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________________ अग्रवालों का जैन सस्कृति में योगदान २७६ का उद्यापन कराइये । इस बात को सुन कर फेक अत्यन्त हुए है जिनका राज्यकाल स. १४८१ से १५१० तक हर्षित हुए। और उन्होने मूलाचार नाम का माचार अथ रहा है । श्रत पञ्चमी के निमित्त लिखा कर मुनि धर्मकीति के उक्त भट्टारक यश कीति ने हिसार निवासी अग्रवाल लिए अपित किया। धर्मकीर्ति के दिवगत होने पर उनके वशी गर्ग गोत्री साहदिबड्ढा के अनुरोध से, जो इन्द्रिय प्रमुख शिप्य मलयकीति को जो यम, नियम में निरत विषय-विरक्त, सप्त व्यसन रहित, प्रप्ट मूलगुण धारक तथा तपस्वी थे सम्मान पूर्वक समर्पित किया। उक्त तत्त्वार्थ श्रद्धानी अष्ट अग परिपालक, ग्यारह प्रतिमा महत्त्वपूर्ण प्रशस्ति मलयकीति द्वारा लिखी गई है जो ऐति- पाराधक और बारह व्रतो का अनुष्ठापक था, वि० सं० हासिक विद्वानो के लिए उपयोगी है१। क्योकि इसके १५०० में भाद्रपद शुक्ला एकादशी के दिन? 'इंदरि' प्रारम्भ मे जो गुरु परम्परा दी गई है वह विचारणीय है। (इद्रपूर) परगना तिजारा मे जलालखा५ (शय्यद मुबा अग्रवाल वशी साहू वील्हा और धेनाही के पुत्र हेम- रिकशाह) के राज्य में समाप्त किया था । राज, जिसे बादशाह मुमारख (सैयद मुबारक शाह) ने योगिनीपुर के निवासी अग्रवाल कुल भूषण गर्ग मत्री पर प्रतिष्ठित किया था । उमने योगिनीपुर गोत्रीय साह भोजराज के ५ पुत्रो मे से ज्ञानचन्द्र के विद्वान पुत्र साधारण धावक की प्रेरणा से इल्लराज सुत (दिल्ली) मे अरहत देव का जिन चन्यालय बनवाया था महिन्दु या महाचन्द ने स. १५८७ की कार्तिक कृष्णा और भट्टारक यश:कीति मे 'पाण्डव पुगण' वि० स० पञ्चमी के दिन मुगल बादशाह बाबर के राज्य कालक १४६७ सन् १४४० मे बनवाया था३ । भट्टारक यश. में समाप्त किया था । ज्ञानचन्द्र के तीन पुत्र थे, उनमें की ति काठासंघ माथुरगच्छ और १कर गण के भट्टारक गुणकोति (तपश्चरण से जिनका शरीर क्षीग हो गया ज्यष्ठ पुत्र सारगसाहु ने सम्मेदशिखर की यात्रा की थी। था) के लघ भ्राता और पट्टधर थे। यह उस समय के ४. विक्कमरायहो ववगय कालई', मुयोग्य विद्वान और कवि थे, तथा मस्कृत, प्राकृत और महिई दिय दुमुण्ण अकालई । अपभ्रंश भाषा के अच्छे विद्वान थे। इन्होने म० १४८६ भादवि सिय एयारसि गुरुदिणे, मे विबुध श्रीधर के मस्कृत 'भविष्यदत्त चरित्र' और हउ परिपूण्णउ उग्गतहि इणे॥ -हरिवंश पुराण अपभ्रंश भापा का 'सूकमालचरित' ये दोनो ग्रन्थ लिख- ५. Tarikhi Mubarakh Shah P.211 वाये थे। इन्होने अनेक मूर्तियो की प्रतिष्ठा कराई थी। ६. इंदउ रहिएउ हउ मंपण्णउ, यह ग्वालियर के तोमरवशी शासक राजा इंगरसिंहके समय रज्जे जलालखान कय उण्णउ ।। -हरिवश पराण ७. विक्कम रायहु ववगयकाल इं, १. देखो, अनेकान्त वर्ष १३ किरण ४ मे प्रकाशित रिस-वसुमर-भुवि-अकालइ । मलयकीति और मूलाचार प्रशस्ति । कत्तिय-पढ़म-पक्खि पंचमिदिण, २. तहो णदणु णदणु हेमराउ, हुउ परिपुण्ण वि उग्गतइ इणि । जिणधम्मोवरि जसु णिच्च भाउ। -जैनग्रथ प्रशस्ति सं० पृ० ११४ सुरताण मुमारख तणई रज्जे, ८. बाबर ने सन् १५२६ ई० मे पानीपत की लड़ाई में मतितणे थिउ पिय भार कज्जे ।। दिल्ली के बादशाह इब्राहीम लोदी को पराजित और -जनपथ प्रगस्ति सं० पृ० ३६ दिवगत कर दिल्ली का राज्यशासन प्राप्त किया था, ३. विक्कमरायहो ववगय कालए, उसके बाद उसने प्रागरा पर अधिकार कर लिया था महि-सायर-गह-रिसि अकालए। और सन् १५३० (वि० स० १५८७) मे प्रागरा में कत्तिय-सिय प्रमि बुह वासर, ही उसकी मृत्यु हो गई थी। इसने केवल पाच वर्ष हुउ परिपुण्ण पढम नदीसर ॥ ही राज्य किया है।
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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