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________________ २७२ अनेकान्त है। इस प्रकार कम से कम काले-काले सभा भरे, इस मलाशय तथा मूत्राशय पर भार रहता है। शुद्ध प्राण काल समाचारी की पूर्ण पाराधना नही हो पाती । सूत्र बाय का पर्याप्त प्रात्मीकरण फिर दिन भर में नहीं किया कतांग में लिखा है-मुनि दैनिक कार्य नियत सभय जा सकता। इस प्रकार अनेक बाह्य कारण हैं, जिनका पर करे । समय बदलने से बुभुक्षा के पूर्व खाने से अजीर्ण संयमी जीवन के निर्वाह के लिए पालन करना जरूरी है। होता है तथा अधिक विलम्ब करने से बात दोष बढ़ता है। प्राध्यात्मिक दृष्टि से समय पलटने से दिन भर की धीरे-धीरे पाचक-अग्नि मन्द पड़ जाती है। क्रियाए पहले पीछे हो जाती है। पागम अथो में आवश्यक पाणं पाण काले-पानी के समय पानी पीए। बहुत क्रियाओं के (छह आवश्यक) नियमित करने का महान् जल्दी पानी पीने से प्रामाशय की क्रिया (घोल) व्यव- पुण्य फल बताया है। तीर्थकर नामकर्म प्रकृति बन्धन के स्थित नहीं होती। अधिक समय तक पानी नहीं पीने से बीस कारणों मे काल समाचारी एक कारण है। जब तक मलावरोध तथा पित्त प्रकोप हो जाता है। प्रात्मानुशासन जागृत नही, तब तक परानुशासन (समय ___वत्थं वत्थ काले-वस्त्र जीर्ण होने पर नये वस्त्रों का कठोर नियंत्रण) अपेक्षित है। सघीय व्यवस्थाएं इसी को धारण करे । अथवा-ऋतु भेद से अचेल और सचेल आधार पर जन्म लेती है। बढ़ते हुए पात्म जागरण के धर्म को स्वीकार करे। सयणं-सयण काले-जल्दी सोने प्रभाव में ये ही विधि-विधान, चेतना शील प्राणी के साथ और जल्दी जागने से ब्रह्मचर्य की साधना में बहुत सहा- जड़ता का सम्बन्ध स्थापित करते है, अतः प्रत्येक साधक यता मिलती है। भोजन करने के नियमित तीन घण्टा का यह परम लक्ष्य होना चाहिए कि मुझे जल्दी-संपिबाद सोने से वीर्य वाहिनी नाड़ियो पर दबाव कम रहता क्खए अप्पग मप्पएण-मात्मा से प्रात्मा को पहचानना है। और वीर्य के बनने और पचने में सुविधा होती है। है। यही सत्य के साक्षात् का पुनीत-प्रशस्त पथ है। इस यह क्रम रात्रि को भोजन नहीं करने वालों के लिए व्यव- पथ तक पाने के लिए समय का नियंत्रण सर्वथा मान्य स्थित चल सकता है। प्रातः देरी से उटने से शुक्राशय, होना चाहिए। मनोनियंत्रण अनेकान्तात्मार्थ प्रसवफलभारातिविनते, बचः पर्णाकोणे विपुलनयशाखा शतयुते । समुतुङ्गे सम्यक् प्रततमतिमूले प्रतिदिनं, श्रुतस्कन्धे धीमानमयतु मनोमर्कटममुम् ॥१७०॥ -प्रात्मानुशासनम् अर्थ-जो श्रुतस्कन्धरूप वृक्ष अनेक धर्मात्मक पदार्थरूप फूल एवं फलो के भार से अतिशय झुका हुआ है, वचनों रूप पत्तों से व्याप्त है, विस्तृत नयो रूप सैकड़ों शाखायो से युक्त है, उन्नत है, तथा समीचीन एव विस्तृत मतिज्ञानरूप जड़ से स्थिर है उस श्रुतस्कंधरूप वृक्ष के ऊपर बुद्धिमान साधु के लिए अपने मनरूपी बन्दर को प्रतिदिन रमाना चाहिए।
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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