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________________ एक संस्मरण नहीं पाया था किपर चला जाय कि सामने की पोर दृष्टि वे भी शायद वचन पालन में टालमटोलकर रहे थेपड़ी-एक लम्बे छरहरे बदन के भद्र पुरुष, बन्द गले का मौखिक 'हाँ, हो तो वह लोग कर देते थे किन्तु उनकी कोट, धोती, और सिर पर टोपी, मन्दगति से मेरी भोर योजना के प्रति कोई सक्रिय सहयोग तो क्या उत्साह भी बढ़ रहे थे। मन में हुमा कि कहीं यही तो बा० छोटेलाल प्रदर्शित नहीं करते थे। जी नही है ? इतने मे ही उनके शब्द 'ज्योतिप्रसाद जी ऐसे ही समय कलकत्ता में भयंकर दंगा हो गया और हैं ?' कर्णगोचर हुए अभिवादन प्रति अभिवादन हुआ। मुख्तार साहब के कलकत्ता के लिए रवाना होने की कुली से कहा सामान उठायो। स्टेशन के बाहर उनकी सूचना मिली । उन्हें स्टेशन से लाने का भार मुझे सौंपा घोड़ा गाड़ी खड़ी थी। नभवन प्राये। कमरा पहले से गया, शायद इसीलिए कि कोई, अन्य व्यक्ति तयार ही ही ठीक किया हुआ था। स्नान, भोजनादि हुमा । सब नही हमा। दाम, बस, रिक्शा सब बन्द थीं, बाजार बन्द बातों में उनकी प्रबन्ध पटुता व्यक्त थी। मध्याह्न के । मध्याह्नक थे, मार्ग निर्जन थे, सड़कों पर कड़े व गन्दगी के ढेर लग समय बाबूजी फिर मेरे कमरे मे पधारे, लगभग दो घट रहे थे, बीच-बीच मे कहीं-कही दगाइयों के गोल या पुलिस विभिन्न विषयो पर वार्तालाप हमा। प्रागामी तीन-चार अथवा मिलिटरी नज़र पाती थी। साहस करके गलियो दिनो मे वह अपने साथ ही बेलगछिया ले गये, स्व. बा. गलियो होता हुप्रा किसी प्रकार हबड़ा स्टेशन पहुंचा। निर्मलकुमार जी, सेठ बलदेवदास सरावगो प्रादि अपने सारा स्टेशन देख डाला मुख्तार सा० का पता नहीं था। धनी इष्टमित्रो एवं सहयोगियो के मकानो पर ले गये पूछताछ करने पर ज्ञात हुमा कि गाड़ी दगे के कारण उनसे परिचय कराया। कलकत्ता का प्रसिद्ध कातिकी यहाँ न पाकर स्याल्दह स्टेशन पर गई है। हताश वापस रथोत्सव निकट था उसके लिए अग्रेजी मे सचित्र परि लौटा । स्याल्दह का मार्ग ज्ञात नही था, भवन से कोई चायिका लिखने के लिए मुझे कहा-बंगाल के अग्रेज जैनी अथवा कर्मचारी साथ चलने को तैयार नही हुमा । गवर्नर तथा अन्य ऊँचे अधिकारियो को मार्ग मे एक महल प्रत: बाबूजी को सूचना देने के लिए उनके मकान की के बराडे से यात्रा दिखाने की योजना थी, यह पुस्तिका मोर चला । मार्ग में एक गली के मोड़ पर कुछ लोग विशेष रूप से उन लोगो मे ही बांटी जानी थी। पुस्तिका खडे थे. सामने थाने पर मशीनगर्ने लिए मिलिटरी खडा बनवाय, प्रस म स्वय बठकर छपवाई। थी, उसके प्रागे वाली सड़क बाबूजी के मकान की ओर बाबूजी व उनके मित्रो को वह पसन्द आई। जाती थी। देखते-देखते ही उस बड़ी सड़क पर एक फौजी लगभग डेढ़ मास मैं कलकत्ता रहा । बाबूजी से प्रायः जीप पाई कि किसी ने उस पर कुछ फेका और वह धड़नित्य ही एकाधिक बार भेट वार्तादि होती थी, वयाक्तिक घड़ जलने लगी, उधर मिलिटरी वालों ने चारो पोर प्रसग भी चलते थे, प्रायः कोई पर्दा न था, उनका एक गोलियां चलानी शुरू कर दी। जो लोग जहाँ खड़े थे प्रात्मीय जन ही बन चला था। किन्तु जिस कार्य के भाग चले । एक गोली मेरे घर के पास से ही निकली। लिए पाया था उसके प्रारम्भ होने की कोई सुरत नहीं किसी तरह भागकर भवन पाया। मन न माना. कुछ देर दिखाई दे रही थी। कई बार कहा कि कोई स्थान, बाद एक दूसरे मार्ग से फिर बाबूजी के यहां पहुंचा। अस्थायी ही सही, निश्चित करके, आवश्यक पुस्तक संग्रह मुख्तार साहब भी किसी तरह वहां पहुँच ही गये । इस पौर प्रारम्भिक कार्य शुरू कर दिया जाय । परन्तु वे अवसर पर कुछ प्रप्रिय प्रसंग भी हुमा, जो न लिखा टालते ही रहे । उन दिनो उनका स्वास्थ्य भी कुछ ढीला जाना ही उचित है। रहने लगा, जैसा कि उनके साथ गत पच्चीस वर्षों में दगा समाप्त हुमा, शान्ति स्थापित हुई। कई दिन बहुधा होता रहा है, उस समय मानसिक उद्विग्नता के मुख्तार साहब भी कलकत्ता रहे। मैंने उनसे कहा कि इस भी कतिपय वैयक्तिक कारण रहे प्रतीत होते है। उनके प्रकार व्यर्थ पड़े रहना तो मुझे अच्छा नहीं लगता। जिन सहयोगियों ने प्रार्थिक सहायता के वचन दिये थे अन्ततः एक दिन उन्होने स्वय ही कहा कि यहा का कुछ
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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