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________________ २१८ अनेकान्त 'भन्ते ! आपकी संघाटी पर गर्द पड़ी है ?' वन में शाल-वृक्षों के बीच तथागत का परिनिर्वाण होगा।" 'हाँ प्रावुस !' ककुत्था नदी पर तब उस पुरुष को हुआ--'आश्चर्य है ! अद्भुत है ! भगवान् भिक्षु-सघ-सहित ककुत्या नदी पर आये। प्रवजित लोग आत्मस्थ होकर कितने शान्त विहार से स्नान किया। नदी को पार कर तटवर्ती आम्रवन मे विहरते है !' पहुँचे। विश्राम करते भगवान् ने कहा-"आनन्द ! चुन्द भगवान् ने कहा-"पुक्कुस ! एक बार मैं प्रातुमा कर्मार-पुत्र को कोई कहे-'पावुस चुन्द ! अलाभ है तुझे के भुसागार मे विहार करता था। उस समय जोगें से दुर्लभ है तुझे, तथागत तेरे पिण्डपात को खाकर परिनिर्वाण पानी बरसा। बिजली कडकी। उसके गिरने से दो किसान। को प्राप्त हुए'; तो तू चुन्द के इस अपवाद को दूर करना चार बैल मरे। उस समम एक आदमी मेरे पास आया उसे कहना-पावस चन्द ! लाभ है तुझे, सुलाभ है तुझा और बोला-'भन्ते ! मेघ बरसा, बिजली कड़की, किसान तथागत तेरे पिण्डपात को खाकर परिनिर्वाण को प्राप्त पौर बैल मरे । आपको मालूम पडा भन्ते ?' हुए हैं और उसे बताना-'दो पिण्डपात समान फल वाले 'नही प्रावुस !' होते है : जिस पिण्डपात को खाकर तथागत अनुत्तर 'आप कहाँ थे?' सम्यक् सम्बोधि प्राप्त करते है तथा जिस पिण्डपात को 'यही था।' खाकर तथागत निर्वाण-धर्म को प्राप्त करते है'।' 'बिजली कडकने का शब्द सुना, भन्ने ?' कृसिनारा में 'नहीं आवुम ।' ककुत्था के आम्रवन में विहार कर भगवान् कुसिनाग 'क्या प्राप सोये थे? की ओर चले । हिरण्यवती नदी को पार कर कुसिनारा मे 'आप सचेतन थे?" जहाँ मल्लो का "उपवत्तन" शालवन है, वहा पाये। 'हाँ प्रावस ।' जुडवे शाल-वृक्षो के बीच भगवान् मचक (चारपाई) पर पूक्कम ! तब उस प्रादमी को हुपा-'पाश्चर्य है, लेटे । उनका सिरहाना उत्तर की पोर था। अद्भुत है, यह शान्त विहार ।" उस समय आयुष्मान् उपवान भगवान् पर पखा पुक्कुस मल्ल-पुत्र यह बात सुनकर बहुत प्रभावित हिलाते भगवान् के सामने खडे थे। भगवान् ने अकस्मात् हमा और बोला-"भन्ते । यह बात तो पाँच सौ गाडियो कहा-"हट जाओ भिक्षु । मेरे सामने से हट जाओ।" हजार गाडियो और पांच हजार गाडियो के निकल जाने से आनन्द ने तत्काल पूछा---''ऐसा क्यो भगवन् ?" भगवान् भी बडी है। प्रालार-कालाम मे मेरी जो श्रद्धा थी, उसे ने कहा-"आनन्द । दशो लोको के देवता तथागत के आज मैं हवा में उड़ा देता हूँ, शीघ्र धारवाली नदी में दर्शन के लिए एकत्रित हए है। इस शालवन के चारो बहा देता है। आज से मुझे शरणागत उपासक धारण और बारह योजन तक बाल की नोक गडाने-भर के लिए करे।" तब पूक्कूस ने चाकचिक्यपूर्ण दो सुनहरे शाल भी स्थान ग्वाली नही है। देवता खिन्न हो रहे है कि यह भगवान को भेट किये, एक भगवान के लिए और एक पखा झलने वाले भिक्षु हमारे अन्तरायभूत हो रहा है। प्रानन्द के लिए। आनन्द ने कहा-“देवता आपको किस स्थिति मे दिखपुक्कुस मल्ल-पुत्र चला गया। प्रानन्द ने अपना शाल लाई दे रहे है ?" । भी भगवान् को प्रोढ़ा दिया। भगवान् के शरीर से ज्योति “आनन्द ! कुछ बाल खोलकर रो रहे है, कुछ हाथ उद्भूत हुई । शालों का चाकचिक्य मन्द हो गया। प्रानन्द पकड कर चिल्ला रहे है, कुछ कटे वृक्ष की भांति भूमि के पूछने पर भगवान ने कहा-"तथागत की ऐसी वर्ण- पर गिर रहे है। वे विलापात कर रहे है-'बहुत शीघ्र शद्धि बोधि-लाभ और निर्वाण ; इन दो अवसरो पर होती सुगत निर्वाण को प्राप्त हो रहे है, बहुत शीघ्र चक्षुष्मान् है। आज के अन्तिम प्रहर कूसिनारा के मल्लों के शाल- लोक से अन्तर्धान हो रहे हैं।"
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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