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श्रीधर स्वामी की निर्वाण भूमि,
कुण्डलपुर
धोजगन्मोहनलाल जी शास्त्री [मध्यप्रदेश का प्रसिद्ध क्षेत्र कुण्डलपुर अपनी प्राकृतिक सुषमा के लिये तो विख्यात है ही, वहाँ स्थापित बड़े बाबा की अद्वितीय विशाल और अतिशय सौम्य प्रतिमा के लिए भी यह क्षेत्र उल्लेखनीय है।
प्रतिम केवली श्रीधर स्वामी की निर्वाण भूमि होने के कारण यही कुण्डलपुर क्षेत्र "सिद्ध क्षेत्र" भी है ऐसी स्थापना इस लेख के विद्वान लेखक श्रीमान् पडित जगन्मोहनलालजी शास्त्री ने इस लेख में की है। लेखक द्वाग प्रस्तुत शास्त्रीय प्रमाण और उनका विवेचन तथा लेखक की नवीन शोधजन्य धारणाएं विचारणीय है। -सम्पादक]
अतिम केवली श्रीधर स्वामी को निर्वाण भूमि का श्रीधर केवली कब हुए? अन्तिम केबली तो जम्बू स्वामी नामोल्लेख तिलोयपण्णत्ति, निर्वाण काण्ड, आदि मे आया कहे गये है, फिर ये चरम केवली कैसे हुए ? कुण्डलगिरि है। इन्ही के आधार पर उक्त निर्वाण भूमि का निर्णय कौन सा स्थान है ? इत्यादि । अथ के आलोकन से यह करने का प्रयास कुछ विद्वानो द्वारा पिछले बीस-बाइस जाना जाता है कि केवली तो अनेक के प्रकार होते है पर वर्षों में किया गया है। इस सबध के प्राय सभी शास्त्रीय प्रत्येक तीर्थकर के समय दो तरह के कंबली मुख्यतया कहे उल्लेखों को दृष्टि मे रखकर तत्सबधी उपलब्ध लेखो का गये है। १. अनुसंधान या अनुबद्ध केबली, और २. अननुमनन करके तथा कुछ नवीन उद्घाटित प्रमाणो पर विचार बध या अननुबद्ध केवली। करते हुए इस लेख में भगवान श्रीधर स्वामी के निर्वाण अनुबद्ध केवली वे है जो भगवान तीर्थंकर के समवस्थल पर विचार करते हुए मध्यप्रदेश के दमोह जिले मे शरण मे स्थित अनेक शिष्यों में भगवान के पश्चात् मुख्य स्थित प्रसिद्ध और मनोरम क्षेत्र कुण्डलपुर को उनकी उपदेष्टा परम्परा में केवल ज्ञानी होकर हुए। इस तरह सिद्धभूमि मानने के कारण और साक्ष्य प्रस्तुत करने का जो परिपाटी क्रम से हुए वे अनुबद्ध केवली है। मे प्रयास कर रहा हूँ। इस लेख का प्रारम्भ शास्त्रोक्त तथा जो परिपाटी क्रम मे नही हुए किन्तु केवली प्रमाणों से करते हुए सर्वप्रथम हम तिलोयपण्णत्ति की हुए वे अनुबद्ध केवली कहलाते है। इनकी संख्या प्रत्येक सदभित गाथा पर विचार करेगे।
तीर्थकर के समय अलग-अलग बताई गई है । जैसेश्रीतिलोयपण्णति प्रथ यतिवृषभाचार्य द्वारा रचित है
भगवान ऋषभदेव के समवशरण मे केवली संख्या जा श्रीजीवराज प्रथमाला द्वारा वि. सं. २००० मे प्रका
२०००० पर अनुबद्ध केवली केवल ८४ । श्री अजितनाथ शित हुआ है। यह त्रिलोक सबधी वर्णन करने वाला
के समवशरण मे सम्पूर्ण केवलज्ञानियों की संख्या २०००० प्राचीन ग्रंथ प्राकृत भाषा में है। प्रथ के स्वाध्याय काल
पर अनुबद्ध केवली केवल ८४ । इसी प्रकार प्रत्येक तीर्थम गाथ। सख्या १४७६ पढ़ने में इस प्रकार आई
कर के अनुबद्ध और अननुबद्ध केवली की सख्याए भिन्न
है। श्रीमहावीर तीर्थकर के समवशरण मे केवलज्ञानी कुण्डल गिरिम्मि चरिमो केवलणाणीसु सिरिधरो सिद्धो। ७०० ये और अनुबद्ध केवली केवल ३ थे। अर्थात् चरम केवली श्रीधर कुण्डलगिरि से सिद्ध हुए। इसका यह अर्थ है कि भगवान महावीरके पट्टशिष्य श्री इस गाथा के पढ़ने के बाद अनेक प्रश्न खडे हुए। ये गौतम गणधर थे यद्यपि गणधर ११ थे पर मुख्य गणधर श्री