SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 291
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त दि. फो. ७२ १९-२० वह बाउला तिस वस्त्रको फो. अपना अंग जानि प्रापर्व पर शरीरको एक मान ५८ ११ ...अपना अंग जानि आपका पर शरीरकू वस्त्र• एक माने दि. ७८ १२ जैसे बिल्ली मूसाको पकरि फो. पासक्त हो है । कोऊ मारै तौ दि. भी न छोरै । सो इहाँ इष्ट पना है। बहुरि ६२ १५ यहां 'सो इहाँ इप्टपना है' के स्थानमे 'सो इहाँ नीठि पावना' पाठ है। फो ६१ १७-२० बहुरि ऐसा जानना, तहा कषाय बहुत होय अर शक्ति- दि. हीन (होय तहाँ घना दुख हो है बहुरि जैसे कषाय घटता जाय शक्ति बघती जाय तैसे दुख घटता हो है। सो एकेन्द्रियनिक कषाय बहुत पर शक्तिहीन) तात एकेन्द्रिय महादुखी है। दि ७३१२ दि. स. का कोष्ठकगत पाठ यहाँ नही है। जेवरी सादिकके अयथार्थ फो. ज्ञान का जेवरी सादिकके यथार्थ अय थार्थ ज्ञान का १३८ १५ लोकपाल इत्यादि । अद्वैतब्रह्म दि. खुदा लोकपाल इत्यादि खुदा १६ बहुरि गउ सर्प इत्यादि १११ बहुरि मर्प इत्यादि २० बहुरि शास्त्र दवात १२ वहुरि शस्त्र दवात १३ परन्तु सूक्ष्म विचार किए तो एक अंश अपेक्षा ब्रह्मक अन्यथापना भया ११५६ परन्तु सूक्ष्म विचार किए तो एक अश घटया एक अंश अपेक्षा ब्रह्मकै अन्यथापना भया १४३ १४ मो जहाँ न्याय न होय है.महां ११६७ सो न्याय होय है तहाँ १५६ २-३ कैसे सहार कर है (अपने अंगनि ही करि सहार कर है कि इच्छा होतं स्वयमेव ही संहार होय है ?) जो अपने अगनि करि संहार कर है १६० २ दि. स. का कोप्टकगत पाठ यहाँ नहीं है। १६७ १५ फो. प्रि. प्रति (पृ. १३७ प. ६) मे की गई सूचना के अनुसार ही यहाँ प्रथमत. ज्ञानयोग का (पृ. १६७-७१) और तत्पश्चात् भक्तियोगका (पृ. १७१-७५) प्रकरण अप नाया गया है। १८६ १७ बहुरि कहोगे इनको जाने बिना प्रयोजनभूत तत्त्वनिका निर्णय न करि सके, २५५ बहुरि कहोगे इनको जाने प्रयोजनभूत तत्त्वनिका निर्णय करि सकै (देखो मोस. का मिलान) १९८८ बहुरि एक शरीरविष पृथ्वी आदि तौ भिन्न भिन्न भासै है चेतना होय तो लोहू उश्वा सादिकक (बीचमे पाठ छूटा है) ५ बहुरि एक शरीरविष पृथ्वी प्रादि तो भिन्न भिन्न भास है चेतना एक भास है जो पृथ्वी आदिक आधार चेतना होय तो होउ (सो. सं. हाड़) लोहो उश्वासादिक के फो. १६ जेवरी १३८
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy