SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अग्रवालों का जैन संस्कृति में योगदान परमानन्द शास्त्रो [अनेकान्त वर्ष २० किरण ५ से आगे] पश्चात् दोनों मित्रों ने संवत् १८९६ मे पाराधना कथा बखतावरमल और रतनलाल ने वर्तमान चौवीसी कोप का पद्यानुवाद सवत १८९६ में पूर्ण किया था। पूजा पाठ सवत् १८९२ मे बनाया था। उस समय उस समय दिल्ली में बहादुरशाह (द्वितीय) का राज्य दिल्ली मे अकबर (द्वितीय)का राज्य था । अकवर द्वितीय था। वह सन् १८३७ (वि० स० १८९४) में तख्त पर पालमशाह द्वितीय के बाद सन् १८०६ (वि० स० बैठा था। कवि ने उसी के राज्य में प्रस्तुत ग्रन्थ को १८६३ ) मे गद्दी पर बैठा था, इसने सभवत १३ वर्ष के रचना की है। यह ग्रन्थ भी पहले प्रकाशित हो चुका है। लगभग राज्य किया। अतएव स० १८९४ तक इसी का इस तरह दिल्ली के इन दोनो विद्वानो ने गृह कार्यों में रत राज्य रहा है। उस समय दिल्ली में राजा सुगनचन्द की रहने हए जो साहित्य सेवा की है वह अनुकरणीय है । शैली का विस्तार था । सुगनचन्द का पुत्र प० गिरधारी ३५वें पं० फतेहचन्द जी है। आप का जन्म अग्रवाल लाल था। जो प्राकृत-सस्कृत और हिन्दी का अच्छा कूल मे हा था । आपके द्वारा लिखी हुई 'जन यात्रा विद्वान था । और अपने प्रपिता (पितामह) द्वारा बनवाए दर्पण' नामकी पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है। हुए मन्दिर की शास्त्र सभा मे शास्त्र प्रवचन करता था। ३६३० कवि जगदीशराय है। आप का वंश भी दिल्ली की उस शैली में प० सुगुनचन्द, प० गिरधारीलाल अग्रवाल था । आप हिन्दी और फारसी भाषा के अच्छे म्नेहीलाल, कानजीलाल, जैजैलाल, गुपालराय और साहिब विद्वान थे । आप का जन्म संवत् १६०२ मे हुआ था । मिह आदि सज्जन थे । पचकल्याणक पूजापाठ की रचना आप बाल्य अवस्था से ही जैन सिद्धान्त के रसिक थे। भी इन्होने सं० १८६२वे में की थी। आपने ज्योतिष और रमल में भी अच्छी योग्यता प्राप्त की सहारनपुर के लाला सौदागरमल ने एक पत्र थी। आप के पद बडे सुन्दर और सरल है । आप की एक वग्वतावरमल को, जिनदत्तचरित्र' की भाषा करने के लिये मात्र रचना 'जगदीश विलास' है, जो प्रकाशित हो चुका लिखा था और प्रेरणा की थी कि इसकी भाषा जल्दी वन है आपके पदो मे फारसी भाषा के शब्दो का प्रयोग जाय, तो बड़ी कृपा होगी । इन्होंने अपने मित्र की सलाह जहां-तहां हया है। आपका अवसान ६१ वर्ष की अवस्था से भाषा बनाना स्वीकार कर लिया था। और इसके लिये मे सन् १९६३ में हुआ था। उन्होने प० गिरधारीलालजी से प्रार्थनाकी थी कि पाप हमे ३७वे विद्वान् प० गिरधरलाल जी है, जो राजा मस्कृत का हिन्दी अर्थ बतला दे। तब गिरधारीलालने उन्हे मगनचन्द के पुत्र और राजा हरमुख राय के पौत्र थे । मम्कृत पद्यो का हिन्दी में अर्थ बतलाया और तब उन्होने अपने सम्पन्न परिवार में जन्म लेकर भी प्राकृत-सस्कृत उसकी भाषा बनानेका उपक्रम किया। लाला अानन्दरायने का अच्छा अध्ययन किया था । और जैन सिद्धान्तके अनेक भी प्रेरणा की थी। तब इन्होंने स० १८६४ मे माघ कृष्णा ६४ म माघ कृष्णा ३ सवत् विक्रम नृपति को अट्ठारहम मान । नवमी के दिन उक्त ग्रन्थ का पद्यानुवाद किया था। ताप अधिक चौरानवे, माघ कुष्ण पख जान ।। १ सवत् अष्टादशशत और बाणवे जान । ४ संवत् विक्रम नृपति को वृष अरु ज्ञान मिलाय । फागुन कारी सप्तभी भौमवार पहचान ।। नारायण लेश्यातनी संज्ञा सर्व गिनाय ।। २ संवत् अष्टादश जु कहिये और बाणवे तापर दीन । ग्रीषम ऋतु वंशाख फल पक्ष जान अधियार। भादों की दोयज सुखकारी चन्द्रवार दिन पूरन कीन । सिद्ध जोग शुभपंचमी वृश्चिक शशि गुरुवार ।
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy