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________________ भट्टारक विनयचन्द के समय पर विचार परमानन्द जैन शास्त्री भट्टारक विनय चन्द्र का जो ममय मैंने 'प्रशस्ति संग्रह का निर्णय नहीं देना चाहिए। द्वितीय भाग की प्रस्तावनामे दिया था। उस पर आपत्ति भटारक विनयचन्द्र माथर संघ के भट्टारक उदयचन्द्र करते हुए अगर चन्द जी नाहटा ने जन सन्देशकेशोधाक के शिष्य और बालचन्द मुनि के दीक्षा शिष्य थे । विनय की १८ मे पृष्ठ २७३ पर 'चूनडी' के रचयिता भ. विनय चन्द ने 'चूनडीगम' में 'मायुर मंघहँ उदय मुगीसर' और चन्द्र का समय' शीर्षक लेख में बिना किसी प्रमाण के निर्भर पचमी कहागम' मे उदयचन्द गुरु' रूप से उदयविनयचन्द्र का ममय १४०० के ग्राम-पास का बतलाया चन्द का स्मरण किया है। और बालचन्द का चूनड़ी में है। पौर निग्या है कि भापा के प्राधार पर उसका ममय बालइन्द गा गणहरू, नथा निर्भर पचमी कहा गस' में इसमे पूर्व का नहीं हो सकता । परन्तु प्रापने भाषा क उम 'वंदिवि बाल मूणे' रूप में उल्लेख किया है। इस कारण आधार का, जो पापके समय की समर्थक हो, उसका कोई वे उन दोनों के शिष्य थे। किन्तु उदय वन्द ने जब 'सुगधविश्लेषण या प्रमाण उपस्थित नहीं किया, और न कोई दशमी कथा बनाई, उस समय वे गृहस्थ थे; क्योंकि ऐसा ऐतिहामिक प्राधार ही उपस्थित किया जो उनके उन्होने उक्त कथा के अन्त में अपनी पत्नी 'देमति' का अभिमत को पुष्ट करना हो। ऐसी स्थिति मे उम कल्पना उल्लेख किया है। बाद में वे मुनि हो गए जान पडते है। को १४०० के ग्राम पास का समर्थक कैसे कहा जा सका। विनयचन्द ने जब 'नरक उतारी-कथा' लिखी, तब उसकी है? बिना किमी प्रमाण के दिगम्बर विद्वानों और उनकी प्रशस्ति मे उदयचन्द को मुनि नही लिखा किन्तु 'गुण रचनात्रों को अर्वाचीन बतलाना, तथा ज्ञान भंडारों की गणहर गरुवउ' रूप मे स्मरण किया है। और बालचन्द बिना किसी जाच के यह लिख देना कि दि० विद्वानो को मनिरूप मे स्मत किया है। जैसा कि उसके जिम्न पद्य द्वारा हम विषय का माहित्य नही रचा गया। बाद में से सष्ट है:वह साहित्य दि० भडागे मे मिल गया, तब उनकी वह 'उदय चन्दु गण गणहरु गहवउ, कल्पना निरर्थक हो गई । इममे लेख लिखते समय विचार सो मई भावें मणि अणसरियउ। कर ही लिखना चाहिए। दूसरे अमुक ग्रन्थकार ने अमुक बालइंदु मणि विवि णिरंतरु, सम्प्रदाय के ग्रन्थो का उल्लेख तक नहीं किया। यह उस जरग उतारी कहमि कहता ॥' शोधक विद्वान की कमी नही, उसने तो अपना प्रबन्ध इस कथा को कवि ने यमुना नदी के तट पर बसे हुए लिखने के लिए प्रयत्न किया ही होगा। फिर भी यदि महावन नगर के जिन मन्दिर मे रचा है। इससे सष्ट किमी सम्प्रदाय के किसी ग्रन्थका परिचय या अथ लेखक को जान पडता है कि उदयचन्द बाद में मुनि बने है। प्राप्त नहीं हा हो तो वह ऐमी स्थिति में उसका उल्लेख विनय चन्द ने 'निझर पचमी कहा रास' त्रिभुवन गिरि कमे कर सकता है ? गल्ती तो तब कहलाती जब उसके (नहनगड) की तलहटी में रचा है । और चूनड़ी रास की म मने वह ग्रथ होता और वह उसका उल्लेख भी न करता। रचना का स्थल त्रिभुवनगिरि नगर के प्रजय नरेन्द्र प्रत भविष्य मे इन बातो के सम्बन्ध मे नाहटा जी को १ अमिय सरीसउ जवण जलु, णयह महावणु सग्गु । थोडा-मा सयम से काम लेना चाहिए, जल्दी से उस विषय १ तहि जिण भवणि वसंत इणि विरहउ रासु समग्गु ।। १. देखो, जैन अन्य प्रशस्ति सग्रह दूमरा भाग पृ. ११७ -नरग उतारी कथा
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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