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प्रकाशकीय
जैनधर्म ग्रोर जैन संस्कृति के अनन्य प्रेमी, प्रमुख थे। वे सेवाकाय मे जीवन खपा देने वाले उदार व्यक्ति समाज सुधारक और वीरसेवा मन्दिर के अध्यक्ष बाबू थे। वीरसेवा मन्दिर के भवन-निर्माण में उन्होने जो छोटेलालजी का ७० वर्ष की अवस्था मे २६ जनवरी मन् कठोर श्रम किया, वह उनकी निःस्वार्थ सेवा-वृत्ति का ६६ को कलकत्ता में प्रात काल स्वर्गवास हो गया। इस परिचायक है। इसके माध्यम से उन्होने अनेक लोकोपसमाचार से वीरसेवा मन्दिर परिवार में शोक की लहर योगी प्रवृत्तियो का मचालन किया और आर्थिक सहयोग दौड़ गई। ता० ३० जनवरी की शाम को साढे सात बजे स्वय देकर तथा दिलवाकर उसे प्रागे बढ़ाने का प्रयत्न वीरसेवा मन्दिर भवन में जनसमाज के मणमान्य व्यक्तियो किया। उनकी मस्था के प्रति जितनी उच्च भावना थी की शोक मभा हुई, जिसमे वावूजी की सेवाग्रो, जैनधर्म और जैसा वे चाहते थे, वैसा साधन-सामग्री के प्रभाव में और जैन साहित्योद्धार की भावना एव वीरसेवा मन्दिर का दर्भाग्य से नदी कर ले। लोकोपयोगी प्रवृत्तियो पर प्रकाश डालते हुए श्रद्धाजलिया
"अनेकान्त' पत्र के प्रति उनकी अपूर्व सेवाएं है । उसके अपित की गई तथा उनके परिवार के प्रति मम्वेदना व्यक्त करते हुए एक शोक प्रस्ताव पास करके भेजा गया।
मचालन का श्रेय भी उन्ही को है। उनके ही प्रयत्न से
सन् १९६२ मे 'अनेकान्त' बराबर द्वैमामिक रूप मे साथ ही यह विचार किया गया कि वीरसेवा मन्दिर
निकल रहा है। उनके निधन मे अनेकान्त को बडी क्षति के प्रति उनकी अपूर्व सेवाग्रो के उपलक्ष्य में 'अनेकान्त'
पहुँची है । अनेकान्त का यह 'छोटेलाल जैन स्मति अव' का लगभग २०० पृष्ठ का एक स्मृति-अङ्क प्रकाशित
उनकी मेवायो का प्रतीक है। इसमे सम्पादक-मण्डल न किया जाय । भारत के प्रसिद्ध साहित्यकार श्री जैनेन्द्र
प्रयत्न किया है कि बाव छोटेलालजी के व्यक्तित्व तथा कुमारजी, श्री यशपाल जैन, श्री अक्षयकुमार जैन ने केवल
कृतित्व पर तो प्रकाश पडे ही, माथ ही वे विषय भी प्रा उममे मत्रिय योग देने का आश्वासन ही नहीं दिया, अपितु
जायें, जिनमे उनकी गहरी अभिरुनि थी। उमक मम्पादन का भी दायित्व अपने ऊपर ले लिया। बावू छोटेलालजी जैन समाज के उन इने-गिने
मम्पादक-मण्डल ने इसके लिए रडा परिश्रम किया है, व्यक्तियो मे में थे, जिन्होने अपने जीवन के बहत से वप ।
जिसके लिए मै उन्हें धन्यवाद देता हूं और आशा करता हैं मेवा में व्यतीत किये थे। वे इतिहाम और पुगतत्व के
कि उनका सहयोग हमेशा इसी प्रकार मिलता रहेगा। विद्वान ही न थे, बल्कि उनके सवर्धन मे पर्याप्त रुचि
-प्रेमचन्द जैन रखते थे और तदनुकल सामग्री के मचय में संलग्न रहने
प्रकाशक-'अनेकान्त'
वीर-सेवा-मन्दिर की श्रद्धांजलि
वोर-सेवा-मन्दिर की यह ग्राम सभा जैन-धर्म और जैन समाज के अनन्य सेवी तथा पुरातत्व के विद्वान बाबू छोटेलालजी जंन के निधन पर गहरा शोक प्रकट करती है। बाब छोटेलालजी उन इने-गिन व्यक्तियों मे से थे, जिन्होंने अपने जीवन के बहुत से वर्ष सेवा में व्यतीत किये। वोर-सेवा-मदिर को वर्तमान रूप देने का श्रेय मुख्यतः उन्हीं को है। इस संस्थान के द्वारा उन्होंने अनेक लोकोपयोगी प्रवृत्तियों का संचालन किया। बाबू छोटेलालजी के निधन से जन-समाज की विशेषकर वोर-सेवा-मन्दिर को जो क्षति हुई है उसकी पूर्ति कदापि नहीं हो सकती। यह सभा दिवंगत प्रात्मा के प्रति हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करती है और प्रभु से प्रार्थना करती है कि उनकी प्रात्मा शान्त उच्चापद प्राप्त करे । उनके परिवार के साथ यह मभा सहानभति प्रकट करती है।