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________________ साहित्य-समीदा १. पद्मावती पुरवाल जैन डायरेक्टरी खड १)- है। मन्दिरों की संख्याके साथ उनमे प्रतिष्टित मूर्तिलेख भी सम्पादक जुगमन्दिरदास जैन, प्रकाशक, प्रशोककुमार दे दिये जाते तो और भी अधिक अच्छा होता। साथ ही जैन कलकत्ता। पृष्ठ सख्या ६५६, छपाई सफाई गेटप पद्मावती पुरवाल जाति के शिलालेख या दान पत्रादि हों सुन्दर, मूल्य सजिल्द प्रति का १०) रुपया। तो उन्हें दे दिया जाय, तो उससे उक्त जाति के इतिवृत्त पर विशेष प्रकाश पड़ सकेगा । सभव है यह पागे के खण्ड किसी भी उपजाति की समृद्धि और अस्तित्व का । ___ मे दिया जाय। परिज्ञान करने के लिए यह आवश्यक है कि उसका इतिवृत्त सकलित किया जाय । चूंकि भारतवर्ष मे विविध डायरेक्टरी के सम्पादक मूक सेवी बाबू जगमन्दिर उपजातिया है और विविध सम्प्रदाय है। यद्यपि मानव दास जी हैं। जिन्होने डायरेक्टरी के इस महान कार्य को जाति एक ही है जो मनुष्य जाति नामकर्म के उदय से उत्साह और लगन के साथ सम्पन्न किया है। मालम ममुत्पन्न हैं। किन्तु वह मानवजाति छोटे-छोटे अनेक हिस्सों होता है उन्होंने धर्म और जातीय प्रेम से प्रापूरित हो इस मे विभाजित है। जैन समाज भी अनेक उपजातियो मे वि- महान कार्य को अपने अकेले बल पर सम्पन्न किया है। भाजित है। ये विभाग किसी समूची जैन जाति की समृद्धि इसमे उन्होने जाति की महत्ता पर चार चाद लगा दिये के लिए किए गये होगे. किन्तु वर्तमान में उनकी उतनी है। डायरेक्टरी की महत्ता भी बढ़ गई है। बाबू जगआवश्यकता प्रतीत नही होती। प्रस्तु, जैन समाज मे ८४ मन्दिरदास जी जैसे धर्म-समाज-सेवी व्यक्तियों से बड़ी उपजातियो का उल्लेख मिलता है किन्तु उनमें अधिकाश प्राशाएं है। उन्होने स्वय ही इसका व्यय भार उठाया का इतिवृत्त अज्ञात है। उन चौरासी उपजातियो में पद्मा- है । और समाज के सामने एक आदर्श उपस्थित किया वती पुरवाल भी एक उपजाति है, जो जैनधर्म का अनु- है। ष्ठान करती है। पद्मावती पुरवालों का विकास पद्मावती २. ब्रह्मचर्य दर्शन-प्रवचनकार उपाध्याय अमर नगरी वर्तमान पवाया से हुआ है जो नागराजाओं की मुनि । सम्पादक विजयमुनि । प्रकाशक सन्मति ज्ञानपीठ, राजधानी थी। पद्मावती पुरवाल वाक्य भी इसी अर्थ की प्रागग, पृष्ठ स० २४० मूल्य ३-५० । अोर सकेत करता है। मैने सन् १९५० मे इस जाति के कवि रइधू का परिचय देते हुए उसके इतिवृत्त पर भी प्रस्तुत पुस्तक तीन खण्डों में विभाजित है, प्रवचन खण्ड, सिद्धान्त खण्ड और साधन खण्ड । उक्त खण्डो की कृछ प्रकाश डाला था (अनेकान्त वर्ष १० कि० १०)। विषय सामग्री की संयोजना सुन्दर है। जहा प्रथम खण्ड जिसे बाद मे पण्डित वनवारीलाल स्याद्वादी ने ब्रह्मगुमाल मे प्राधुनिक युगीन विचार-धारा उपलब्ध है, वहा दूसरे चरित की प्रस्तावना मे लिया था, परन्तु उसका कोई खण्ड मे ब्रह्मचर्य को शरीर-विज्ञान, मनोविज्ञान धर्म और उल्लेख नहीं किया। नीतिशास्त्र एवं दर्शन से परखने का, या कहने का प्रयत्न प्रस्तुत डायरेक्टरी मे पद्मावती पुरवाल समाज को किया गया है । और साधना खण्ड में ब्रह्मचर्य की साधना सख्या १० प्रान्तो मे सैतीस हजार एकसौ पचहत्तर बतलाई जीवन में उतारने के प्रयोगात्मक और रचनात्मक उपायों गई है। डायरेक्टरी में प्रमुख व्यक्तियोके चित्र भी दिये गये का दिग्दर्शन कराया गया है। उपाध्याय मुनि श्री अमर हैं। विद्वानों और प्रमुख व्यक्तियो का परिचय भी साथ मे जी स्थावकवासी समाज के एक विचारक सन्त है, जो दिया गया है। मन्दिरों आदि की सख्या भी अलग दी गई कवि हैं, साहित्यकार हैं और मालोचक भी हैं। उन्होने
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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