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________________ अग्रवालों का जन सस्कृति में योगदान २८१ दिल्ली मे जैन समाज की ओर से विविध धार्मिक सस्थाएं सह टोडर अलीगढ से किसी समय पाकर प्रागरा में चल रही हैं, उनमें पक्षियो का हस्पताल भी शामिल है। बस गये थे। वे भाग्यशाली, कुलदीपक और प्रत्यन्त उदार यदि उन सबके सम्बन्ध में प्रकाश डाला जाय तो एक बड़ा थे। वे गुणी, कर्तव्यपरायण और टकसाल के कार्य में ग्रन्थ बन सकता है। प्रत्यन्त दक्ष थे। और सम्भवत वे अकबर की टकसाल काष्ठामघ के भट्टारक कुमारसेन की प्राम्नाय में का कार्यभार भी सम्पन्न करते थे । साहु टोडर देवभटानिया कोल (अलीगढ़) के निवासी साह रूपचन्द थे। शास्त्र-गुरु के भक्त थे। धर्मवत्सल, विनयी, परदारविमुख, उनके पुत्र साह 'पासा' थे, जो धर्मनिष्ठ और उदारचरित दानी, कर्तव्यपरायण, परदोपभाषण मे मौन रखनेवाले, थे। इनकी जाति अग्रवाल और गोत्र गर्ग था। यह जैन दयालु और धर्मफलानुरागी थे। काप्ठाराघ के विद्वान धर्म के अनुयायी थे। साह पासा की धर्मपत्नी का नाम पाडे राजमल को आगरामे इनके समीप रहने का सौभाग्य 'घोषा' था जो माध्वी, जिनचरणों में रत द्वितीय लक्ष्मी प्राप्त हुआ था । वे इनका बहुत सादर करते थे। राजमल तथा सरस्वती के ममान थी। थोपा से टोडर नामका पुत्र को वहा रह कर साहु टोडर और अकबर बादशाह को उत्पन्न हुपा था। उनकी दो स्त्रिया थी। उनमे ज्येष्ठा नजदीक से देखने का अवसर मिला था। इसीसे उन्होंने का नाम 'हरो' था और उमके गर्भ मे ऋषि (ऋपभ) अपने जम्बूस्वामित्ररित मे, जो माहु टोडरमल की प्रेरणा दास नामका पुत्र उत्पन्न हपा था। जो राज्यसभा में से स० १६३२ में रचा गया था, अकबर की खूब प्रशसा मान्य था, उसकी रूपवती साध्वी पत्नी का नाम लालमती की गई है और शराबबन्दी तथा 'जजिया कर छोड़ देने था। साह टोडरमल को लघु पत्नी का नाम सम्भमती वाला लिखा है। था, उममे दो पुत्र उत्पन्न हुए थे। बडा पुत्र मोहनदास साहु टोडर अकबर के प्रिय पात्र तथा राज्य संचाजिसकी म्त्री का नाम माधुरी था और दूसरा पुत्र रूप- लन में सहयोग देने वाले मरजानी पुत्र साह गढमल और मागद था, जिमकी भार्या का नाम भाग्यवती था। कृष्णामगल चौधरी दोनों के प्रीतिपात्र तया कृष्णामगल १ माम्नाये तस्य रूयातो भुवि भरतममः पावनो चौधरी के सुयोग्य मत्री थे३। पाडे राजमल ने उनकी भूतलऽस्मिन् । केवल प्रशंसा ही नहीं की; किन्तु उनके धार्मिक कार्यों पासा सघाधिपोऽसौ कुलबलसबलस्तस्यभास्ति घोषा। का भी उल्लेख किया है, और आशीर्वाद द्वारा उनकी माध्वीथी वा द्वितीया जिनचरणरता वाचिवागीश्वरी व। मगल कामना भा प्रकट की। मानवीना मगल कामना भी प्रकट की है।। (क्रमश:) गर्भतस्या बभूव गुणगणसहितो टोडराख्यस्तु पुत्र ॥१४ । भार्या गेहे कमलवदना भागमती-भाग्यपूराः ॥१८ भार्येतस्य गुणाकरस्य विमले द्वे दान पूजारते ।। -जम्बूस्वामिपूजाप्रशस्ति, अजमेर, भंडार या ज्येष्ठा गुणपावना शशिमुखी नाम्ना हरो विश्रुता । नस्या गर्भसमुद्भवोऽस्ति नितरां योनन्दनः शान्तिधी। २ जंबू स्वामी चरित १-५६-५६, २७, २६ पृ०४-५ । मान्यो राजसभा-सुसज्जनसभा दासो ऋषीणा महान् ।।१५ ३ शाश्वत साहि जलालदीन पुरतः प्राप्त प्रतिप्ठोदयः । बल्लभा तस्य संजाता रूपरम्भा विशेषतः । श्रीमान् मगलवंश शारद शवणि विश्वोपकारोद्यतः । भर्तानुगामिनी साध्वी नाम्ना लालमती शुभा ॥१६ नाम्ना कृष्ण इति प्रसिद्धिरभवत् स-क्षात्र धर्मोन्नतेः। टोडरस्य नृपस्यवरागना लघुतरा-गुण-दान-विराजिता। तन्मात्रीश्वर टोडरोगुणयुतः सर्वाधिकारोद्यतः। विमलभापि कुसुम्भमती परा अनि पुत्रद्वयो वरनायको।१७ -ज्ञानार्णव संस्कृत टीका प्रशस्ति तेषा ज्येष्ठ सुकृत-निरतो, मोहनाख्यो विवेकी । ४ उग्रायोतक वशोत्थः श्रीपामा तनय कृती। भार्या [तस्य] सुकृत निरता, नामतो माधुरी या। वर्धता टोडरः साधू रसिकोऽत्र कथामृते ॥ कान्त्या कामो वचन-सरसो रूप रुक्मांगदोऽपि । -जंबूस्वामि चरित
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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