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________________ समय का मूल्य मुनि श्री विद्यानन्द 'कालातिपातमात्रेण कर्तव्यं हि विनश्यति। अथवा तस्कर तो रात्रि के तिमिर मे किसी का कण्ठ -क्षत्र चूड़ामणि ११७ ग्रहण करते हैं परन्तु काल तो निर्भय होकर विश्व के प्रत्येक वस्तु का अपना पृथक् मूल्य होता है। संसार घाट-बाट देखता घूमता है। उसे न करुणा है, न भय । मे कोई वस्तु नही । काल का सूक्ष्मतम क्षण भाग ही क्षण 'सर्वम यस्य वशादगात् स्मृतिपथ कालाय तस्मै नम.' जिसकी क्षण संयुक्त होकर मिनट, होरा दिनों में परिणत होता है। सत्ता के समक्ष सब कुछ स्मृति शेष रह जाती है. उस ये दिन मास, ऋतु प्रयन, वर्ष और युगों में परिवर्तन होते महा काल को नमस्कार है। किसी विज्ञ सूक्तिकार ने कहा जाते है । काल की यह सूक्ष्म और स्थूल गतिक्रिया है। है-'प्रत्यायान्ति गता पुनर्नदिवसा कालो जगद्भक्षक' काल क्षण भाग पर अभी वर्तमान की सत्ता का बोध गये हए दिन वापस नहीं लौटते, यह काल ससार भक्षक कराता है। और दूसरे ही क्षण प्रतीत हो जाता है। यह है। कालेन कीलित सर्वम्'-मसार के यावत् पदार्थ काल इसका प्रविच्छिन्न कम है, जिसमे कभी व्यापात नही से कीलित हैं । कोई ऐसी वस्तु नही जिये कालस्पर्श नहीं होता। वर्तमान के मुक्त गर्भ से अतीत और भोग्य गर्भ से करता हो। जैसे माला के पुष्पों में से सूत्र निकलता है, भविष्यत काल की उत्पत्ति होती है। समय के इस सूक्ष्म वैसे ही काल ममस्त जड चेतन को विद्ध कर स्थित रहता रूप को जानने वालों ने मनुष्य को चेतावनी दी है कि है। जन्म और मरण के स्मृतिपत्र समयाकन से जाने जाते वह रुपये-पैसे के समान ही, बल्कि उममे भी अधिक है। दिन और रात्रि समय का चक्कर लगाते है। समय सावधानी से समय का हिसाब रक्खे । उन्होने लिखा है- मे ऋतुप्रो का आगमन और वर्षों की गणना सम्भव होती 'क्षण वित्तं क्षणं चित्तं भणं जीवति मानवः है। "कालेन बलिरिन्द्र कृत' कालेन व्यवरोपित."-काल यमस्य करुणा नास्ति धर्मस्यत्वरिता गतिः॥' ने बलि को इन्द्र बनाया और काल ने ही उसे हटा दिया। वित्त क्षण मे नष्ट हो जाता है, चित्त की स्थिति 'समय एवं करोति बलाबलम्' बलवान् तथा निर्बल समय क्षण भर मे बदल जाती है और मनुष्य का जीवन दीप के ही पर्याय हैं । सूर्य प्रात.काल बलसमृद्ध होता है, उसके क्षण मे बुझ जाता है। काल को कही करुणा नहीं है। यह बलवान होते हैं और सायकाल अस्तवेला में ही बलधर्म की गति क्षिप्रगामिनी है। अर्थात् धर्म काल पर वान् मुहर्त क्षितिज के गर्त मे डूब जाते है। प्राचीन आरूढ होकर धार्मिक का अनुगमन करता है। और राजवशो का इतिहास समय के बलाबल का इतिवृत्त है। क्योकि जीवन क्षण बुबुद् है, धर्म सचय से दीर्घ सूत्रता जो समय के इस रहस्य को जान लेता है, वह समय का नहीं करनी चाहिये । यहाँ शतायु जीने वाले मनुष्य को मित्र हो जाता है। उसके कानो में समय शंखध्वनि करता क्षण जीबी बताया है उसका यही आशय है कि जीवित रहता है कि जागो, उठो और अपने भूतिको म (कल्याणव्यक्ति के परमाणु स्कन्धो में प्रतिक्षण जन्म-मरण की कारी कार्यों में) जुट जामो-"उत्थातव्य जागृतव्य प्रक्रिया सचार कर रही है। जीवन के सौ वर्ष भले रहे, योक्तव्य भूति-कमंसु । भविप्त्येवेति मन. कृत्वा सततपरन्तु मृत्यु का तो क्षण ही पाता है। जो प्रांधी के उन्मत्त मध्यर्थ.।" कार्य सिद्धि अवश्य होगी, ऐमा विश्वास रखते स्पर्श से दीपक के समान प्राणों का देह से अपहरण कर हुए व्यथा का परित्याग करो। क्योकि "अनिदः श्रियो ले जाता है। वह क्षण कभी भी पा सकता है। दस्यु मूलम" लक्ष्मी का मूल खिन्नता है। जो विघ्न-बाधानों
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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