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________________ २३. अनेकान्त अधिक विकसित लगता है और उसी के अनुकरण पर की प्रतिमा स्थापित की गई थी१० । प्रादिनाथ११ पोर कुछ बाद में बना होगा।' 'उसे, प्रतएव, मूर्तिकला और शान्तिनाथ१२ मन्दिरों में तो प्रादिनाथ ही मूलनायक के स्थापत्य के प्रकार के आधार पर दसवीं शताब्दो के अन्त रूप में विराजमान है। का माना जा सकता है, जिसका समर्थन अभिलेख सबंधी अपनी प्रथम यात्रा में श्री कनिंघम इसे बौड मन्दिर प्रमाणों द्वारा होता है । मान बैठे थे; क्योकि (१) इसमें ग्रेनाइट और बलुवा स्तम्भों पर झूमती हुई घण्टियों और क्षुद्र घण्टिकामों पत्थर का उपयोग किया गया है जो उन दिनों प्राय. बौद्ध की प्रभुत सयोजना के कारण ही इमे घण्टइ मन्दिर मन्दिरों में ही उपयोग में लाया जाता था, (२) उन्हें कहते हैं। अभी अभी श्री नीरज जैन ने बताया है कि इस मन्दिर के पास बुद्ध की एक सूर्ति भी प्राप्त हुई थी इसे 'घण्टइ मन्दिर' नाम उसके निर्माण काल में ही प्राप्त और (३) उन्हें एक चतुर्भजी मूर्ति भी प्राप्त हुई थी जो हो गया था। उन्होंने खजुराहो के पुरातत्व संग्रहालय में उनके अनुसार बौद्ध देवी धर्मा१३ हो सकती थी१४ । कुछ ऐसी जैन मूर्तियां भी देखी हैं जिनपर 'घण्टइ' शब्द परन्तु पांच वर्ष बाद, १८७६-७७ मे वे श्री फर्गुसन के उत्कीर्ण है और जो उतनी ही प्राचीन है जितना स्वयं यह साथ यहां पूनः आये और तब, मन्दिर के चारों ओर मन्दिर । वैसे यह प्रथम तीर्थकर मादिनाथ को समर्पित मतियों और सामग्री की परीक्षा करके उन्होंने इसे जैन किया गया होगा; क्योंकि इसके महामण्डप के प्रवेश द्वार मन्दिर स्वीकार किया१५। सन् १८७६ में श्री स्मिथ ने के ललाटबिम्ब पर उनकी यक्षी, अप्टभुजी गरुड़वाहिनी भी उनका मत स्वीकार किया१६ । चक्रेश्वरी स्थित है, इसके अतिरिक्त, श्री कनिंघम को घण्टइ मन्दिर की प्रसिद्धि का सबसे बड़ा कारण है इस मन्दिर के पास प्रादिनाथ की एक मूर्ति भी मिली उसके स्तम्भ, जिनका अलकरण अद्भुत और भव्य बन थी जो इस मन्दिर की मूल प्रतिमा रही होगी। चौवीस पड़ा है। कीर्तिमुखों से झूमती हुई मालाएँ कही परस्पर तीथंकरों में पार्श्वनाथ ही सर्वाधिक लोकप्रिय हैं । 'जनेतर गठबन्धन कर रही हैं तो कही प्रतिमास्थानोंको आलिङ्गन जनता में इनकी विशेष ख्याति है। कहीं कहीं तो जनों पाश में लेने का प्रयत्न-सा कर रही है। प्रतिमास्थानों मे का मतलब ही पाश्र्वनाथ का पूजक समझा जाता है। कही साधू अङ्कित हैं तो कही मिथुन और कहीं विद्याधर। परन्त खजराहो मे, इसके विपरीत, आदिनाथ की लोक- मालामों की श्रृंखलाबद्ध और मण्डलाकार पंक्तियों से प्रियता सर्वाधिक थी; क्योकि यहां के अपने प्राचीन रूप में रूप में कीर्तिमुखो से झूमती हुई क्षुद्र घण्टि कामों की मालाए कीतिमखो से प्राप्त होनेवाले सभी जैन मन्दिरों मे उन्ही की प्रतिमा मूल नायक के रूप मे थी। पाश्वनाथ मन्दिर मे मूल १. एनुअल रि० भाग २, पृ० ४३२ और पागे। नायक के रूप में प्रादिनाथ की प्रतिमा थी जिसका चिह्न ११ इस मन्दिर के मूलनायक आदिनाथ की वर्तमान प्रतिमा प्राचीन नहीं है पर वह प्राचीन प्रतिमा भी वृषभ माज भी मूलनायक (पार्श्वनाथ) की पादपीठ पर प्रादिनाथ की ही रही होगी जिसके अनेक प्रमाण उत्कीर्ण है। किसी कारण से उसका स्थान रिक्त हो जाने से लगभग १०० वर्ष पूर्व उस रिक्त स्थान पर पार्श्वनाथ उपलब्ध हैं जिनपर फिर कभी प्रकाश डालूंगा। १२ इसका नाम शान्तिनाथ मन्दिर होनेपर भी इसमें ५ कृष्णदेव : दि टेम्पल्स आफ खजुराहो : ऐंश्येंट मूलनायक के रूपमें आदिनाथ ही विराजमान हैं। इडिया, भाग १५, पृ०६० । इस विरोधाभास पर भी फिर कभी प्रकाश डालने ६ वही। का विचार है। ७ मागे देखिये टिप्पणी संख्या २२ । १३ बौद्ध देवताशास्त्र में धर्मा नाम की कोई देवी नहीं है। ८ एनुअल रिपोर्ट्स, प्रायोलाजिकल सर्वे माफ इंडिया, १४ एनुअल रि०, भाग २, पृष्ठ ४३१ । भाग १०, पृ० १६. १५ वही, भाग १०, पृष्ठ १ । १ शास्त्री, पं० कैलाशचन्द्र, जैनधर्म, (१९५५)पृ०१५। १६ जनरल माफ ए. सी० माफ ब०, वही ।
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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