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________________ यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन डा० गोकुलचन्द प्राचार्य, एम. ए. पा-एच. डा. पाणिनी के विषय में सोमदेव ने एक महत्त्वपूर्ण जान- ससर्ग विद्या या नाट्यशास्त्र, चित्रकला तथा शिल्पकारी दी है। इनके पिता का नाम पणि या पाणि था। शास्त्र विषयक सामग्री भी यशस्तिलक में पर्याप्त और इसीलिए इन्हे पाणि पुत्र भी कहा जाता था। गणित को महत्त्वपूर्ण है। ललितकलाये और शिल्प विज्ञान नामक सोमदेव ने प्रसण्यात शास्त्र कहा है। सोमदेव के समय तीसरे अध्याय मे इम सामग्री का विवेचन किया गया है। प्रमाणशास्त्र के रूप मे अकलक-न्याय की प्रतिष्ठा हो चुकी कामशास्त्र को सोमदेव ने कन्तुमिद्धान्त कहा है। थी । राजनीति मे गुरु, शुक्र, विशालाक्षा परीक्षित, पारा यशस्तिलक में इसकी मामग्री यत्र तत्र बिग्वरी है। भोगाशर, भीम, भीष्म तथा भारद्वाज रचित नीतिशास्त्रों का वलि राजस्तुति को कहते थे । उल्लेख है । सोमदेव ने गज विद्या मे यशोधर को रोमपाद की तरह कहा है। रोमपाद के अतिरिक्त गजविद्या विशे काव्य और कवियों में मोमदेव ने अपने पूर्ववर्ती अनेक महाकवियो का उल्लेख किया है। उर्व, भारवि, षज्ञो मे इभचारी, याज्ञवल्क्य, वाद्धलि (वाहालि), नर, नारद, राजपुत्र तथा गौतम का उल्लेख है। कुल मिलाकर भवभूति, भर्तहरि, भर्तृमण्ठ, कण्ठ, गुणाढ्य, व्यास, भास, बोस, कालिदास, बाण, मयूर, नारायण, कुमार, माघ तथा यशस्तिलक मे गज विद्या विषयक प्रभूत सामग्री है । गजोत्पत्ति की पौराणिक अनुश्रुति, उत्तम गज के गुण, गजो के राजशेखर का एक साथ एक ही प्रसग में उल्लेख है। भद्र, मन्द, मृग और सकीर्ण भेद, गजो की मदावस्था, सोमदेव द्वारा उल्लिखित अहिल, नीलपट, त्रिदश, कोहल, उसके गुण-दोष और चिकित्सा, गज परिचारक, गज शिक्षा गणपति, शकर, कुमुद तथा केकट के विषय में अभी हमे इत्यादि के विषय मे सोमदेव ने विस्तार मे लिखा है। विशेष जानकारी नही उपलब्ध होती। वरमचि का भी मैने उपलब्ध गजशास्त्रो से इसकी तुलना करके देखा है । एक पद्य उद्धृत किया गया है । कि यह सामग्री एक स्वतन्त्र गजशास्त्र के लिए पर्याप्त है। दाशानक पार पायाणक शिक्षा और साहित्य का गजशास्त्र की तरह प्रश्वशास्त्र पर भी सोमदेव ने ता पशास्तलक खान है । प्रा० हान्दका ने इस सामग्रा का विस्तार से प्रकाश डाला है। राजाश्व के वर्णन मे केवल विस्तार से विवचन किया है, हमने इसकी पुनरावृत्ति एक प्रसग मे ही पर्याप्त जानकारी दे दी है। रेवत और नहा क शालिहोत्र अश्वशास्त्र विशेषज्ञ माने जाते थे। सोमदेव ने परिच्छेद ग्यारह में आर्थिक स्थिति पर प्रकाश डाला अश्व के इकतालीस गुणो की परीक्षा करना अपेक्षित गया है। सोमदेव ने कृषि, वाणिज्य, सार्थवाह, नौ सन्तरण बताया है। यशस्तिलक में इन सभी गुणों के विषय में और विदेशी व्यापार, विनिमय के साधन, न्याय आदि के पर्याप्त जानकारी दी गयी है। अश्वशास्त्र के साथ तुलना विषय में पर्याप्त सामग्री दी है। काली जमीन विशेष करने पर यह सामग्री और भी महत्त्वपूर्ण और उपयोगी उपजाऊ होती है। सुलभ जल, सहज प्राप्य श्रमिक, कृषि सिद्ध होती है। के उपयोगी उपकरण, कृषि की विशेष जानकारी तथा रत्नपरीक्षा मे शुकनास का उल्लेख है। वैद्यक या उचित कर कृषि की समृद्धि में कारण होते है। तभी आयुर्वेद मे काशिराज धन्वन्तरि, चारायण, निमि, धिषण वसुन्धरा पृथ्वी चिन्तामणि की तरह शस्य सम्पत्ति तथा चरक का उल्लेख है। रोग और उनकी परिचर्या लुटाती है। नामक परिक्छेद मे इनके विषय मे विशेष जानकारी दी है। वाणिज्य में सोमदेव ने स्थानीय तथा विदेशी व्यापार
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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