SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 340
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शिक्षा का उद्देश्य बलात्कार गणे सरस्वती गच्छे श्री नंदिसंघे श्री कुन्दाकुन्दा- भार्या पूना। विजय श्री भार्या पुत्र जिणदास भार्या चार्यान्वये भ. श्री पमनन्दि देवाः तत्पट्टे श्री शुभचंद्रदेवाः जोणदे । तत्पुत्र साह गांगा साह सांगा साह सहसा साह तत् शिष्य मुनि लक्ष्मीचंद्र: खंडेलवालान्वये श्री शाहगोत्रे चोड़ा । सहसा पुत्र पासा समाप्तमिदं लब्धिसारभिधानं निज साह काल्हा भार्या रानादे तत्पुत्र साह बीझा साह माधव ज्ञानावरणी कर्मक्षयायं मुनि लक्ष्मीचन्द्राय पाठनाना साह लाला साह डुगा। बीमा भार्या विजय श्री द्वितीय लिखापितं, लिखितं गोगा ब्राह्मण गौड ज्ञातीय-" शिक्षा का उद्देश्य प्राचार्य श्री तुलसी विद्यार्थी जीवन अन्य जीवनों की रीढ है। जब तक कर रहे हैं, पर अपने भापकी पोर वे नहीं देखते । यदि वह सम्पन्न और समुन्नत नहीं होगा, देश, समाज और अपने पापको न सुधार कर संसार को सुधारने का प्रयास राष्ट्र उन्नति नहीं कर सकता। आज की शिक्षा-पद्धति किया जायेगा तो न संसार सुधरेगा पोर न सुधारक ही। भारतीयता के अनुकूल नहीं है। उसमे परिवर्तन की पाव- पहले व्यक्ति स्वयं उठे, फिर पडोस, समाज और राष्ट्र श्यकता है। जन-नेता ऐसा अनुभव करते है, फिर भी वे को उठाये । सुधार धर्म से सम्भव है। माज का बुद्धिवाद शिक्षा-पद्धति में परिवर्तन नहीं कर पाते। उनके सामने मार्ग शब्द से चिढ़ता है। इसमें सिर्फ उसका ही दोष नहीं कठिनाइयां हो सकती है, पर बिना ऐसा किये विद्यार्थियो पर दोष उनका है जिन्होंने धर्म को सही रूप से सामने का जीवन उन्नत नही हो सकता तथा उसके विना समाज नही रखा है। शब्द से चिढ़ है तो छोड़िए उसे । माप और राष्ट्र भी उन्नत नही हो सकता। यह भारतीय सत्य और अहिंसा को जीवन में स्थान दीजिए, यही धर्म जीवन जो अध्यात्म-प्रधान है, उसमे भौतिकता घर करती है। धर्म वह चीज है जो व्यक्ति-व्यक्ति के जीवन का जा रही है । जन-जीवन मे प्राध्यात्मिकता पानी चाहिए। विकास करता है। धर्म में लिंग, रग और वर्ण का भेद भाव नहीं है। वह धर्म स्थान की ही चीज नहीं है, जीवन माज की शिक्षा का लक्ष्य गलत है। विद्यार्थी पढ़ते की भी चीज है, जो जीवन के कण-कण मे पानी चाहिए। है-किस लिए? आगे जीवन में अधिकाधिक धन कमा जीवन में प्रतिपल उसके प्रति जागरूक रहना होगा। सके और भौतिक सुख-सुविधाये पा सके । यह तो मूल मे बन्धुनो! मापने प्राजादी के युद्ध लड़े। वह ध्वंस ही भूल हो रही है । वह विद्या जो मानव को मानव ही का जमाना था। मापने विदेशी हकूमत का ज्यादा से नही किन्तु मुक्त बनाने वाली थी, जो उसे दुख-दुविधामों ज्यादा नुकमान किया, पर आज तो पापकी सरकार है। से मुक्त कर शाश्वत सुख दिलाने वाली थी, आज धन विद्यार्थी यदि अब भी ध्वंस-लीलाये करते है तो यह दूसरों मौर आजीविका का साधन मात्र रह गई है। यह भूल का नुकमान नहीं, उनका अपना नुकसान है। माज मापकी विद्याथियो की नहीं, धन को बड़ा मानने वालों की है। परीक्षा की बेला है, निर्माण का समय है । अपनी वीरता ला विद्याथी क्या कर ! जब कि देश के कणधार का परिचय दीजिए । माज अनैतिकता बढ़ रही है। उससे भी इस इसी दृष्टि से देखते हैं। जब तक धन को महत्व जब लड़ना होगा। उसे खत्म करना होगा। हिंसा और दिया जाता रहेगा, तब तक यह समस्या सुलझेगी नहीं। लड़ाई-वर्गों से नही, नैतिकता का प्रसार करके अनैतिकता आज कहा जाता है-पतन हो रहा है, नैतिकता पर काबू करना होगा। प्रात्म-निर्माण के इस काम में गिरती जा रही है। लोग संसार को उठाने का प्रयास प्रापका हाथ रहा तो मैं समझंगा, माप सच्चे वीर हैं।
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy