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अनेकान्त
ठीक से फोटो न मा सका । मैंने २५ वर्ष पूर्व वहाँ के मैंने उन्हें लेख लिखकर दिया जिसे उन्होने सचित्र प्रकाशसम्बन्ध में एक लेख 'जैन सत्य प्रकाश' में प्रकाशित किया नार्य मम्भवतः अनेकान्त मे भेज दिया । था । उस लेख की जानकारी मिलने पर उन्होंने स्वयं वर्तमान में उच्चकोटि के जैन सन्त योगिराज श्री प्रासाम जाकर फोटो लाने की इच्छा प्रकट की, ताकि महजानन्दघन जी महाराज के खण्डगिरि चातुर्मास कर पुरातत्व विभाग को उस विषय में विशेष प्रकाश डालने
कलकत्ता पधारने पर उनके सम्पर्क में आकर बाबू के लिए अनुरोध किया जा सके।
छोटेलाल जी बहुत प्रभावित हुए। तीन चार दिन बेलबाब छोटेलालजी हिस्ट्री कान्फ्रेंस में भाग लिया गछिया विराजने पर उन्होंने महाराज श्री की दिनचर्या करते थे। तीन चार वर्ष पूर्व जब गौहाटी में अधिवेशन का बारीकी से अध्ययन किया और पूज्य सहजानन्दघनजी हमा तो उन्होंने मुझे कहा कि मैं गोहाटी से प्रापके वहां को सम्प्रदायातीत प्रात्मार्थी महापुरुष ज्ञात कर अक्सर वे गवालपाडा जाऊँगा प्रतः वहां से सूर्यपहाड़ जाकर जैन उनकी दो तीन विशेषतानों की प्रशंसा करते रहते थे। प्रतिमानों व अभिलेखादि के फोटो लाने की व्यवस्था वे कहते पाजकल वनवासी मुनिवृन्द भी शहरों की ओर
ने के लिए माप अपनी दुकान वाला का लिख द। प्राकष्ट हो रहे हैं और ये महात्मन् शहरों से दूर गिरि मैंने तुरन्त उनके साथ पत्र दे दिया एवं गवालपाड़ा दुकान में TEAT GRE के मुनीम को भी उनके वहाँ पधारने पर सारी व्यवस्था
में रस लोलुपता का सर्वथा प्रभाव केवल दूध मौर केले माप से कर देने का निर्देश कर दिया। गोहाटी का प्राहार कर ठाम-चौविहार कर लेना अर्थात् उसी अधिवेशन शेष होने पर जब उन्होंने सूर्यपहाड़ के पुरातत्व समय पानी लेकर चारों पाहार का त्याग कर देना। की खोज में गवालपाड़ा जाने का विचार प्रकट किया तो
अवस्थिति में निर्दोष स्थंडिल भूमि के प्रभाव में दूध का किसी ने कह दिया कि सूर्यपहाड़ के लिये गवालपाडा तक
भी लेना बन्द । सर्वाधिक विशेषता प्रखण्ड प्रात्म-जागृति न जाकर रास्ते से ही परबारा वहां जा सकते हैं। वे
की देखी गई जो साधारण व्यक्ति के रूपाल में प्राने की टैक्सी भाडे करके सीधे सूर्यपहाड़ जा भी पहुंचे किन्तु वहाँ
वस्तु नही थी । श्वेताम्बर-दिगम्बर समाज की एकता मे पर जानकारी के अभाव में घूम फिर कर जिन प्रतिमामों।
ऐसे महापुरुप को नितान्त आवश्यकता है, ऐमा छोटेलाल का दर्शन किये बिना ही लौटकर गौहाटी चले गये । व्यथं ,
जी कहा करते थे। में सौ रुपये टेक्सी भाड़े के लग गए और दो सौ मील की।
कलकता जैन श्वे. पचायती मन्दिर की प्रतिष्टा को लम्बी यात्रा की परेशानी भी उठाना पड़ा। उधर १५० वर्ष पूर्ण हो जाने पर माद्ध-शताब्दी महोत्सव का गवालपाड़े वाले उनकी प्रतीक्षा ही करते रह गये। ,
प्रायोजन किया गया जिसे सुनकर वे बड़े प्रसन्न हुए और कलकत्ता माने पर उन्होंने मुझे कहा कि दूसरे की सलाह
कहा कि मैं थोड़ा भी स्वस्थ-याने योग्य हो गया तो वहां मानकर चलने से मैं सूर्यपहाड़ को जैन गुफा को भी न
अवश्य उपस्थित होकर उत्सव में सक्रिय भाग लूंगा। मैने खोज मका और गवालपाड़ा के पार्श्वनाथ जिनालय के
उनमे मन्दिर जी के स्मारक-ग्रन्थ में योगदान करने के दर्शनों से भी वंचित रह गया । अब की बार प्राप प्रासाम
लिये कहा तो उन्होंने वेलगछिया मन्दिर का ब्लाक तथा जाने पर वहा के फोटो लाना न भूले।
बगाल का गुप्तकालीन ताम्रशामन नामक अपना लेख और गत वर्ष जब मैं करीमगंज मे जिनालय की नीव देने नाक तो दिया हो, साथ ही साथ श्री दुलीचन्द जैन, के लिए पासाम गया तो लौटते समय भाई हजारीमल मुगावली (जो उस समय अमेरिका में थे) का 'जैन बांठिया के साथ गवालपाड़ा गया और फोटोग्राफर की सिद्धान्त मे पुद्गल द्रव्य और परमाणु सिद्धान्त' लेख भी व्यवस्था करके वहां के फोटो लाया और उन्हें दे दिया। तत्काल दे दिया। 'स्मृति ग्रन्थ' प्रकाशित हो जाने पर वे उन्होंने वहां के सम्बन्ध में एक लेख लिख देने का अनु- आगन्तुक सज्जनो को दिखाते । उन्होने उम प्रथ को मंगा रोध किया और बार-बार उसके लिए तकाजा करने लगे। कर कई लोगों को अपनी ओर से भेट भी किया।