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________________ दिल्ली शासकों के समय पर मया प्रकावा २५९ ८. साह सलेम जांगीर सं. १६६२ मगसिर बवि १२ घागरामध्ये पाट बिता। पात० जहांगीर सलेमसाह २१११३ जहांगीर बादशाह ६५ ९. "सवत् १६८४ वर्षे जहांगीर काल कोधु कार्तिक किया गया है। हुमायूं ने अपनी खोई हुई दिल्ली की वदि प्रमासि रवी पाछि सुलतान बुलाखी नइ कातिक बादशाहत को पुन. प्राप्त किया। उसके मरने पर हेमू सुदि २ पातसाही दीधी। तथा लाहोर माहि पातसाही वनिये ने भी १६ दिन राज्य किया है। सहिरइयारि लीधी। कार्तिक सुदि ४ ने दिने काश्मीर पी६. इसके बाद अकबर और उसके पुत्र जहांगीर बलाखी प्रायो। कातिक सुदि १५ के दिनि सहिर इयार दिल्ली के तख्त के बादशाह हुए हैं। बदी कीया। माह वदि १० रवी बुलाकी बद किया। ७. नवें नम्बर के अन्तिम उल्लेख से कई महत्त्वपूर्ण माहवदि १२ दिने बुलाकी सहिरयार प्रमुख जीविया बातों पर प्रकाश पड़ता है, जो कि केवल चार मास के ववरोवीया कीधा ।। फहि छह ॥ लोक वादि ॥ माहसुदि भीतर ही घटित हुई हैं१० दिने प्रागरा माहि खुरम सुलतान पातसाही बिठा। १. सं० १६८४ के कार्तिक की अमावस को जहांगीर चारि माम माहि एह बात हुइ छइ ।" की मृत्यु हुई। तब कार्तिक सुदी २ को बुलाखी सुलतान ॥जेह वु देख्यु तेह वु लघु छि मही॥ को बादशाहत दी गई। इसी समय लाहौर में सहिरयार ऊपर के उद्धरगा मे प्रथम कालम का सख्या क्रम और से बादशाहत प्राप्त की। कार्तिक सुदी ४ के दिन काश्मीर अन्तिम कालम का विशेप विवरण मैंने दिया है। शेष मे बुलाखी पाया और उसने कार्तिक सुदी १५ के दिन सवं उद्धरण गुटके से ज्यो का त्यो दिया गया है। सहिरयार को बन्दी बनाया। पुनः माघ वदी १० के दिन परि लिखित दिल्ली शासक-नामावली से निम्न बुलाबी भी बन्दी बना दिया गया। माघ वदी १२ के बाते फलित होती है....... दिन बुलाखी और सहिग्यार आदि कितने ही लोगों को १. वि० स० ८०६ के पूर्व इस नगर का नाम इन्द्र- जीवित मार दिया । उक्त पट्टावली का लेखक लिखता है प्रस्थ रहा होगा। दिल्ली नाम इस वर्ष से ही प्रचलित कि ऐसा लोग कहते हैं । अर्थात् इममे सचाई का कितना हमा मानना चाहिए क्योंकि वशावली प्रारम्भ होने के प्रश है, यह मैं नहीं जानता। इसके पश्चात् माघ सुदी पूर्ववर्ती उल्लेख से स्पष्ट है कि स० ८०६ मे ही दिल्ली १० के दिन प्रागरा मे खुरंम सुलतान बादशाह की गद्दी नगर को बसाने के लिए खूटी गाडी गई है। पर बैठा, जो पीछे शाहजहा के नाम से प्रसिद्ध हुमा है। २. नम्बर दो के उल्लेख से स्पष्ट है कि स० १२०६ इस प्रकार कार्तिक से लेकर माघ तक चार महीनों के के चन सुदी २ को दिल्ली मे लडाई हुई उसमें तोमरवंशी भीतर उक्त घटनाएं घटित हुई हैं। हारे और चौहान वशी जीते। ___ सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जहांगीर की ३. नम्बर तीन के उल्लेख से प्रकट है कि म० मृत्यु से लेकर शाहजहां के गद्दीनशीन होने तक चार १२४६ मे दिल्ली में पुन लड़ाई हुई और उसमे पृथ्वीराज महीनो की घटनामों का उल्लेख करने के पश्चात् लेखक चौहान हार गया। रोहतक की ओर से पठानो ने प्राक्र- सबसे अन्त मे लिख रहा है कि "च्यारि माम मांहि एह मण किया और दिल्ली की गद्दी पर शहाबुद्दीन गौरी बात हुइ छइ । जेह Q देख्य, तेह वं लख्य छि सही। बैठा। इससे बिलकुल स्पष्ट होता है कि ये चार महीने की घट४. वि० सं० १५६७ के जेठ में पुन: लड़ाई हुई और नए लेखक के जीवन काल मे ही घटित हुई हैं और उसमें हमायं बादशाह हार गया और पालमसूर दिल्ली के इसकी सत्यता का प्रमाण भी इस उल्लेख के पूर्ववर्ती पंक्ति तहत पर बैठा, जिसे कि शेरशाह सूर भी कहा जाता है। से मिलता है जिसमें कहा गया है कि बुलाखी प्रादि को ५. इसके लगभग १५ वर्ष बाद ही दिल्ली मे फिर जीवित मार दिया गया, ऐसा लोग कहते हैं। इसका गड़बड़ मची। जिसका उल्लेख परान० ५ और ६ में अभिप्राय यही है कि उनके मारने को उसने अपनी पाखों
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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