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________________ संस्मरण किन्तु पाप अपने निर्णय पर सुमेरुषत् मचल रहे। एक की थी और उनके भाई श्री नन्दलालजी ने उनकी ही कृशकाय निर्बल शरीर में इतनी दृढ़ता और प्रारब्ध कार्य प्रेरणा पर दस हजार रुपये भवन-निर्माण के लिए और भी को पूर्णरूप से सम्पन्न करने की अद्भुत क्षमता का मुझे दिये थे। इसके अतिरिक्त बाबूजी और उनके परिवार से उनके भीतर दर्शन हुमा। हजारों ही रुपये इसके मागे और पीछे और भी वीरसेवा सन् १९५४ के वीरशासन जयन्ती के दिन की बात मान्दर को प्राप्त हुए हैं । जो स्वयं देता है, वही वस्तुतः है। वीरसेवा मन्दिर का शिलान्यास २१ दरियागंज में दूसरों से दिलाने की सामर्थ्य रखता है। श्रीमान् साहू शान्तिप्रसादजी द्वारा होने वाला था, उसके शिलान्यास के पश्चात् इधर तो वीरसेवा मन्दिर के पूर्व वीरशासन जयन्ती मनाने का कार्यक्रम था। बाहर भवन-निर्माण का काम चालू हमा पौर उधर बाबूजी पश्चिम वाली गली में शामियाना खड़ाकर बैठने की सारी बीमार पड़ गये और स्वास्थ्य-लाभार्थ कलकत्ता चले गये। समुचित व्यवस्था भाषाढ़ सुदी १५ के शाम को की जा जब स्वास्थ्य कुछ ठीक हुमा और शीतकाल समाप्त होने चुकी थी। भाग्यवश रात्रि को मूसलाधार वर्षा ने सारे को माया, तब आप भवन निर्माण की गतिविधि प्रायोजन को पानी में बहा दिया। तब मापने रात भर देखने के लिए पुनः सन् ५५ के प्रारम्भ में दिल्ली प्राये । जागकर समीपवर्ती सुमेरु-भवन के मालिक ला० सुमेरुचंद्र उस समय तक लगभग निचली मंजिल बन कर तैयार हो जी से कहकर उनके मकान के नीचे का हाल खाली चुकी थी। जब मापने उसे देखा तो उसका रूप (प्राकार कराया और उसमें समारोह की समुचित व्यवस्था की। प्रकार) पापको पसन्द नहीं पाया, क्योंकि उसमें कोई बारिश में लथ-पथ होते हुए एवं दमा-श्वास से पीड़ित एक विशाल हाल न तो निचली मंजिल में निकला था होते हुए भी पाप रात भर सब सहयोगियों को साथ में और न ऊपरी मंजिल में ही निकल सकता था। तब लेकर जुटे रहे और यथासमय निश्चित कार्यक्रम को संपन्न आपने स्थानीय इंजीनियरों से सम्पर्क स्थापित कियाकरके ही मापने दम ली। इस समय की उनकी कर्तव्य- जिनमें राब. बा. उल्फतरायजी मेरठ और रा०ब. परायणता देखकर मैं दंग रह गया। बा० दयाचन्द्रजी दिल्ली प्रमुख थे। सारे नक्शे पर एक उक्त अवसर पर श्रीमान् साहूजी ने वीरसेवा मन्दिर / विशाल हाल बनाने की दृष्टि से पुनः विचार किया गया। |का शिलान्यास करने के पूर्व उसके भवन-निर्माण के लिए। मन्त में काफी तोड़-फोड़ के पश्चात् वर्तमान रूप स्थिर ग्यारह हजार रुपये देने की घोषणा की। बाबू छोटेलाल | हुप्रा । इस समय मापने अनुभव किया कि मेरे यहाँ बैठे जी घोषणा के सुनते ही तुरन्त उठकर बोले-क्या मैंने | बिना जैसा भवन में संस्था के लिए बनवाना चाहता हूँ, रुपया लेने के लिए पापके द्वारा शिलान्यास का प्रायोजन | वह नहीं बन सकेगा, तब पाप लालमन्दिर की नीचली किया है। पर जब माप स्वयं दे हो रहे हैं, तो मैं इतनी धर्मशाला में डेरा डालकर बैठ गये। रकम नहीं लूंगा। इस पर साहूजी ने पच्चीस हजार रु०/ इस समय तक गर्मी ने उग्ररूप ले लिया था। मगर देने को कहा, तो बाबूगी बोले-नहीं, मैं यह रकम भी माप प्रतिदिन प्रातः कार्य प्रारम्भ होने के पूर्व ही ७ बजे नही लूगा । तब साहू जी बोले-जो पाप क्या चाहते हैं ? लालमन्दिर से दरियागंज पहुँचते, काम को शुरू कराते, बाबूजो ने कहा-निचली मजिल बनने में जो कुछ भी सब और की देख-रेख करते और १२ बजे मजदूरों की खर्चा पायेगा, वह मापसे लूगा । साहूजी ने सहर्ष स्वीकृति रोटी खाने की छुट्टी होने पर माप स्वयं रोटी खाने लालप्रदान की और सारा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से मन्दिर माते । लिया-दिया सा खा-पी कर तुरन्त ही एक गुज उठा। पहली मंजिल के बनने में पैतीस हजार खर्च घंटे के भीतर वापिस चले जाते और फिर ५ बजे शाम हुए और साहजीने सहर्ष प्रदान किए यहां यह उल्लेखनीय तक काम-काज देखते । ईंट, चूना, सिमेंट, लोहा, लकड़ी है कि बाबू छोटेलालजी और उनके बन्धनों ने चालीस मादि जरूरी चीजों के मंगाने की व्यवस्था करते और हजार में उक्त भूमि खरीद कर वीरसेवा मन्दिर को प्रदान मजदूरों की छुट्टी हो जाने के पश्चात् भी सब सामान को
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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