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________________ “युगवीर" का राष्ट्रीय दृष्टिकोण जीवनलाल जैन बी. ए. बो. एड. "भारत की कीतिलता दसों दिशाओं में व्याप्त थी। अच्छी फटकार लगाई है वहीं उनका दृढ़ता पूर्वक सामना उसका विज्ञान कला-कौशल और आत्म-ज्ञान अन्य समस्त करने के लिए अपने प्रात्मबल पर विश्वास रखते हुए प्रात्मदेशों के लिए अनुकरणीय था....पर खेद है कि आज बलिदान तक करने के लिए तैयार रहने की सलाह दी है। भारत वह भारत नहीं। आज भारत का मुख समुज्जवल "प्रात्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्" । होने के स्थान में मलिन तथा नीचा है।" जो क्रिया कलाप मुझे पसन्द नही उनका प्रयोग दूसरे उपर्युक्त उद्धरण से स्पष्ट है कि राष्ट्रभक्त जब अपने के प्रति न करना मानवीय प्रम की प्रथम सीढी है । स्वतः अतीत के स्वणिम प्रभात पर दृष्टिपात कर वर्तमान की के कृत्यों द्वारा सयम एव साहस का परिचय देते हुए समाज धूल धूसरित सध्या-बेला को दीन हीन दयनीय दशा पर के अन्य विभिन्न प्रकार के घटको हृदय-कपट खोल कर विचार करता है तब उसका हृदय पटल विदीर्ण होना। प्रेम रस संचारित करते हुए एकाकार होने का प्रयत्न स्वाभाविक है। सामान्यतः प्रत्येक नागरिक अपने राष्ट्र करना राष्ट्रीय एकता एव सठगन के लिए परमावश्यक हित का चिन्तन करने मे गौरव का अनुभव करता है। है। प्रात्मबल का अवलम्बन प्राप्त कर प्रात्म बलिदान का युगवीर जी ने राष्ट्रीय चेतना जागृति हेतु तलवार की दुधार हाथ में लेकर समाज एव राष्ट्र को वैचारिक क्रान्ति दुधार हाथ में अपेक्षा कलम को अधिक पसन्द किया है। प्रतएव उन्होने द्वारा उसमें समाहित विकृतियो का परिहार करने प्रत्येक साहित्य सृजन मे सलग्न रह समाज तथा राष्ट्र सेवा राष्ट्रीय नागरिक को सदैव तैयार रहना चाहिए। का दृढ सकल्प कर बचारिक क्रान्ति द्वारा हृदय परिवर्तन युगवीर जी की कथनी एव करनी में भेद नहीं किया कर मानव कल्याण ही नहीं अपितु राष्ट्रोद्धार का सामयिक जा सकता है। वे न केवल अपने विचारों से ही समाज साहसिक एवं प्रशसनीय कदम आगे बढ़ाया है। आपने में परिवर्तन लाना चाहते थे अपितु उसे स्वतः के जीवन साहित्य के माध्यम से बाह्याडम्बर तथा सिर्फ परम्परा मे क्रियात्मक रूप देकर समाज के समक्ष प्रादर्श प्रस्तुत निर्वाह करने की प्रवृत्ति को निरुत्साहित करते हुए सरल किया करते थे। वे तत्कालीन राजनैतिक एव राष्ट्रीयता निर्मल, निःस्वार्थ दया, करुणा ममता, सहानुभूति, सहयोग से प्रोत प्रोत-वातावरण के प्रभाव से मुक्त न रह सके । आदि मानवीय वृत्तियो से परिपूर्ण विशाल हृदयशाली जन आपके हृदय मे देश भक्ति कूट कूट कर भरी हुई थी आप मानस निर्मित करने की प्रेरणा प्रवाहित की है। स्वय विदेशी वस्त्रो का बहिष्कार कर म्वय चरखे पर सूत व्यक्ति से समाज तत्पश्चात राष्ट्र निर्माण होता है, कात कर स्वावलम्बन व्रत पालन करते हुए नियमित शुद्ध अतएव राष्ट्रीय प्राधारशिला व्यक्ति के व्यक्तित्व को खादी धारण कर न केवल राष्ट्रीयता का ही परिचय देते उभारने की चेष्टा युगवीर जी ने की है। व्यक्ति की थे अपितु स्वतत्रता-सग्राम के सैनिकों तथा उनके परिवार हार्दिक निर्मलता शुद्धविचार एव प्राचार से ही समाज मे जनों को समयानुसार तन मन से पूर्ण सहयोग नि:स्वार्थ न्याय-सदाचार एवं सद्व्यवस्था के प्रति निष्ठा उत्पन्न भाव से दिया करते थे। आप अपने लेखों से लोगों का होगी, तब समाज न केवल स्वच्छ एवं स्वस्थ रहेगा अपितु न केवल उत्साहवर्धन ही किया करते थे बल्कि सामविशुद्ध राष्ट्रीयता का पोषक भी बनेगा इसी लिये मानवीय यिक सूझ बूझ द्वारा अनेक समस्याओं का हल भी निकाल गुणों को तिलांजली देने वाले लोगो को जहाँ कहीं कवि ने कर दिया करते थे।
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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