SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६६ अनेकान्त खण्डित मूर्तियों की बाद में सरकार की भोर से मरम्मत करा दी गई है फिर भी उनमें अधिकांश मूर्तियों स ण्डित मौजूद हैं। बाबा बावड़ी और जैन मूर्तियां है ग्वालियर से लश्कर जाते समय बीच में एक मील के फासले पर 'बाबा बावडी' के नाम से प्रसिद्ध एक स्थान पढ़ने पर किले के नीचे पहाड़ की विशाल चट्टानो को सबक से करीब डेढ़ फर्लाङ्ग चमने धौर कुछ ऊँचाई काटकर बहुत-सी पद्मासन तथा कायोत्सगं मूर्तियाँ उत्कीर्ण की गई है। ये मूर्तियाँ स्थापत्यकला की दृष्टि से अनमोल हैं। इतनी बड़ी पद्मासन मूर्तियाँ मेरे देखने मे अन्यत्र नहीं धाई। बावड़ी के बगल में दाहिनी ओर एक विशाल खड्गासन मूर्ति है। उसके नीचे एक विशाल शिलालेख भी लगा हुआ है, जिससे मालूम होता है कि इस मूर्ति की प्रतिष्ठा वि० सं० १५२५ मे तोमरवशीय राजा डूंगर सिंह के पुत्र कीर्तिसिंह के राज्यकाल में हुई है । खेद है कि इन सभी मूर्तियो के मुख प्रायः खण्डित है। यह मुस्लिम युग के धार्मिक विद्वेष का परिणाम जान पड़ता है इन मूर्तियो की केवल मुखाकृति को ही नहीं बिगाड़ा गया किन्तु किसी किसी मूर्ति के हाथ-पैर भी खण्डित कर दिए गये है । इतना ही नहीं किन्तु विद्वे षियों ने कितनी ही मूर्तियो को गारा-मिट्टी से भी चिनत्रा दिया था और सामने की विशाल मूर्ति को गारा-मिट्टी से छाप कर उसे एक कद्र का रूप भी दे दिया था, परन्तु सितम्बर सन् १९४७ के दगे के समय उनसे उक्त स्थान की प्राप्ति हुई। संग्रहालय सन् १८९१ में दुर्ग पर मराठों का अधिकार हो गया । तब से उन्ही का शासन रहा और अब स्वतन्त्र भारत में मध्यप्रदेश का शासन चल रहा है। जैन मन्दिर और मूर्तियां किले में कई जगह जंग मूर्तियां खुदी हुई है। किता कला की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, इस किले मे से शहर के लिये एक सड़क जाती है। इस सड़क के किनारे दोनों और विशाल बट्टानो पर उत्कीर्ण की हुई कुछ जैन मूर्तियां अकित हैं। ये सब मूर्तियाँ पाषाणों की कर्कश चट्टानो को खोदकर बनाई गई हैं । किले में हाथी दरवाजा और सासबहू के मन्दिरों के मध्य मे एक जैन मन्दिर है जिसे मुगल शासनकाल मे एक मस्जिद के रूप मे बदल दिया गया था । खुदाई करने पर नीचे एक कमरा मिला है जिसमे कई नग्न जैन मूर्तियाँ हैं और एक लेख भी सन् १९०८ (वि० सं० १९६५) का है, ये मूर्तियां कायोत्सर्ग तथा पद्मासन दोनो प्रकार की है। उत्तर की वेदी मे सात फणसहित 'भगवान श्री पार्श्वनाथ की सुन्दर पद्मासन मूर्ति है। दक्षिण की भीत पर भी पाच वेदिया है जिनमे से दो के स्थान रिक्त हैं। जान पड़ता है कि उनकी मूर्तियां विनष्ट कर दी गई है। उत्तर की वेदी मे दो नग्न कायोत्सर्ग मूर्तियां अभी भी मौजूद है, और मध्य मे ६ फुट ८ इंच लम्बा प्रसन एक जंन मूर्ति का है । दक्षिणी वेदी पर भी दो पद्मासन नग्न मूर्तियां विराजमान है। दुर्ग के उरवाही द्वार की मूर्तियो में भगवान् श्रादिनाथ की मूर्ति सबसे विशाल है, उसके पैरो की लम्बाई नौ फुट है और इस तरह पैरों से तीन चार गुनी ऊँची है मूर्ति की कुल ऊंचाई ५७ फीट से कम नहीं है। श्वेताम्बरीय विद्वान् मुनि शीलविजय और सौभाग्य विजय ने अपनी अपनी सीमाला मे इस मूर्ति का प्रमाण बावनगज बतलाया है१ । जो किसी तरह भो सम्भव नहीं हैं । और बाबर ने श्रात्मचरित मे इस मूर्ति को करीब ४० फीट ऊँचा बतलाया है, वह भी ठीक नही है । कुछ १. वाचन गज प्रतिमा दीसती, गढ़ ग्यालेरि सदा सोमती | ३॥ गढ़ शीलविजयतीर्थमाला पृ० ११२ गढ़ ग्वालेर बावनगज प्रतिमा बदू ऋॠषभरंगरोलीजी ॥ सौभाग्यविजय तीर्थमाला १४२, पृ० १८ " ग्वालियर के किले मे एक अच्छा संग्रहालय है जिसमें हिन्दू, जैन और बौद्धो के प्राचीन अवशेषो मूर्तियों, शिला लेखों और सिक्कों प्रादि का संग्रह किया गया है। इससे जैनियों की गुप्तकालीन खड्गासन मूर्ति भी रक्खी हुई है, जो कलात्मक है और दर्शक को अपनी ओर प्राकृष्ट बिमालेख भी है। करती है, इसी में स० १३१६ का भीमपुर का महत्वपूर्ण ग्वालियर के आस-पास उपलब्ध ऐतिहासिक सामग्री खूबकुण्ड के शिलालेल - दूबकुण्ड का दूसरा नाभ
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy