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भनेकान्त
मणिप्रवाल के रूप में विकसित हुई। मणिप्रवाल के प्रयोग प्रार्द्रदेव और माता का नाम रथ्यादेवी था। इनका समय का क्षेत्र कन्नड़ और मलयालम भाषामों तक विस्तत अनिश्चित है, किन्तु ई०१०. से लेकर ११०० तक के हुप्रा । इसके परिणाम स्वरूप इन तीनो भाषामों का मध्य ये विद्यमान थे। हर्षचरित के प्रारम्भ में बाण भट्ट संस्कृत से अधिक सानिध्य रहा। शैवों, वैष्णवों एवं जैन ने भट्टार हरिचन्द्र का उल्लेख किया है। कवियों द्वारा तमिल में सभी भाषामों से पहले अपने- पदबन्धोज्जवलो हारी कृतवर्णक्रमस्थितिः । अपने सिद्धान्तों एवं विश्वासों के माधार पर काव्य रच- भट्टार हरिचन्द्रस्य गचव धो नुपायते ॥ नाएं हुई । 'जैन चम्पू काव्यों के लिए तो निश्चित रूप से
कर्पूर मजरी की प्रथम जवनिका मे नंदिनंद के पूर्व तमिल कृतिया प्रेरणा का स्तोत्र रही।"
हरिचन्द्र का उल्लेख हुमा है । बाण भट्ट का समय सातवीं यशश्तिलक, जीवंधर और पुरुदेव चम्प का संक्षिप्त सदी का मध्य भाग है, अत: यह भट्टार हरिचन्द्र कोई विवरण इम प्रकार है
अन्य गद्यलेग्वक हैं। यशस्तिलक चम्पू-इस चम्पू काव्य के रचयिता
___इम चम्पू काव्य का मूल स्तोत्र भी गुणभद्र का उत्तर सुप्रसिद्ध जैन कवि श्री सोमदेव या सोमप्रभ मूरि हैं। यह
पुराण है। यह कथा सुधर्मा के द्वारा सम्राट् श्रेणिक को चालुक्य राज अरिकेशरिन् (द्वितीय) के बड़े पुत्र द्वाग संरक्षित कवि थे। राष्ट्रकूट के राजा कृष्ण राजदेव के
र सुनाई गई थी। समकालिक होने के कारण, सोमदेव ने इस चम्पू काव्य
या कथा भूतधात्रीशं श्रेणिक प्रति वणिता।
सुधर्मगणनाथेन हां वक्तुं प्रयतामहे की रचना लगभग ६५६ ई. के आस-पास की। जैनो
॥१०॥
मदीयवाणीरमणी चरितार्था चिरावभूत । का उत्तर पुराण इमका मूल्य उत्स (स्रोत) है। इसमे
वन जीवन्धरं देवं या भावनिज नायकम् ।१॥११॥ प्रवन्ती के राजा यशोधर का चरित जैन सिद्धान्तो को लक्ष्य बना कर वर्णित है। कथा का अधिकाश काल्पनिक
यशस्तिलक, पृरुदेव प्रादि अन्य जैन चम्पू काव्यों की पुनर्जन्म के विश्वास पर आधारित है। प्रथम चार तरह ही इसमें भी प्रारम्भ मे जिनम्तुति है। इस चम्प प्राश्वासो मे कया अविच्छिन्न गति से प्रागे बढती हैं। काव्य में कुल ग्यारह लम्भ हैंइस कृति द्वारा सोमदेव के गहन अध्ययन, प्रगाढ़-पाडित्य,
(१) सरस्वती लम्म, (२) गोविन्दालम्भ (३) भाषा पर स्वच्छन्द प्रभुत्व एव काव्य क्षेत्र मे उनकी नये- गन्धर्वदत्तालम्भ, (४) गुणमालालम्भ, (५) पद्मालम्भ, नये प्रयोगो की पभिरुचि का परिचय मिलता है। सोम- (१) क्षेमधीलम्भ. (७) कनकमालालम्भ, (6) विमलादेव ने कई अन्य कवियो के नामोल्लेख सहित, उनकी लम्भ, (६) सुरम जरीलम्भ, (१०) लक्ष्मणालम्भ, मुक्तक कृतियो को इस चम्पू काव्य में उद्धृत किया है। (११) मुक्तिलम्भ । इस चम्पू काव्य पर श्रुतसागर सूरि की मुन्दर व्याख्या स्थान स्थान पर जैन सिद्धान्तानुसार धर्मोपदेश है। है। (विशेष विवरण स्वतंत्र है अध्याय में है)। माघ और वाक्पतिराज का प्रभाव भी प्रत्यक्ष दिखाई
जीवन्धर चम्पू-हरिचन्द्र ने इस चम्पू काव्य की पड़ता है। धार्मिक भावना की कवित्वपूर्ण अभिव्यक्ति का रचना की है। कीथ ने इस हरिचन्द्र को ही 'धर्म शर्मा- यह चम्पू काव्य सुन्दर उदाहरण है। हिन्दू पुराणो की भ्युदय' काव्य का प्रणेता भी माना है, जिसमे पन्द्रहवे तरह कथा का महत्त्व भी अकित किया गया है। तीर्थकर धर्मनाथ जी का चरित वर्णित है। जीवन्धर चम्पू चम्पू काव्य को विशुद्ध परम्परा के अनुमार, कथा की रचना भी, राजा सत्यंधर और विजया के पुत्र जन की गति-शीलता गद्य-पद्य दोनों में समान रूप से दिखाई राजकुमार जीवन्धर के चरित को लेकर ही की गई है। पडती है । गद्य काव्य की तरह ही विशेषण-सयुत-समस्त यदि इन दोनो काव्यो के प्रणेता हरिचन्द्र एक ही हैं, तो पदावली दिखाई पड़ती है। ये नोमक वंश में उत्पन्न कायस्थ थे। इनके पिता का नाम पद्य भाग मे भी यशस्तिलक की तरह एकरूपता नही