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________________ अग्रवालों का न संतति में योगदान किया था; किन्तु उनके दिवंगत हो जाने से वह कार्य पूर्ण अन्य की प्राधन्त प्रशस्ति में साह तोसर के वंश का न हो सका। और उसे पुनः पञ्चाध्यायी के नाम से रचने विस्तृत परिचय कराया गया है। जिसमें उनके परिवार का उपक्रम किया; किन्तु वे उसेभी पूर्ण नहीं कर सके और द्वारा सम्पन्न होने वाले धार्मिक कार्यों का भी परिषय मध्य में ही काल कवलित हो गये। साहु टोडर ने जैन कराय गया है। संस्कृति के लिए जो कुछ किया वह अनुकरणीय है । इस इस वंश में पूर्व प्रख्यात साहु नरपति के पुत्र वोल्हा तरह साहु टोडर और उनके परिवार में जैनधर्म की साह थे, जो पापरहित पौर जिनधर्म के धारक थे, जिनका प्रास्था के साथ जैन संस्कृति का प्रचार होता रहा। दिल्ली के बादशाह फीरोजशाह तुगलक ने सम्मान किया उन्होंने जैन संस्कृति के लिए शक्तिभर योगदान दिया। था। उनके पुत्र थे, बाधूसाह और उनके दिवराज । पौर जिस तरह से भी बना जन संस्कृति के उद्धार में इस तरह इस वंश में अनेक महापुरुष हुए। उनमें जाल्हे अपने कर्तव्य का विवेक के साथ पालन किया। ऋषभ साहु हुए, उनके दो युगल पुत्र हुए, प्रथम पुत्र सहजपाल दास के बाद उनके अन्य भाइयों द्वारा होने वाले कार्यों और दूसरा तेजू या तेजा। सहजपाल की पत्नी का नाम का कोई लेखा-जोखा नहीं मिलता, जिससे उस पर कुछ झाझेही था । सहजपाल ने व्यापार में प्रचुर द्रव्य मर्जन प्रकाश डाला जा सके। किया, उसने जिननाथको प्रतिष्ठा कराई और दानादि कार्यों विक्रम की १५वी १६वी शताब्दी में अग्रवालों द्वारा में उसका यथायोग्य विनिमय किया। उसके छः पुत्र थेजैन संस्कृति के प्रसार में क्या कुछ योगदान हुआ उसका सहदेव, छीतमु, खेमद, डाला, चील्हा और तोसउ । सहदेव कुछ संकेत इस प्रकार है : की तीन पत्नी थी, धामाही, जिनदासही, कुमारपालही । अग्रवालों ने मन्दिर और मूर्ति निर्माण प्रादि द्वारा उसके तीन पुत्र थे ममल, बच्छराज, और साभूणा। जहां जिन देव की भक्ति को प्रोत्साहन दिया वहां श्रुत- दूसरे पुत्र छीतम के भी छह पुत्र थे-वीरदेव, हेमाह या भक्तिवश जिनवाणी के प्रसार के लिए अनेक ग्रन्थों का हेमचन्द, लरदिउ, रूपा या रूपचन्दौर जाला। रूपा ने निर्माण भी कराया और अनेक ग्रन्थ प्रतिलिपि करवा कर गिरनार की यात्रा के लिए संघ निकाला और उसका सब जैन मन्दिरों, भट्रारकों, विद्वानों पोर मुनियों को भेट भार वहन किया। थोल्हा साह के तीन पुत्र हुए-पहकिये । अकेले कवि रइधू ने अग्रवाल श्रेष्ठिजनों से प्रेरित । राज, हरिराज पौर जगसीह । पौर तोसउ के दो पुत्र थे होकर १०-१५ अथों की रचना की है। अन्य जैसवाल या खेल्हा भौर गुणसेण । खेल्हा का विवाह कुरुक्षेत्र के जैन गोलालारीय जाति के प्रेरणास्वरूप रचे गये प्रन्थ धर्मानुरागी सेठिया वश के श्री सहजासाहु के पुत्र तेजा इनसे भिन्न हैं । उनके नाम इस प्रकार है : साह की जालपा नामक पत्नी से उत्पन्न खीमी नाम की सम्मइ जिनचरिउ, सुकौशल चरिउ, पासणाह परिउ, पुत्री से हुमा था। उसके कोई सन्तान न थी पतएव बलहद्द चरिउ, मेहेसर चरिउ, सम्मत्त गुणनिधान उन्होंने अपने भाई के पुत्र को गोद ले लिया था और रिटुणेमि चरिउ, जसहर चरिउ, सिद्धान्तार्थसार, वित्तसार गृहस्थी का सब भार उसे सौप कर मुनि यशः कीर्ति के पुण्णासव कहाकोस और सिरीपाल चरिउ ये सब ग्रन्थ प्रप पास अणुव्रत धारण कर लिए। भ्रंश भाषा में रचे गये हैं। इनमें से कुछ अन्य निर्मापक अग्रवाल श्रावकों का परिचय नीचे दिया जाता है:- १. सम्माणिउ जो पेरोजसाहि, तुहगुण को वण्णणि सबक ___ हिसार निवासी अग्रवाल कुलावतंश गोयल गोत्रीय प्राहि । -सम्मइ जिनचरित प्रशस्ति साहु सहजपाल के पुत्र और संघाधिप साह सहदेव के २. कवि रइधू परिचय के लिए देखो जैन ग्रंथ प्रशस्ति लघु भ्राता साह तोतउ की प्रेरणा से कवि ने 'सम्मइ संग्रह भाग २ पृ.१०३। जिनचरिउ' ग्रन्थ, जिसमें जैनियों के अन्तिम तीर्थकर ३. सहजा साहहिं पमुह जि रवण्णु, भगवान महावीर का जीवन-अंकित है, बनाया है। इस भायर चउक्क जुउ पुणु वि पण्णु ।
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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