SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 369
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त स्थानों का वर्णन किया गया है। रावन्दूर के एक शिलालेख (शक १३०६) में श्रुतविषय के अतिरिक्त भाषा का लालित्य और शैली मुनि को अभयचन्द्र का शिष्य बताया गया है। की प्रवाहमयता के कारण प्रस्तुत कृति का महत्व और भारंगी के एक शिलालेख में कहा गया है कि राय अधिक बढ़ जाता है। साधारण संस्कृत का जानकार व्यक्ति भी अभयचन्द्र की इस कृति से जैन कर्मसिद्धान्त राजगुरु मण्डलाचार्य महावाद वादीश्वर रायवादि पिताकी पर्याप्त जानकारी प्राप्त कर सकता है। मह प्रभयचन्द्र सिद्धान्तदेव का पुराना (ज्येष्ठ) शिष्य बुल्ल गौड था, जिसका पुत्र गोप गोड नागर खण्ड का कर्मप्रकृति के प्रारम्भ या अन्त मे अभयचन्द्र ने अपने शासक था। नागर खण्ड कर्णाटक देश में था। विषय में विशेष जानकारी नहीं दी। अन्त में केवल इतना लिखा है बुल्ल गौड के समाधिमरण का उल्लेख भारगी के "कृतिरियम् अभयचन्द्र सिद्धान्तकतिनः।" एक अन्य शिलालेख मे है, जिसमें कहा गया है कि बुल्ल या बुल्लुप को यह अवसर अभयचन्द्र की कृपा से प्राप्त अभयचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती के विषय मे कई शिला हा था। लेखों से जानकारी मिलती है। मूल संघ, देशिय गण, पुस्तक गच्छ, कोण्डकुन्दान्वय की इगलेश्वरी शाखा के हम्मच के एक शिलालेख मे अभयचन्द्र को चैत्यवासी श्री समुदाय में माघनन्दि भट्टारक हुए। उनके नेमिचन्द्र भट्टारक तथा प्रभयचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती ये दो शिष्य थे। अभयचन्द्र के समाधिमरण से सम्बन्धित उपयुक्त अभयचन्द्र बालचन्द्र पंडित के श्रुतगुरु थे। शिलालेख में कहा गया है कि वह छन्द, न्याय, निघण्टु, शब्द, समय, अलंकार, भूचक्र, प्रमाणशास्त्र प्रादि के हलेबीड के एक संस्कृत और कन्नड मिश्रित शिलालेख मे अभयचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती के समाधिमरण का प्रकाण्ड पण्डित थे। इसी तरह श्रुतमुमि ने परमागम सार (१२६३ शक) के अन्त में अपना परिचय देते हुए लिखा उल्लेख है-यह लेख शक संवत् १२०१-१२७६ ईस्वी का है। हलेबीडर के ही एक अन्य शिलालेख मे अभयचन्द्र के प्रिय शिष्य बालचन्द्र के समाधि मरण का उल्लेख सद्दागम-परमागम-तक्कागम-णिरवसेसवेवीह । है । यह लेख शक सवत् ११९७, सन् १२७४ ई. का है। विजिद सयलग्णवादी जयउ चिरं प्रभयसूरि सिद्धति ।। इससे भी प्रभचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती के व्यक्तित्व पर इन दोनों अभिलेखों से अभयचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती प्रकाश पड़ता है। का समय ईसा की तेरहवी शती प्रमाणित होता है। वे - -- - संभवतया १३वी शती के प्रारम्भ मे हुए और ७६ वर्ष लेख ५८४ . तक जीवित रहे। 8. F.C.VII, Sorab ti, No. 317 १. E.C.V., Belur ti, No. 133 जैन शिलालेख संग्रह ५. E.B.VIII, Sorab ti No. 330 जैन शिलालेख भाग ३, लेख ५२४ संग्रह भाग ३, लेख ६४६ २. Lod No. 131, 132 जैन शिलालेख संग्रह भाग ३, ६. E.C.VIII, Nagar ti, No. 46 जैन शिलालेख लेख ५१५ संग्रह भाग ३, लेख ६६७
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy