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________________ गावामी के चालुक्य नरेश और जैनधर्म १२९ चालुक्य अभिलेख लक्ष्मेश्वर मे मिले है । यह इस तथ्य तथा शिगांव में उपलब्ध ताम्रपट, इस तथ्य को उद्घोकी ओर संकेत करता है कि प्राधुनिक लक्ष्मेश्वर प्राचीन षणा करते है कि चालुक्य नरेशो के राज्य काल में जैन काल मे, जैनधर्म के प्रसार और प्रचलन का एक प्रमुख धर्म को फलने, फलने और फैलने का पूर्ण अवसर पौर केन्द्र था। अधिकतर चालुक्य-जैन अभिलेख आधुनिक वातावरण मिला था। राज्य की ओर से उन्हें संरक्षण, धारवाड जिले में मिले है। फलत: यह स्पष्ट हो है कि सहायता और निर्बाध स्त्र सिद्धान्तो, प्रादर्शों तथा नियमो प्राधुनिक धारवाड जिला और उसके प्रासपास के क्षेत्र को पालन करने की स्वतत्रता थी। सरक्षण का तात्पर्य मे, उस युग मे इस धर्म ने पर्याप्त प्रभाव और प्रसिद्धि यह नहीं है कि इस धर्म को राजकीय मरक्षण प्राप्त था । प्रजित की थी। राजवश के अनेको मदस्यो का विभिन्न मतावलम्बियो विडम्बना का विषय है, कि प्राधे से अधिक और को प्राश्रय तथा सहायता देना, चालुायों की धर्म निरपेक्षता लक्ष्मेवर से प्राप्त सभी जैन-अभिलेखों को पनीट जैसे को प्रमाणित करता है। विद्वान ने जाली करार दिया है२४ । लेकिन बाद में अन्त में हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते है कि चालुक्य उपलब्ध साक्ष्यो ने फ्लीट के इस मत को, सभी अभिनेखो नरेशो के शासन काल में दक्षिण-पश्चिम भारत मे जैन के प्रनि तो नही, परन्तु कुछ के प्रति अमगत सिद्ध कर धर्म का पर्याप्त प्रमार हुमा । स्वयम् चालुक्य सम्राटो दिया है। कुछ भी हो, ऐसे अभिलेख जिनको मत्यता पर तथा उनके परिवार के सदस्यो ने इस पुनीत कर्म की शंका नही की जा सकती है २५, यद्यपि थोडे है, परन्तु ओर अपनी सहायता प्रौर महानुभूति व्यक्त कर धार्मिक अपने में वह उम सामग्री को संजोये हुए है, जो चालुक्य प्रौदार्य का एक अमिट उदाहरण प्रस्तुत किया है। जैन नरेशो के इस धर्म के प्रति दृष्टिकोणो को स्पष्ट करत मूलमघ परम्पग की देवगण शाया को इस क्षेत्र में पर्याप्त है। एहोल प्रशस्ति, प्राडूर अभिलेख, अणिगेरि अभिलेख सहायता मिली थी। अनेको नगर जैन संस्कृति और धम २४ इण्डियन एण्टिक्वेरी, जिल्द ३०, पृ० २१७-२१८ प्रचार के केन्द्र बन गये थे। इस धर्म के प्रचार और प्रमार २५ एहोल प्रशस्ति, पाइर अभिनेख, अणिगेरि अभिलेख ने कन्नड और संस्कृत भाषा को भी विकसित होने का एवम शिगांव ताम्रपत्र । सुअवसर प्रदान किया था। अनेकान्त की पुरानी फाइलें अनेकान्त की कुछ पुरानी फाइले अवशिष्ट है जिनमे इतिहास, पुरातत्व, दर्शन और साहित्य के मम्बन्ध मे खोजपूर्ण महत्व के लेख लिखे गए है जो पठनीय तथा सग्रहणीय है। फाइल अनेकान्त के लागत मूल्य ) २० मे दी जावेगी, पोस्टेज खर्च अलग होगा। फाइले वर्ष ४, ५, ८, ९, १०, ११, १२, १३, १४, १५, १६, १७, १८, १९ वर्षों की है। अगर मापन अभी तक नही मंगाई है तो शीघ्र मगवा लीजिए, क्योकि फाइले थोड़ी ही प्रवशिष्ट है। मैनेजर 'अनेकान्त' बोरसेवामन्दिर २१ दरियागंज, दिल्ली।
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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