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________________ २३८ अनेकान्त एव शिक्षा संबंधी संस्थानों को उदारतापूर्वक दान दिया हैं। अन्यत्र अप्राप्य पशियन, मुगल, राजपूत, कांगडा तथा है। अपने निवास स्थान "सिधी पार्क" में श्री बहादुर- पहाड़ी प्रादि शैली के प्राचीन चित्रों का संग्रह भी इस सिंह जी सिंघी भारतीय स्थापत्य शिल्प-निकेतन की' संग्रहालय में है। प्राचीन चित्रित ग्रंथो में कई पशियन स्थापना की है। पूर्वी बगाल से आए हुए उद्वासितो के ग्रथ ऐसे है जिनमे शाहजहाँ, औरंगजेब आदि बादशाहो के लिए अन्न, वस्त्र तथा जल के लिए भी आपने खर्च हस्ताक्षर तथा मुहर है। बादशाह औरगजेब जिस कुरान किया। को पढने थे वह भी इस संग्रह में है। जैन चित्रित ग्रथों में सन् १९६० मे लुधियाना में सम्पन्न अखिल भारतीय एक श्री शालिग्राम चरित्र है जिसमे सम्राट अकबर व श्वे. जैन सम्मेलन के आप सभापति थे । इसके अतिरिक्त जहाँगीर की सभा के प्रसिद्ध चित्रकार शालिवान द्वारा अनेक जैन मस्थाओं से, अध्यक्ष, कोषाध्यक्ष तथा सदस्य अंकित ३२ चित्र हैं। इस ग्रथ का लेखन व चित्रण विक्रमी होने के नाते प्रापका घनिष्ट सम्बन्ध रहा । पाप मुर्शिदा- मं० १६८१ द्वितीया चैत्र सुदि शुक्रवार तदनुसार अप्रैल बाद सघ के प्रथम सभापति थे। १ सन १६२६ ई० को सम्राट जहाँगीर के राज्य में समाप्त नरेन्द्रसिह जी एक प्रमुख उद्योगपति थे। पाप किया था। संग्रह मे कई ताम्रपत्र भी है।। फाबडाखण्ड कोलरीज प्रा. लि., मेसर्स मिदनापुर मिन- यह संग्रह विश्व के नामी सग्रहो में से एक है। दूर रल प्रा. लि. के डाइरेक्टर तथा दालचन्द बहादुरमिह देशान्तर विद्वान तथा सुप्रसिद्ध लोग इस संग्रह का अवके मालिक और न्यू इण्डिया टूल्स लि. के बोर्ड आफ लोकन करने आते है और सभी इसकी हादिक प्रशसा डाइरेक्टर्स के चेयरमैन थे। करने है। श्री सिघी जी की तरफ से भी बिद्वानो एव सन् १९५६ मे पाप "इण्डिया माइनिंग फेडरेशन" के विदेशियों को इस सग्रह की वस्तुओं का अध्ययन करने के चेयरमैन, सन १९६२ मे "जियोलाजिकल माइनिग एड लिए पूर्ण सहयोग एवं सुविधाए दी जाती थी। मैटिलजिकल सोसाइटी आफ इण्डिया" के सभापति तथा अपने स्व. पिता के निकट मित्र प्रसिद्ध जैन विद्वानों कोल कौन्सिल आफ इण्डिया के सदस्य थे । स्व० सिंघी जी को अपनी विद्वत्ता एव विद्याप्रेम से श्री नरेन्द्रसिह जी ने "मैनेजमेण्ट कमेटी आफ इण्डियन चैम्बर ग्राफ कामर्म प्राकृाट किया। पिता जी के बहुमूल्य सिक्के, चित्र, मूत्ति कलकत्ता के और मध्यप्रदेश गवर्नमेण्ट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड तथा हस्तलिखित ग्रथ आदि का सारा गंग्रह आपको मिला के भी सदस्य थे। था। उस संग्रह को आपने बढाया। इस संग्रह को प्रकाश सिंघी जी कलकत्ता ही नही भारत भर मे अपनी में लाने तथा इन विषयो को बिद्वानो को उसे अध्ययन कला विद्वत्ता एव सुरुचिपूर्ण कला संग्रह के लिए विख्यात करने के लिए अवसर देने का भी प्रबन्ध किया। थे। इण्डियन म्यूजियम कलकत्ता के बोर्ड आफ ट्रस्टीज के विज्ञान के विद्यार्थी होने पर भी श्री सिघी जी की तो वे अपने जीवन काल तक आनरेरी सचिव थे। कला मे अपार रुचि थी। जल मन्दिर के श्रेष्ठ शिल्प, आपका निवासस्थान "सिघी पार्क" पुरातन हस्त- सौन्दर्य से परिपूर्ण तोरण, चारो ओर बाहरी दिवाल बर्ज, लिखित पुस्तकों, विरल चित्रों, उत्कृष्ट मूर्तियो, हाथीदांत काटन स्ट्रीट कलकत्ता का संगमरमर निर्मित अनुभाग की बनी हुई वस्तुओं, भारतीय टिकटो (खासतौर से और श्री सम्मेद शिखर जी तथा अजीमगज के मन्दिरों के भारतीय सिक्कों जो कि भारत के व्यक्तिगत सग्रहो में पुननिर्माण प्रापके मूक्ष्म सौन्दर्य बोध के कतिपय उदासर्वोत्तम माने जाते है) के ही कारण नही वरन शानदार हरण है। बगीचों, मुगलकालीन रीति से निर्मित भव्य फव्वारो के कला तथा स्थापत्य शिल्प सबधी ज्ञान के क्षेत्र में कारण भी भारतीय तथा विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षक आप अपने स्व० पिता से अनुप्रेरित हुए थे। श्री पावापूरी केन्द्र बना रहा है। जल मन्दिर की चाहारदिवारी एव श्री सम्मेद शिखर जी अनमोल हाथीदात की पुरानी मूत्तियाँ भी इस संग्रहमे के मन्दिरों का जीर्णोद्धार और पुननिर्माण प्रापके इस तीव
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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