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________________ अनेकान्त इसके दोनों पक्षों पर गंगा और यमुना का अंकन अत्यन्त मोर बाईसवें तीर्थकर नेमिनाथ का यक्ष पाश्वं और भव्यता से उसकी सहायक देवियो के साथ हमा है । यह लक्ष्मी का अंकन है। तत्पश्चात् प्रत्येक द्वार पक्ष दो द्वार तथा गर्भगृह का प्रवेशद्वार एक ही समय की कृति दो पंक्तियों में ऊपर की ओर बढ़ता है। बाहरी पंक्तियां माने जाने चाहिए । दोनों का प्रलंकरण और विषयवस्तु चौखट के ऊपरी भाग के साथ ऊपरी भाग तक बढ़ती शैली मादि की दृष्टि से एक जैसा है। जाती हैं। उनमें सर्वप्रथम एक एक देवी का और प्रदक्षिणा पथ तत्पश्चात् विभिन्न प्राकृतियो के शार्दूलो का अंकन है, प्रदक्षिणा-पथ की दीवाल के बाहर जालीदार लम्बे जिनमें गजमुख शार्दूल की छटा दर्शनीय है । बाये मोर किन्तु मकरे गवाक्षों की सुन्दर संयोजना हुई है। प्रति दो की भीतरी पंक्ति में अपनी तीन सहायक देवियो के साथ स्तम्भों के मध्य एक शिखराकृति से युक्त देवकलिका मकरवाहिनी गंगा दर्शित है, जिसके ऊपर नाग अंकित है। दर्शायी गई है, जिमके ऊपरी भाग में एक पद्मासन इसके ऊपर एक पुस्तकधारी साधु उत्कीर्ण है। इसके तीर्थकर और उनके नीचे अपनी सहायक देवियों के साथ ऊपर पांच पाच देवकुलिकाओं की तीन पंक्तियाँ नीर्थकर की यक्षिणी का अंकन हया है। प्रत्येक शासन- है। इनमें मे मध्यवर्ती किंचित् प्रागे को निकली हुई है देवी का नाम उसके पादपीठ में उत्कीर्ण है। इस प्रकार और यह चौडाई में पाश्र्ववर्ती पक्तियो से दुगनी है । मध्य प्रदक्षिणा-पथ में चागे मोर चौबीस तीर्थकरों और उनकी की की प्रथम देवकालिका में एक माध् अपनी पीछी यौर शासन देवियो का जो अंकन यहां हना है व भारतीय कमण्डलू लिये खडे हैं और एक दाढीधारी युवक विननापुगतत्व में कदानित एकमात्र है। 12 इससे न निमा. पूर्वक उनके चरण स्पर्श कर रहा है तथा उनके निकट शास्त्र का समृद्धि और परिपूर्णता का मप्रमाग बोध एक महिला अंजलि बांधे हा अपनी नम्रता अभिव्यक्त होता है। कर रही है। इसके ऊपर की तीन देवकालिकायों में तीन गभंगह का प्रवेशद्वार दम्पतियो को प्रेमामक्त मुद्रा में उत्कीर्ण दिखाया गया गर्भगृह का प्रवेशद्वार तत्कालीन स्थापत्य का प्रति है। निकटवर्ती दोनों पंक्तियो की देवकुलिका प्रो में निधित्व करता है। यह प्रत्यन्त भव्य और सूक्ष्मता से सनी विभिन्न मुद्रायो में विभिन्न वाद्ययन्त्रों के साथ खडे हुए दश व मलंकृत है। चौखट के नीचे के भाग के मध्य में कौति- स्त्री-पुरुषों का नयनाभिराम अंकन है। मुख और मकरमुख की उभरी हुई सज्जा के दोनो ओर दायीं पोर मर्वप्रथम अपनी सहायक देवियों के साथ एक एक नत्य मण्डली के पश्चात् स्नेह क्रीडा में मग्न कर्मवाहिनी यमुना देवी का नितान्त नयनाभिराम अंकन सिंह और हाथी की भव्य प्राकृतिया दर्शित हैं, तथा बायी हया है। उसके ऊपर नागी को अवस्थित दिखाया गया 11. इस द्वार के दोनो पक्षों का विवरण गर्भगढ़ के प्रवेश है। इसके बायी अोर साधु पीछी कमण्डलु तथा ज्ञान का द्वार के दोनो पक्षों से मिलता जुलता है। अत: साधन ग्रन्थ घारण किए हुए दिखाये गये हैं। इसके वही से ज्ञात कर ले। ऊपर (बायी प्रोर की भांति) यहां भी पाच पाँच देव12. रायबहादुर दयाराम साहनी इस मन्दिर में केवल कुलिकाओं को तान प कुलिकाग्रो की तीन पंक्तियां हैं। मध्यवर्ती पक्ति में २० यक्षिणी प्रतिमायें देख सके। प्रेमामक्त दम्पतियो और निकटवर्ती पंक्तियों में पूर्ववत् ए. प्रो. रि०, पृ. ।। विभिन्न मुद्रामो मे विभिन्न वाद्ययन्त्र धारण किए हुए कदाचित उन्होंने मढियो के पीछे इमो मन्दिर की 13 पावों धनुर्वाग भण्डि-मुद्गरश्च फल वर । दिवाल में जडी २-२ यक्षी प्रतिमानो पर मर्परूप: श्यामवर्ग: कर्तव्य शान्तिमिच्छना।। नहीं दिया। यदि किया होना तो उन्हे २४ यक्षि- शुक्ल, डा० द्विजेन्द्र नाथ, भारतीय वास्तुशास्त्र, रिगयो की मुतिया अवश्य मिलती। प्रतिमा विज्ञान, पाठवा पटल, पृ० २७४
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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