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________________ २२० अनेकान्त 'पावुस कहा जाये और पूर्व-दीक्षित को 'भन्ते' या निर्वाण के अनतर सहम्पति ब्रह्मा ने, देवेन्द्र शक्र ने, 'आयुष्मान्' कहा जाये। आयुष्मान् अनुरुद्ध ने तथा आयुष्मान् प्रानन्द ने स्तुति३. "पानन्द ! मेरे पश्चात् चाहे तो संघ छोटे और गाथाए कही। साधारण भिक्ष-नियमो को छोड़ दे । । उस समय अवीतराग भिक्षु क्रन्दन करने लगे, रोने ४. "प्रानन्द ! मेरे पश्चात् छन्न-भिक्ष को ब्रह्म-दण्ड लगे, कट वृक्ष की तरह भूमि पर गिरने लगे। अनुरुद्ध ने करना चाहिए।" उनका मोह-निवारण किया । तब भगवान् ने उपस्थित भिक्षुओ से कहा- "बुद्ध, तब आयुष्मान् प्रानन्द कुसिनारा मे गये, सस्थागार धर्म और सघ मे किमी को प्राशका हो, तो पूछ ले। नहीं में एकत्रित मल्लो को उन्होने कहा-"भगवान् परिनिर्वृत्ति तो फिर अनुताप होगा कि मैं पूछ न सका।" भगवान् के हो गये है. अब जिसका तुम काल समझो।" इस दु.खद एक बार, दो बार और तीन बार कहने पर भी सब। सवाद से साग कुसिनारा शोक-सतप्त हुआ। भिक्षु चुप रहे। तब कुसिनारा के मल्लो ने ६ दिन तक निर्वाणोत्सव ___ तब मानन्द ने कहा--"भगवन् ! इन पाँच सौ मनाया । अन्त्येष्टि की तैयारियाँ की। सातवे दिन आठ भिक्षुत्रो में कोई सन्देहशील नही है। सब बुद्ध, धर्म और मल्ल-प्रमुखो ने भगवान् के शरीर को उठाया । देवता सघ मे आश्वस्त है।" और मनुष्य नृत्य करते साथ चले। जहाँ मुकुट-बधन तब पाचन्द ने कहा-"हन्त ! भिक्षुओ। अब तुम्हे नामक मल्लो का चैत्य था, वहाँ सब आये। प्रानन्द के कहता हूं। सस्कार (कृत-वस्तु) व्ययधर्मा है । अप्रमाद से मार्ग-दर्शन पाकर चक्रवर्ती की तरह भगवान् का अन्त्येष्टि जीवन के लक्ष्य का संपादन करो। यह तथागत का प्रतिम कार्य सम्पन्न करने लगे। उसी कम से भगवान् के शरीर वचन है।" को चिता पर रखा। निर्धारण-गमन तब भगवान् प्रथम ध्यान को प्राप्त हुए । प्रथम ध्यान महाकाश्यप का प्रागमन से उठकर द्वितीय ध्यान को प्राप्त हुए। इसी प्रकार कमन उस समय मल्लो ने चिता को प्रज्वलित करना तृतीय व चतुर्थ ध्यान को। तब भगवान् आकाशान्त्या चाहा। पर वे वैसा न कर सके। आयुष्मान् अनुरुद्ध ने यतन को प्राप्त हुए, तदनन्तर विज्ञानानन्त्यायतन को, इसका कारण बताया-“वाशिप्टो । तुम्हारा अभिप्राय सज्ञावेदयित-निरोध को प्राप्त हुए । प्रायुप्मान् आनन्द ने कुछ और है और देवताओ का अभिप्राय कुछ और। आयुष्मान् अानन्द से कहा-"क्या भगवान् परिनिर्वृत देवता चाहते है, भगवान् की चिता तब जले, जब आयुहो गये?" अनुरुद्ध ने कहा - "नही आनन्द ! भगवान् प्मान् महाकाश्यप भगवान का चरण-म्पर्श कर ले।" सज्ञावेदयित-निरोध को प्राप्त हुए है।" तब भगवान् _ “कहाँ है भन्ते ! आयुष्मान् महाकाश्यप ?" सजावेदयित-निरोध-समापत्ति (चारो ध्यानो के ऊपर की अनुरुद्ध ने उत्तर दिया--"पाँचमौ भिक्षुप्रो के साथ ममाधि) से उठकर नवमजावामजायतन को प्राप्त हुए। . व पावा और कुसिनाग के बीच रास्ते में आ रहे है।" तब क्रमशः प्रतिलोम से पुन सब श्रेणियो को पार कर मल्लो ने कहा-“भन्ते । जैसा देवताओ का अभिप्राय प्रथम ध्यान को प्राप्त हुए। तदनन्तर क्रमश चतुर्थ हो वैसा ही हो।" ध्यान में आये और उसे पार कर भगवान् परिनिर्वाण प्रागुप्मान् महाकाश्यप मुकुट-बधन चैत्य मे पहुँचे। को प्राप्त हुए। उस समय भयकर भूचाल पाया, देव तब उन्होने चीवर को एक कधे पर कर, अजलि जोड, दुन्दुभियों बजी। तीन बार चिता की परिक्रमा की। वस्त्र हटा कर अपने १. "हद दानि, भिक्खवे. प्रामतयामि वो-वयधम्मा, शिर से चरण-स्पर्श किया। सार्धवर्ती पाचसौ भिक्षुप्रो ने सङ्कारा, अप्पमादेन सम्पादेथा" त्ति । भी वैसा किया। यह सब होते ही चिता स्वय जल उठी।
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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