________________
चारुकीर्ति डा० विद्याधर जोहरापुरकर
भगवान गोम्मटेश्वर की महामूति से पवित्रीकृत तीर्थ चौथे उल्लेख का अनुमानित समय भी सन १२०० श्रवणबेलगुल मे जैन भट्टारकों का एक मठ है। यहा के है। बन्दलि के ग्राम के इस लेख मे अभय चन्द्र के शिष्य बहुत से प्राचार्यों के उल्लेख माणिकचन्द्र ग्रन्थमाला द्वारा चारुकोति द्वारा एक मन्दिर का जीर्णोद्धार किये जाने का प्रकाशित जैनाशिलालेखसंग्रह के पहले और तीसरे भाग मे वर्णन है (भाग ३ प० ६५) । प्राप्त होते है। इन में कई आचार्य चारुकीति इस एक ही
एक हा पाचवा उल्लेख धवणबेलगुल के एक समाधिलेख मे नाम से जाने जाते थे। पिछले वर्ष जनशिलालेखमग्रह का है जिसका समय शक १२३५ सन १३१३ है । इसम चौथा भाग प्रकाशित हुआ है। इस मे भी चारुकीति नामक
वर्णित देशीगण की गुरुपरम्परा इस प्रकार है-कुलभूषणकई प्राचार्यों के उल्लेख है । इन सब उत्लेखो का समन्वित
माघनन्दि-शुभचन्द्र-चारुकीर्ति-माघनन्दि-प्रभयचन्द्र अध्ययन प्रस्तुत करना ही इस लेख का उद्देश है। इस में
-बालचन्द्र-रामचन्द्र । रामचन्द्र के शिष्य शुभचन्द्र का जो ग्रन्थ-पृष्ठों के उल्लेख है वे सब उपर्युक्त जैनशिलालेख
उक्त वर्ष में स्वर्गवास हुप्रा था । अतः इसमें वर्णित चारसग्रह के है।
कीर्ति का समय भी सन १२०० के आसपास प्रतीत होता हमारे अध्ययन के अनुसार चारकीति नामक मब से
है (भाग १ पृ. ३०-३३) । पुगतन प्राचार्य यापनीय सघ के वृक्षमूल गण के मुनिचन्द्र विद्य के शिष्य थे । इन्हे सोविमेट्टि नामक सज्जन ने एक छठवा उल्लेख हले बीड के एक सम धिलेख मे है। उद्यान अर्पण किया था ऐमा वर्णन दोणि ग्राम के एक इसमे देशीगण की इगलेश्वरबलि की गुरुपरम्परा इस शिलालेख मे है । यह लेख सन १०६६ का हे (भाग ४ प्रकार बतलाई है---गण्डविमुक्त-शुभनन्दि-चारुकीर्तिपृ० १२२)।
माघनन्दि-अभयचन्द्र-बालचन्द्र-अभयचन्द्र । अन्तिम __ चारुकीर्ति नामक दूसरे प्राचार्य का उल्लेख श्रवणबेल- आचार्य अभयचन्द्र का स्वर्गवास शक १२०१=सन १२९६ गुल के शक १०५०-सन ११२८ के एक लम्बे शिलालेख मे हुमा था। अत इममें वर्णित चारुकीर्ति का समय भी मे है । लेख का लेखक बोकिमय्य उनका शिष्य था। किन्तु सन १२०० के ग्रामपास प्रतीत होता है (भाग ३ १० इसमे उनकी परम्परा अथवा गुरु ग्रादि के बारे में कोई ३७१-७३) । विवरण नहीं मिलता। (भाग १ पृ० ६७) ।
सातवा उल्लेख श्रवणबेनगुल के एक शिलालेख में तीसरा उल्लेख सौराष्ट के वेरावल नगर के एक है जिसका अनुमानित समय शक १२४७%१३२५ है। खण्डित लेख में है। नन्दिमघ के कई प्राचार्यों के नाम इसमें देशीगण के अभिनव चारुकीर्ति पण्डित के शिष्य इसमे है जिनमें एक चारुकीति भी है। किन्तु लेख प्राधा ।
द साधा मगायि द्वारा त्रिभुवनचूडामणिवसति बनवाने का वर्णन है टूटा होने में उनके गुरु-शिष्यादि के बारे में कोई विवरण (भाग १ पृ० २६०)। इसमे नही मिलता । इस लेख का समय बारहवी शताब्दी पाठवा उल्लेख कणवे ग्राम के शक १२८४मन का अन्तिम चरण है (भाग ४ पृ० २२१) । मंसूर प्रदेश १३६२ के एक लेख में है। इसके प्रारम्भ मे देशीगण गे बाहर चारुकीति नामक प्राचार्य का यह एकमत्र के चारुकीर्ति पण्डित की प्रशंमा है और बाद में महाराज उले व है।
बुक्कराय के समय में एक मन्दिर की भूमि के बारे मे