक के प्रति उदासीन रहता हूँ। इस प्रतिच्छक के पाने की विधि प्रकार के व्यवहार से उसके मानस पर क्या प्रतिक्रिया विधि के अनुसार पाने वाला प्रतिच्छक ही उपसपदा होती है ? के लिए योग्य माना जाता था। जो मुनि अपने प्राचार्य यदि उस उपेक्षाभाव का उसपर कुछ असर होता को अकेला छोडकर या शैक्ष्य मुनियों के भरोसे छोडकर और निवेदन करते-करते उसकी प्राखों से मांसू छलक पाता, वह उपसंपदा के लिए योग्य नही माना जाता है। जाते और गदगद स्वर मे प्रार्थना करता कि गुरुदेव! मुझ जो मुनि वृद्ध प्राचार्य को अथवा सूत्रार्थ मे शकित जैसे निराधार के आधार प्राप ही है, मै भी प्रापकी शरणप्राचार्य को छोडकर आता, उसे भी उपसपदा के योग्य गत हैं। अपने शिष्यो की तरह मुझे भी गलती होने पर नहीं माना जाता था। सावधान रहने की प्रेरणा दे तो उस मुनि को उपसपदा के सघ का कोई सदस्य ग्लान' अथवा बहुरोगी होता, लिए स्वीकार कर लिया जाता था जिम मुनि पर प्राचार्य उनका प्राधार वह एक ही मुनि होता तथा मद धर्मी शिष्य को उदासीनता का कोई असर ही नहीं होता। उस मुनि उसके सिवाय प्राचार्य की भी प्राज्ञा नही मानते, वह मुनि को इन्कार कर दिया जाता था। भी अपने संघ को छोडकर उपसपदा के लिए अन्यत्र नहीं प्रतिच्छक के द्वारा परीक्षाजा सकता था। जिस प्रकार आचार्य प्रतिच्छक मुनि की परीक्षा लेते अनिवार्य परीक्षण वैसे ही वह मुनि भी जिम गण मे जाता, उस गण के उपमपदा के लिए आने वाले मुनि की योग्यता का प्राचार्य की परीक्षा करता। उस गण के सदस्यों में कोई परीक्षण करना भी अनिवार्य था। क्योकि परीक्षण किए भी सदस्य अावश्यक समाचारी में भूल करता तो वह विना नए व्यक्ति को स्वीकार करने से समय पर प्राचार्य प्राचार्य को निवेदन करता। प्राचार्य उस नवागन्तुक के नथा सघ दोनो के लिए चिन्ता का विषय हो सकता है । निवेदन पर उस भूल करने वाले मुनि को प्रायश्चित देते परीक्षाक्रम मे सबसे पहले उसकी दिनचर्या देखी जाती और आगे भूल न करें इस प्रकार प्रेरित करते तो वह थी। अगर वह मुनि अपनी दिनचर्या में सजग रहता, मुनि उस गण और प्राचार्य को स्वीकार करता; अन्यथा अावश्यकी नपिधिकी विधि-पूर्वक करता, प्रतिक्रमण- उपसपदा के लिए अन्यत्र चला जाता था। प्रतिलेखन आदि मौलिक क्रियानो मे अन्तर नहीं प्राने देता उपसंपदा के लिए माने वाला मुनि यदि योग्य नहीं तथा जिस सघ में सम्मिलित हुआ है उस संघ के सदस्यो होता तो गीतार्थ को स्पष्ट मनाह कर देने, क्योकि वह मे घुसमिल जाता, वह मुनि उपसपदा के योग्य माना। स्थिति से अनजान नहीं होता। और यदि वह अगीतार्थ जाता था। होता तो उसे मनोवैज्ञानिक पद्धति से समझा देते थे। परीक्षण की पद्धति एक ही प्रकार की नहीं हाती था प्रतिबंध पतिकिन्तु विविध प्रकार की विधियो से भागन्तुक मुनि की जो मुनि सूत्रार्थ की विशेष वाचना के लिये पाता पर १. निशीथ भाष्य ६३३५ : व्यवहार भाप्य ७४ : अहवा उसके योग्य नहीं होता, उस मुनि से कहा जाता था कि एगे परिणते अप्पाहारे य थेरए। १. निशीथ भाप्य ६३४६ ; व्यवहार भाप्य ८६ . २. वही, ६३३५ : गिलाणे बहुरोगे य मद-धम्मे य जो पुण चोइज्जतो, दळूण तत्तो, नियत्तता ठाणा । पाहुई। मपाति अहं मे चत्तो, चोदेह ममपि सीदतं ।।
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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