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________________ आगम और त्रिपिटिकों के संदर्भ में अजातशत्र कुणिक अणुव्रत परामर्शक मुनि श्री नगराज श्रेणिक की तरह कुणिक (अजातशत्रु) का भी दोनो महान आजीविका पाता था। उसका कार्य था, महावीर को परम्परागो मे समान स्थान है। दोनो ही परम्पराए उसे प्रति दिन की प्रवृत्ति से उसे अवगत करते रहना। उसके अपना अपना अनुयायी मानती है और इसके लिए दोनो के नीचे अनेको कर्मकर रहते थे । वे भी भाजीविका पाते थे। पास अपने-अपने प्राधार है। बौद्ध परम्परा के अनुसार उनके माध्यम से महावीर के प्रतिदिन के समाचार उस सामञ्जफल मुत्त का सम्पर्क बुद्ध और अजातशत्रु का प्रथम प्रवृत्ति वादुक पुरुष को मिलते और वह उन्हे कुणिक को प्रथम मिलन था। उसी मे वह बुद्ध, धर्म और मघ का बताता'। शरणागत उपासक हुआ'। बुद्ध के प्रति अजातशत्रु को महावीर के चम्पा-आगमन और कुणिक के भक्तिभक्ति का अन्य उदाहरण उनकी अस्थियों पर एक महान्, निदर्शन का विवरण प्रौपपातिक सूत्र में बहुत ही विशद् स्तूप बनवाना है। बुद्ध के भग्नावशेष जब बांटे जाने लगे और प्रेरक है । 'मामजफल सुत्त' की तरह वह भी यदि उस समय अजातशत्रु ने भी कुशीनाग के मल्लो से कह- गवेषको की समीक्षा का विषय बना होता, तो उतना हो लाया-बुद्ध भी क्षत्रिय थे, मै भी क्षत्रिय हूँ। अवशेषो का महत्त्व उसका बनता। स्थिति यह है कि जितनी शोधएक भाग मुझे अवश्य मिलना चाहिए। द्रोण विप्र के खोज अब तक त्रिपिट को पर हई है. उतनी आगमों पर परामर्श पर उसे एक अस्थि-भाग मिला और उस पर उसने नही। यदि ऐमा हवा होता, तो अनेकों महत्त्वपूर्ण विषयो म्तूप बनाया। पर निर्णायक प्रकाश पडता। अजातशत्रु कुणिक के विषय सामजफल सुत्त मे अजातशत्रु कार्तिक पूर्णिमा की में भी जितनी अवगति पागम देते है, उतनी त्रिपिटक गत को ही अपने राजवैद्य जीवक कोमार भत्य से बुद्ध का नहीं। परिचय पाता है और पाँच सौ हाथियो पर पांच मौ महावीर-पागमन का सन्देश रानियो को लिए उसी रात मे बुद्ध का साक्षात् करता है। महावीर और कणिक का यह सम्पर्क चम्पा नगरी में महावीर से उसका प्रथम साक्षात् कब होता है, यह कहना कब हाता है, यह कहना होता है-महावीर ग्रामानुग्राम विहार करते १४ सहस्र होता_मटा कठिन है। उनके जितने साक्षात् उनसे मिलते है; वे चिर भिक्षु ३६ सहस्र भिक्षुणियो के परिवार से चम्पा नगरी मे : परिचय और अनन्यभक्ति के ही सूचक मिलते है। प्रथम पाये । प्रवृत्ति वादुक पुरुष यह सवाद पा, पानन्दित हुमा, उपाङ्ग प्रौपपातिक प्रागम मुख्यत: महावीर और कुणिक के प्रफुल्लित हुआ। स्नान कर मंगल वस्त्र पहने, अल्प भार सम्बन्धों पर ही प्रकाश डालता है। चम्पानगरी और युक्त तथा बहुत मूल्य युक्त प्राभूषण पहने। घर से कुणिक की राज्य स्थिति का भी वहाँ सुन्दर चित्रण है। निकला। चम्पा नगरी के मध्य होता हुआ भभसार पुत्र कुणिक की महावीर के प्रति रही भक्ति के विषय में वहाँ कुणिक की राजसभा मे पाया, जय-विजय शब्द से वर्धापना बताया गया है-उसके एक प्रवृत्ति वादुक पुरुष था। वह ३ तस्स ण कोणिअस्स रण्णो एक्के पुरिस विउलकय १ एसाह, भन्ते, भगवन्तं सरणं गच्छामि धम्म च भिक्खु वित्तिए भगवो पवित्तिवाउए, भगवो तद्दे वसिम सङ्घ च । उपासक म भगवा धारेतु प्रज्जतग्गे पवित्ति णिवेएइ। तस्स ण पुरिसस्स बहवे अण्णे पाणुपेतं सरणं गतं । पुरिसा दिण्ण-भति-भत्त-वेप्रणा भगवो पवित्ति२ बुद्धचर्या, पृ. ५०६ वाउमा भगवो तद्दे वसिनं पवित्ति निवेदेति ।
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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