SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विषय म का विषय-सूची जिनवाणी के भक्तों से क्रमाक वीरमेवामन्दिर का पुस्तकालय अनुसन्धान मे सम्बन्ध १. मुपाश्व-जिन स्तुनि.-ममन्तभद्राचार्य | रखता है। अनेक गोधक विद्वान अपनी थीसिस के लिए २ अग्रवालों का जैन मस्कृति मे योगदान उपयुक्त मंटर यहा में मगहीत करके ले जाते है। मचापरमानन्द शास्त्री १८ लक गण चाहते है कि वीमेवादिर की लायब्ररी को ३. प्राचार्य हेमचन्द के योगशास्त्र पर एक प्राचीन और भी उपयोगी बनाया जाय तथा मुद्रित और अमुद्रित दिगम्बर टीका -श्री जुगलकिशोर मुम्तार १०७ शास्त्रों का अच्छा मग्रह किया जाय । प्रत. जिनवाणी के ४. मागार धर्मामत पर इतर श्रावकाचार्ग का प्रेमियो मे हमारा नम्र निवेदन है कि वे बीसेवामन्दिर प्रभाव-प. बालचन्द्र मिद्धान्त-शास्त्री ११६ लायन को उच्चकोटि के महत्वपूर्ण प्रकाशित एव हस्त५. बादामी के चालुक्य नरेश और जैन धर्म लिखित ग्रन्थ भेट भेज कर तथा भिजवा कर अनुगहीत प्रो० दुर्गाप्रसाद दीक्षित एम. ए | करे। यह मथा पुरातत्त्व पोर अनुसन्धान के लिए प्रसिद्ध है। ६. जैन तक में हन्वनुमान-डा० प्रद्युम्न कुमार १३० व्यवस्थापक ". मह न सन्त भट्टारक विजय कीति-- वीरसेवा मन्दिर, १ दरियागज दिल्ली डा० कस्तुर चन्द कासलीवाल ८. महाकवि समय सुन्दर और उनका दानशील तप भावना सवाद-मयनारायण स्वामी एम. ए. ४६ ६. माहित्य-समीक्षा-परमानन्द शास्त्री अनेकान्त के ग्राहकों से अनेकान्त के ग्राहक बनें । अनेकान्त के जिन प्रेमी ग्राहको का वार्षिक मूल्य 'अनेकान्त पुराना ख्यातिप्राप्त शोध-पत्र है। अनेक प्राप्त नहीं हुग्रा है । हे चाहिए कि वे वे वर्ष का विद्वानों और समाज के प्रतिष्ठित व्यक्तियो का अभिमत वार्षिक शुल्क छह रुपया मनीप्रार्डर में भिजवा दे । है कि वह निरन्तर प्रकाशित होता रहे। ऐसा तभी हो अन्यथा अगला अक वी० पी० से भेजा जावैगा, जिसमें सकता है जब उसमें घाटा न हो और इसके लिए ग्राहक ८५पमा वी० पी० बर्च का देना होगा। प्राशा ही नही संख्या का बढ़ाना अनिवार्य है । हम विद्वानों, प्रोफेसरों, | किन्तु विश्वास है कि प्रेमी पाठक वार्षिक मूल्य भेज कर विद्याथियो, सेठियों, शिक्षा-संस्थानों, संस्कृत विद्यालयों, अनुगृहीत करेगे। कालेजो पौर जनश्रत की प्रभावना में श्रद्धा रखने वालो व्यवस्थापक 'अनेकान्त' से निवेदन करते है कि वे 'अनेकान्त' के प्राहक स्वयं बने और दूसरों को बनाये । और इस तरह जैन सस्कृति के धोरसेवामन्दिर २७, दरियागंज, दिल्ली प्रचार एवं प्रसार में सहयोग प्रदान करे। व्यवस्थापक 'प्रनेकान्त' सम्पादक-मण्डल डा० प्रा० ने० उपाध्ये डा. प्रेमसागर जैन श्री यशपाल जैन __ अनेकान्त का वार्षिक मूल्य ६) रुपया एक किरण का मूल्य १ रुपया २५ १० अनेकान्त में प्रकाशित विचारों के लिए सम्पादक मण्डल उत्तरदायी नहीं हैं। व्यवस्थापक अनेकान्त
SR No.538020
Book TitleAnekant 1967 Book 20 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1967
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy