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________________ यशस्तिलक का सांस्कृतिक अध्ययन २७६ पर्याप्त प्रकाश डाला है। कालिदाम ने शाकुन्तल में चीना- मोमदेव ने कोट के अर्थ में ही प्रयोग किया है। भारतीय शुक का उल्लेख किया है। वृहत्कल्पमूत्र में इसकी व्याख्या माहित्य में बारबाण के उल्लेख कम ही मिलते है। चोलक आयी है। चीन और वाहीक से और भी कई प्रकार के भी एक प्रकार का कोट था। यह पौर कोटो की अपेक्षा वस्त्र पाते थे। चित्रपट सभवतया वे जामदानी वस्त्र थे, गबसे अधिक लम्बा और ढीला बनता था। इमे सब वस्त्रों जिनकी बिनावट में ही पशु-पक्षियों या फूल-पनियो की के ऊपर पहनते थे। उत्तर-पश्चिम भारत में नोगे के समय भॉन डाल दी जाती थी। बाण ने चित्रपट के तकियों का चाला या चोलक पहनने का रिवाज अब भी है। भारत में उल्लेख किया है। पटोल गुजगत का एक विशिष्ट वस्त्र चालक मभवतया मध्य एशिया से शक लोगो के साथ था। आज भी वहाँ पटोला माही का प्रचलन है। ग्राया और यहाँ की वेशभूषा मे समा गया। भारतीय गल्लिका लक नामक जगली बकरे के ऊन मे बना वेग- फिल्म में इस प्रकार के कोट पहने मूर्तियां मिलती है। कीमती वस्त्र था। युवागच्चाग ने भी इसका उल्लेच नाहातवः एक प्रकार का घधरीनुमा वस्त्र था। इसे स्त्री किया है। वस्त्रों में मवम अधिक उल्लेख दुकान के है। योर प्ररूप दानों पहनते थे। उष्णीष पगडी को कहते थे । आचाराग नथा निशीथ-वणि मे दुकूल की व्याम्या यागा भाग्न में विभिन्न प्रकार की पडियों बाधने का रिवाज है। पोण्ड नथा सुवर्णकुण्या के इकल विशिष्ट होते थे। प्राचीनकाल मे चला आया है। छोटे चादर या दुपट्टा को दुकूल की बिनाई, दुकल का जोड़ा पहनने का रिवाज, हम कोपीन कहत थे । उनरीय आढने वाला चादर था। चीवर मिथन लिखित कूल के जोडे दृकल के जाट पहनने की वाद्ध भिक्षुग्रो के वस्त्र कहलाते थे। प्राथमवामी माधुनो अन्य माहित्यिक माझी, दल की माडिया, पलगपोत, के वस्त्रों के लिए मोमदेव ने अावान कहा है। परिधान तकियों के गिलाफ, दुकूल और क्षाम वस्त्रों में अन्ना मोर , पुरुष की धोती को कहते थे । बुन्देलखण्ड की नोकभापा में ममानता इत्यादि का इस परिच्छेद में पर्याप्त विवंचन एमका गग्दनिया प अब भी सुरक्षित है। उपसव्यान किया गया है। अशक एक प्रकार का महीन वस्त्र था। डोटे नोछ को कहने थे। गुह्या कछुटिया लगोट था। यह कई प्रकार का होता था। मफेद तथा गीन मी हमालका ई भरे गई को कहा जाता था। उपधान प्रकार का ग्रशुक बनता था। भारतीय और चीनी याक तकिया के लिए बहु-प्रचलित शब्द था । कन्था पुगने कपड़ो की अपनी-अपनी विशेषताएं थी। कौगेय कोगकार कीटो को एक माथ मिलकर बनाई गई रजाई या गदरी थी। से उत्पन्न रेगम से बनना था। इन कीडोकी चार योनिया नमत ऊनी नमर्द थे । निचोल विस्तर पर बिछाने का बतायी गयी है। उन्ही के अनुसार कौशेय भी कई प्रकार चादर कहलाता था । सिचयोल्लोच चन्द्रातप या चदोवा का होता था। की कहते थे । इस परिच्छेद में इन समस्त वस्त्री के विषय पहनने के वस्त्रा में मामदेव ने कचुक, बारबाण. म प्रमाणक मामग्री के माथ पर्याप्त प्रकाश डाला गया है। चालक, चण्डातक, उप्णीप, कोपोन, उत्तरीय, चीवर, परिच्छेद पाठ में यशस्तिलक में उल्लिग्वित पाभूषणो भावान, परिधान उपमंव्यान, और गृह्या का उल्लेख किया का परिचय दिया गया है। भारतीय अल कारणास्त्र की है । कचुक एक प्रकार के लम्बे कोट को कहा जाता था। प्टि में यह सामग्री महत्त्वपूर्ण है। सोमदेव ने सिर के और स्त्रियों की चोली को भी। मोमदेव ने चोली के प्रथं प्राभपणा में किरीट, मौलि, पट्ट और मुकुट का उल्लेख में कचुक का उल्लेख किया है। वाग्वाण युटनों तक किया है। किरीट, मौलि और मुकुट भिन्न-भिन्न प्रकार पहुँचनेवाला एक शाही कोट था। भारतीय वंगभूपा में यह के मुकूट थे । किरीट प्रायः इन्द्र तथा अन्य देवी देवताओं मामानी ईगन की वेशभूषा में पाया। बारवाण पहलवी के मकट को कहा जाना था। मौलि प्रायः राजे पहनते थे भापा का संस्कृत रूप है। गिल्प नथा मृण्मूर्तियों में वार- नथा मुकुट महासामन्त पट्ट सिर पर बाधने का एक विशेष वाण के प्रकन मिलते है। स्त्री और पुरुप दोनो बाग्बाण प्राभूषण था, जो प्रायः सोने का बनता था। बृहत्सहिता पहनने थे। बारबाण जिरहबख्तर को भी कहते थे, किन्तु में पात्र प्रकार के पट्ट बताये है।
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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