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दिल्ली शासकों के समय पर नया प्रकाश
हीरालाल सिद्धान्त शास्त्री
जैन शास्त्र-भण्डारों में भारतीय इतिहास की कितनी एवं लोक-कल्याणकारी सामग्री विद्यमान है। विपुल सामग्री भरी पड़ी है, यह बात इतिहासज्ञ विद्वानों से अभी हाल मे ही ऐलक पन्नालाल दि० जैन सरस्वती प्रविदित नहीं है फिर भी उनकी छान-लीन के लिए भवन के प्राचीन हस्तलिखित गुटको की छानबीन करते हमारी भारत सरकार का ध्यान बिल्कुल भी नहीं गया हुए मुझे एक गुटके में "दिल्ली' स्थापना काल से लेकर है। कहने को तो वह धर्म-निरपेक्ष सरकार कही जाती जहांगीर बादशाह के काल तक के शासकों की नामावली है, पर उसमें साम्प्रदायिकता का कितना बोलबाला है, और राज्य-काल-गणना प्राप्त हुई है, जिसे अविकल रूप यह इसी से प्रकट है कि उसकी ओर से आज तक भी से यहा दिया जाता है। यह गुटका वि. स. १७१० के जैन शास्त्र-भण्डारों की शोध-खोज के लिए कुछ भी प्रयत्न फागुना सुदी ५ शनिवार का लिखा हुआ है । गुटके का नहीं किया गया है। प्रत्युत जनेतर विद्वानों के द्वारा जन वे० न०८४० है। इसकी पत्र-सख्या ७३ है। पत्रों का साहित्य साम्प्रदायिक कह करके उपेक्षित किया जाता रहा प्राकार ५४६ इंच है। प्रत्येक पृष्ठो मे १२ पंक्तियां है है। क्या जैन विद्वानों द्वारा लिखे जाने मात्र से ही उसमे और प्रति पक्ति मे १७-१८ अक्षर है। साम्प्रदायिकता की गन्ध आने लगती है? आज भारत वैसे तो दिल्ली बहुत प्राचीन है और यह पाण्डवों की अनेक भाषाएं ऐसी हैं जिनमे लिखने का श्रीगणेश की राजधानी रही है, पर तब इसका नाम 'इन्द्रप्रस्थ' करने वाले जैन विद्वान ही रहे हैं और उन भाषाओ का था। "दिल्ली' यह नाम कब पडा, इस विषय में इतिहासज्ञ इतिहास एवं साहित्य आज साम्प्रदायिक कहे जाने वाले का एक मत नहीं हैं। साथ ही 'दिल्ली' नाम रखे जाने के जैन विद्वानों की कृतियों से ही समृद्ध है।
पश्चात् मुगल काल तक कौन-कौन इसके शासक हए और भारत के प्राचीन इतिहास की प्राज तक जितनी भी उन्होंने कितने समय तक शासन किया, इसका क्रमबद्ध शोष-खोज हुई है, उसमे जैन विनों की रचनामो का, एवं परिपूर्ण उल्लेख अभी तक सामने नही पाया है। जैन शिलालेखों का, जैनमूर्तिकला एवं स्थापत्य कला का गुटके के इस विवरण से इस विषय पर बहुत कुछ नवीन कितना महान योगदान है। यह बताने की यहाँ प्रावश्य- प्रकाश पड़ेगा और भनेक ऐतिहासिक तथ्य निश्चय करने कता नहीं है । जैन शास्त्र-भण्डारों में विद्यमान पोथियों में सहायता प्राप्त होगी। गुटके का यह उपयोगी प्रश इस पौर गुटकों के भीतर अपरिमित ऐतिहासिक, राजनैतिक प्रकार है
१. स. ८० वर्षे वंशाख......१ बिल्ली नगर बस्यो, खूटी गाड़ी, राजा पाटि बिठा, ते प्रासामी संख्या पाट राजानी प्रासामी वर्ष मास दिन घड़ी विशेष विवरण १ राजा वीसल तूबर १६५ १८ १६ मनगपाल प्रथम २ राजा गागेय २१ ३ २८
गंगदेव राजा पृथ्वीमल
पृथ्वीराज तोमर प्रथम राजा जगदेव
२०७ २७ १५ राजा नरपाल टिप्पणी-१ यहाँ का पत्रांक टूटा है।
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