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________________ अनेकान्त नमि साधु के पश्चात् पश्चिमी शाखा में प्राकृत वैया- पैशाची ३२५ से ३२८ तक पालिका, पैशाची और ३२६ करणों में सर्वाधिक प्रमुख स्थान प्रा. हेमचन्द्र (१०८८. से तक अपभ्रंश भाषा का वर्णन है। प्रा. हेम११७२ ई.) को प्राप्त होता है । जिन्होंने अपनी प्राकृत चन्द्र ने अर्धमागधी के लिए 'पार्ष' शब्द का प्रयोग किया व्याकरण विस्तारपूर्वक १११६ सूत्रों में रचा, जो कि है। उन्होंने सम्पूर्ण विषय को बड़े सुन्दर ढंग और विधिउनका संस्कृत व्याकरण के साथ-साथ सलग्न है। उनके पूर्वक तौर तरीके से जमाया है तथा अपने पूर्ववर्ती प्राचार्यो व्याकरण का नाम "सिद्ध हैम शब्दानुशासन" है२ जो का कोई उल्लेख नहीं किया है कि किसका कौन सा कि राजा सिद्धराज की प्रार्थना पर रचा गया था और विषय प्रयुक्त किया है। प्रा० हेमचन्द्र की व्याकरण की उन्हीं को समर्पित किया गया था। सिद्ध हैम शब्दानु- टीकात्रों में दो टीकाएँ बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। एक तो शासन' पाठ अध्यायों में विभाजित है जिनमें से अन्तिम श्री उदय सौभाग्य गणि की 'व्युत्पत्ति दीपिका'४ है जिस अध्याय प्राकृत का है। प्रत्येक अध्याय चार पादो मे का नाम 'हैम प्राकृत वृत्ति ढुंढिका है। जिसमें प्राचार्य विभाजित है। यही व्यवस्था उन्होंने पाठवे अध्याय की हैमचन्द्र के नियमों को आधार मानकर एक एक व्युत्पत्ति भी की है जैसा कि संस्कृत व्याकरण के प्रथम से सातवें परक व्याख्या प्रस्तुत की गई है तथा दूसरी टीका है अध्यायो की है। प्रा. हेमचन्द्र के प्राकृत व्याकरण के प्राकृत प्रबोध नर (नरेन्द्र) चन्द्रसूरि कृत५। इन्होंने द में २७१ सूत्र है जिनमें स्वर भार व्यजन का ३. प्रा. हेमचन्द्र की प्राकृत व्याकरण का सपादन डा. विवेचन है। द्वितीय पाद में २१८ सूत्र हैं जिसमें अनेक पार. पिशेल ने किया था-Hemchandra's विषय वर्णित हैं । १-१२४ सूत्र तक संयुक्त व्यंजनों का Grammatik Der Prakrit Spranchen (fere वर्णन हैं। १२५ से १४ सूत्र तक संस्कृत शब्दों के लिए हैम चन्द्रम् अध्याय ८) I. Theil (Te und wortप्राकृत शब्दों का उल्लेख है। १४५ से १७३ सूत्र तक verzeichaniss) Halle 1877 and II. Theil प्रत्ययों का वर्णन १७४वे सूत्र में देशी शब्द और १७५ (uleersetzung und eralanterungen) Halle से २१८ सूत्र तक अव्ययों का वर्णन है। इस तरह इन A. S. 1880 (रोमन लिपि मे) संपादक एस. पी. दो अध्यायों में तो स्पष्ट रूप से स्वर शास्त्र का विवेचन पंडित, कुमारपाल चरित्र के परिशिष्ट सम्पादन में है। तृतीय पाद मे शम्दशास्त्र के और कुछ सीमा तक B.S. P. S. LX. बम्बई १९०० संपादक श्री पी० कारक प्रकरण के नियम उल्लिखित हैं । १ से १२६ सूत्रों एल. वैद्य देव नागरी लिपि में हेमचन्द्र की स्वयं तक विभक्तियों के नियम १३० से १३७ तक कारक के टीका प्रकाशिका सहित प्रथम भावृत्ति पूना १९२८, नियम और १३८ से १८२ सूत्रों तक धातु और कृदन्त द्वि० प्रावृत्ति १९३६ (कुमारपाल चरित का परिका वर्णन है। चौथे पाद में १ से २५६ सूत्रों तक धात्वा शिष्ट संपादक श्री एस. पी. पंडित B.S P.S. देश, २६० से २८६ सूत्रों तक प्रादेशिक भाषाएँ जैसे शौरसेनी २८७ से ३०२ तक मागधी ३०३ से ३२४ तक * ४. पिशेल Gram, PKT. S,p. 29 १. देखो जी बुल्हर कृत Uber Das Leben Das ५. पीटसन को प्रथम रिपोर्ट-१८८३) पृ० Jaina Menches Hemacandra fazar P55€ नं० ३०० नर (नरेन्द्र) चन्द्रसूरि मलधारी के शिष्य श्री मणिलाल पटेल द्वारा जर्मन से अनूदित 'हेमचन्द्र थे और सं० १६४५%१५८६ में टीका रची थी। का जीवन" S. J. S, (No II) शान्ति निकेतन Aufrechst मे प्राकृत प्रबोध के कर्ता का नाम १९३६ नरचन्द्र लिखा है जबकि भंडारकर के सूचीपत्र मे २. प्रा. हेमचन्द्र ने अपनी व्याकरण की दो टीकाएँ उन्हें नरेन्द्र चन्द्रसूरि लिखा है। देखो A cata स्वयं लिखी हैं। १. बृहती, २. लघुवृत्ति (जिसे logue of collections of M.S.S." डेकन कालेज प्रकाशिका भी कहते हैं)। पूना बम्बई १८८० पृ० ३२८ नं. ३०० LX).
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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