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________________ ४२ अनेकान्त २. व्यापारिक और भाविक दायित्वों की व्यवस्था करना । ३. शरीर कमजोर हो गया है तथा अस्वस्थ है, इसे सुधारना । ४. शान्ति को दूर करना । लगातार गत ३०-३५ वर्षों तक बा० छोटेलाल जी ने नमाज का प्रत्येक दिशा में जो कुशल नेतृत्व किया वह इतिहास में सदा स्मरणीय रहेगा। उनका व्यक्तित्व एवं उनकी सूम-बूम दोनों ही घडी यो यद्यपि नाम में वे । छोटेलाल थे लेकिन अपने कार्यों में वे महान् थे | सामाजिक, धार्मिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों में उनका प्रच्छा प्रवेश था और ऐसे अवसरो पर उनमे अच्छा निर्देशन मिलता था। प्रारम्भ में उन्होंने प्रपना जीवन एक व्यापारी के रूप मे प्रारम्भ किया और उसमे उन्होंने जो प्राप्त किया वह भी बड़े-से-बड़े व्यवसायी के लिए ईर्ष्या का विषय था लेकिन कुछ ही वर्षो बाद सभी व्यापार को छोड़कर समाज सेवा एवं सरस्वती का व्यापार करने लगे। उनके हृदय में समाज एव साहित्य सेवा की जो चुभन थी वैसी बहुत कम व्यक्तियों में देखने को मिलती है। उन्होंने अपने जीवन का मापा भाग मा भारती की सेवा में लगा दिया तथा समाज सेवा करते-करते उन्हें स्वास्थ्य का भी व्यान नहीं रहा । समाज के दुर्भाग्य में उन्हें अच्छा स्वास्थ्य नहीं मिला लेकिन स्वस्थ रहते हुए भी उन्होंने समाज की जो सेवा की है उसकी कहानी युवकों में ही नहीं किन्तु वृद्धो में भी मान संचार करने वाली है। है उसकी रूप रेखा तैयार करना तथा उसका प्रयोग, परीक्षा, अनुभव आदि प्रारम्भ करते हुए देखना कि मैं उसमें किस प्रकार और कहां तक सफलता प्राप्त कर सकता हूँ । ५. भविष्य के लिए जो मार्ग निश्चित किया है उद्धार की ओर लगता है।★ देश और समाज के गौरव डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल बा० छोटेलालजी का प्रमुख निवास स्थान कलकता था लेकिन देहली धारा, वाराणसी आदि स्थानों में चलने बाली संस्थाओं के संचालन में उनका प्रमुख योग रहता था । विद्वानों एवं साहित्यिकों का वे बड़ा सम्मान करते थे र प्रावश्यकता पड़ने पर उन्हें प्रार्थिक सहायता भी मैं लगभग ४४ वर्ष का हो चुका हूँ। मुझे अव अपने । दिया करते थे । समाज में वे बड़े ही सरल थे लेकिन अनुशासन के नायक थे वे अपने अधीनस्थ कार्यकताओं से खूब काम लेते थे लेकिन दुख दर्द के अवसर पर उनकी अच्छी सहायता करते थे। बाबू जी का नाम तो मैंने काफी समय से सुन रखा या धौर सन् १९४८ मैंने साहित्यिक क्षेत्र में कार्य करना प्रारम्भ किया तो उनसे कितनी ही बार पत्र व्यवहार भी हुआ लेकिन उनके दर्शन का अवसर मुझे सन् १९५१ मे ही मिला। उस वर्ष कार्तिक महोत्सव पर वहाँ के युवकों ने एक साहित्य प्रदशिनी का आयोजन किया था और उसमें सम्मिलित होने मुझे भी वहाँ जाना पड़ा। कलकता पहुंचने के दूसरे ही दिन मैं अपने साथी के साथ उनके बेलगछिया वाले मकान पर पहुँचा। मकान के सदर ने की स्वीकृति मिलते ही जब मैं उनके कमरे प्रविष्ट हुआ तो देखा कि वे किसी पुस्तक के पृष्ठो को बटोर रहे है । पहिचानने में देर नहीं लगी और नाम 1 लाने के पश्चात् सर्व प्रथम उन्होंने यही प्रश्न किया कि हम लोग उनके मकान पर क्यो नही टहरे। काफी देर तक यानें होती रही और मुझे ऐसा लगने लगा कि जैसे हम अपने घनिष्ठ परिचित के सामने बैठे है । हम लोग कलकत्ते मे ४-५ दिन रहे हमें अपनी ही कार मे म्युजियम, कोटनिक्म गार्डन आदि स्थानो पर ले गये तथा वहाँ की महत्वपूर्ण सामग्री का परिचय कराया। यद्यपि उनका स्वास्थ्य उस समय भी अच्छा नही था लेकिन उन्होंने बड़े ही प्रेम से अपने पास रखा। यह मेरा और उनका प्रथम साक्षात्कार था। इस प्रथम
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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