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________________ रामचरित का एक तुलनात्मक अध्ययन मुनि श्री विद्यानन्द मिनिधी विद्यानन्द जी अपना पर्याप्त समय ध्यान और अध्ययन में व्यतीत करते हैं।पापको नबीन और खोजपूर्ण प्रकाशित पुस्तकों के अध्ययन करने की बड़ी अभिलाषा रहता है। अध्ययन करते समय उसमें से उपयोगी पौर महत्व की बातों को नोट कर लेते हैं । प्रस्तुत लेख मुनिजी के रामायण सम्बन्धी विशेष अध्ययन के परिणाम स्वरूप राम का जो तुलनात्मक लेख लिया गया है वह पठनीय है । सभी पाप ऋषभदेव के सम्बन्ध में विशेष मनसन्धान कर रहे हैं और साथ ही श्रमण, वात्य और दूसरे ऐतिहासिक शम्बों के प्राचीन स्रोतों के सम्बन्ध में भी विचार कर रहे हैं। -सम्पादक] १ श्रीरामचन्द्र जी का मंगलस्मरण भारतीय पार्य वृद्धि, निर्मल यशः प्राप्ति और पाप नाश ये तीन फल जनता का प्राण है। श्री राम कोटि कोटि भारतीयों के महापुरुषों के यशःकचन से समूसन्न निरूपित किये हैं। उपास्य हैं। वह मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। उत्तम श्लोक कह तुलसीदास कहते हैं कि श्रीरघुनाथ का चरित पार कर उनका स्मरण किया जाता है क्योंकि उनकी कीर्ति विभूतिमय है और मेरी बुद्धि संसारमें पासक्त (सामान्य) उत्तम है।'पउम चरित' के रचयिता कवि विमलसूरि पोर है४ । महर्षि वाल्मीकि ने रामचरित का विस्तार शतकोटि रविषणाचार्य एवं स्वयम्भूने श्रीरामकथा को भगवान् महा- श्लोक-परिमाण बताया है जिसका एक-एक अक्षर महान् वीर द्वारा इन्द्रभूति प्राचार्य (गणधर) को उपदेश की हुई पातकों का विनाशक है५ । अध्यात्म रामायण में ब्रह्माजी बताया है। इन्द्रभूति ने मुधर्माचार्य को, सुधर्माचार्य ने ने नारद मुनि को बताया है कि श्रीराम के माहात्म्य को प्रभव को और प्रभव ने कीर्तिघर को परम्परा से श्रीराम समग्र रूप से वणित नहीं किया जा सकता। इसलिए कथा प्रदान की है। स्वल्प रूप में ही मैं तुम्हें यह पावन रामचरित्र सुनाऊंगा। लोक में पुराण तथा काव्यकारों ने इसी परम्परा इसे बानकर तत्क्षण ही लोक को चित्तशुद्धि प्राप्त होती प्राप्त कथानक को ग्रहण कर अपनी कीतिलता को है। वैष्णवों की माम्नाय परम्परागत सूक्ति है कि पुष्पित-पल्लवित किया है । पद्मपुराणकार रविषेणाचार्य 'श्रीरामपादाम्बुजदीर्घनौका' ही अपार भवार्णव से पार ने कहा है कि गुणावली की अनन्तता के पात्र, उदार करने में सक्षम है। श्रीरामचन्द्रजी का चरित अज्ञात वेष्टावान् श्रीरामचन्द्र के सुन्दर चरित का वर्णन केवल इतिहास युग से अद्यावधि परः सहस्र कवियों, प्राचार्यों श्रुतकेवली ही कर सकते हैं। प्राचार्य ने विज्ञान की पौर महषियों ने स्वस्वप्रतिभानु रूप लिखा है। 'राम नाम १. (क) 'वड्डमाण मुखकुहरविणिग्गय । रामकहाणए एह को कल्पतरु कलि कल्याण निवास'-रामनाम कल्पवृक्ष कमागय । पच्छउं इंदभूइ पायरियं । पुणु धम्मेण ३. 'वदि ब्रजति विज्ञानं यशश्चरति निर्मलम् । गुणालंकारिएं। पुणु रविसेणायरिय पसाएं। बुद्धिए। नए प्रयाति दुरितं दूरं महापुरुषकीर्तनात।' -१२४ प्रवाहिय कइराएं। -पउमचरित ११४१-०२. , ". ४. 'कह रघुपति के चरित प्रपारा। कह मम बुद्धि निरत (ख) 'वर्द्धमानजिनेन्द्रोक्तः सोऽयमों गणेश्वरम् । इन्द्र संसारा। -रामचरितमानस, बाल० ११५ भूति परिप्राप्तः सुधर्म धारीणीभवम् । प्रभवं क्रमतः ५. 'चरित रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् । कीति ततोऽनुत्तरवाग्मिनम् । लिखितं तस्य सम्प्राप्य एककमक्षरं पुमा महापातकनाशनम् ।'-वा० रामा० खेयंत्लोऽयमुद्गतः ॥' पद्मपुराण प्रथमपर्व ४१.४२ . २६. तत् ते किंचित् प्रवक्ष्यामि कृत्स्नं वक्तुं न शक्यते । २. 'अनन्तगुणगेहस्य तस्योदारविचेष्टिनः । यज्ज्ञात्वा तरक्षणाल्लोकश्चित्तशुटिमवाप्नुयात् ॥' गदितुं चरितं शक्तः केवलं श्रुतकेवली।' -०१७ अध्यात्म रामायण माहात्म्य,७
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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