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________________ पतियान बाई: एक गुप्तकालीन जैन मन्दिर ३४५ निर्मित की गई है। चारों हाथ खण्डित हैं। शरीर पर पांच प्राधार दिखायी देते है। यहां प्राप्रमजरी का अंकन अनेक ग्राभूषण हैं। मस्तक पर मणिजटित मुकुट है और रहा होगा जो अम्बिका की मूर्ति का एक प्रावश्यक लक्षण अलंकृत केशों के तीन जूई ऊपर और तीन पीछे गूंथे गये है। हाथों के अतिरिक्त मूर्ति की नाक भी खण्डित है। अकित हैं। कटि से पैरों तक का भाग सूक्ष्म वस्त्र से तीर्थकर-मूर्तियांपाच्छादित बताया गया है। तथा हाथों पर से उत्तरीय के फलक के सबसे ऊपरी भाग पर, मध्य में अम्बिका छोर दोनों ओर लटकते दिखाये गये हैं। नीचे पैरो के के पाराध्य बाइसवें तीर्थङ्कर नेमिनाथ की प्रतिमा है पास उसका वाहन सिंह ३ अंकित था जो अब खण्डित हो जिसके पासन के नीचे शव का चिन्ह है। इस प्रतिमा के गया है पर उसके ऊपर या उसके समीप बैठा हुमा दोनो पोर एक-एक कायोत्सर्गासन मे और एक-एक अम्बिका का पुत्र प्रभंकर४४ अब भी देखा जा सकता है। पद्यामन में तथा अम्बिका के पापर्व की खड़ी पंक्तियों में बड़ा पुत्र शुभंकर४५ उसका संभवतः हाथ पकड़े हुए दूसरे दोनों पोर गज, मश्व मौर मकर की प्राकृतियों के नीचे पार्श्व में खड़ा है। पैरों के नीचे दोनों प्रोर सेविकाए, चार-चार कायोत्सर्गासन प्रतिमाएं हैं जिन पर चिन्हों का बीच में मूति प्रतिष्टापक भक्त युगल और उसके भी दोनों अभाव है। इस फलक पर, इस प्रकार १३ ही तीर्थकरपोर नवग्रहों४६ का अंकन है। ऊपर भामण्डल का कटाव मूर्तियां विद्यमान है पर जैसा कि कहा जा चुका है, क्षेप कमल की पंखुरियों के आकार से मिलता-जुलता होने से ग्यारह मूर्तिया भी अवश्य रही होंगी जो अब खण्डित हो अति मुन्दर बन पड़ा है। भामण्डल के ऊपर जिस प्रतीक चुकी हैं। का अकन था वह पूर्णतः खण्डित हो चुका है, केवल उसके। शासनदेवी-मूर्तियांअम्बिका . जरनल माफ दि यूनिवसिटी पॉफ बाम्बे, इस फलक पर चौबीसों शासन देवियों की प्रतिमाएं भाग १ खण्ड २. उत्कीर्ण की गई हैं; मध्य में मुख्य मूति के रूप में एक (२) जैन, कामताप्रसाद . शासनदेवी अम्बिका और (अविका की), नीचे सिंहासन के पावं मे दोनों मोर दो उसकी मान्यता का रहस्य : जैनसिद्धान्तभास्कर दो, मुख्य मूर्ति के दोनो पाश्वों मे बड़ी पक्तियों में सात (दि. '५४), वर्ष २१, किरण १, पृ. २८ । सात और मुख्य मूर्ति के ऊपर (तीर्थङ्कर मूर्तियो के नीचे) (३) नाहटा, अगरचन्द्र वादीचन्द्र रचित अम्बिका कथा पाच । ये सभी देवियां प्राय' खड़ी और चतुर्भुज हैं, अपनेमार : अनेकान्त (अक्टूबर-नवंबर '५४), वर्ष १३, अपने प्रायुषों से मज्जित हैं और अधिकाश के नीचे उनके किरण ४.५, पृ०१०७)। वाहन भी अंकित हैं। पाश्र्व की दोनों पक्तियों में बायी ४३. कुछ अम्बिका मूर्तियों मे सिंह मासन के रूप में और ओर की देवियों का दाया और दायी भोर की देवियों का कुछ में वह पार्श्व मे खड़ा दिखाया जाता है और बाया पर वण्डित है। सभी देवियां विविध माभूषणों से कुछ में वह अनुपस्थित भी रहता है। अलकृत दिखायी गई है और उनकी भाव-भंगिमा अत्यन्त ४४. यह कभी गोद में और कभी पार्श्व में खड़ा या बैठा भव्य बन पड़ी है। दिखाया जाता है। ___ इन सभी शासन दवियो के आसन पर उनके नाम ४५. यह कभी खड़ा या बैठा दिखाया जाता है और कभी अंकित हैं, जिन्हे सर कनिघम ने इस प्रकार पढ़ा था४७: अनुपस्थित भी रहता है। ऊपर को पांच, बहुरूपिणी, चामुण्डा, पदुमावती, विजया, ४६. जैन स्थापत्य और शिल्प में नवग्रहों का अंकन एक सरासती; बायी पंक्ति में सात-अपराजित, महामानुसी, परम्परागत तथ्य है। इसे हम देवगढ़ खजुराहो मादि प्राचीन स्थानों के अतिरिक्त सागर (बुधुव्या का दि० ४७. ए. पार., ए. एस. आई., जिल्द १, पृ. ३१॥ जैन मन्दिर, बड़ा बाजार) जैसे नवीन स्थान पर भी ४८. यह भी सभव है कि सर कनिंघम ने ही इन्हें पढ़ने में पाते हैं। त्रुटियां की हों।
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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