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________________ राजस्थान का जैन पुरातत्व लोद्रवा के नष्ट हो जाने पर जैसलमेर को राजधानी बनाई महाराजा रामसिंह ने तुरासान से लूटी हुई सिरोही की गई । लक्ष्मणसिंह के राज्य में १४१६ ई. मे चिंतामणि १०५० जैन मूर्तियाँ प्रकार से प्राप्त करके नष्ट होने से पाश्र्वनाथ का मन्दिर बना और मन्दिर बनने के पश्चात बचाई। इसका नाम राजा के नाम पर लक्ष्मणविलास रखा गया। जयपुर राज्य के कच्छावा राजों की सरक्षता में भी लक्ष्मणसिंह के पश्चात् उसका पुत्र वैरीसिंह राजा बना जैनधर्म ने अधिक उन्नति की। यहाँ करीब ५० जन जिसके समय में संभवनाथ का मन्दिर बना। इस मन्दिर दीवान हुए जिनकी प्रेरणा से अनेक अथो की प्रतियाँ की प्रतिष्ठा तथा अन्य उत्सवो मे राजा ने स्वय भाग लिखी गई, मूतियो की प्रतिष्ठा हुई तया नवीन मन्दिर लिया। उसके बाद चाचिगदेव, देवकरण तथा अन्य बनाये गये। इस राज्य के छोटे छोटे ठिकानों में भी राजामों के समय में भी मन्दिरों का निर्माण हुमा तथा जागीरदारो की प्रेरणा से जैनधर्म का प्रभाव बढ़ा। १५६१ उनमे अनेक मूर्तियों की प्रतिष्ठा हुई। पादुकायें भी पूजने ई० मे थानसिंह ने सघ निकाला पोर पावापुरी मे सोडसके लिए बनाई गई४१ । बड़े बड़े ग्रन्थ-भण्डार सस्कृति की यन्त्र की प्रतिष्ठा की। १६०५ ई० म चपावती (चाकसू) रक्षा करने के लिए स्थापित किये गये । के मन्दिर के स्तम्भ का निर्माण किया गया । मोजमाबाद जोधर गौरीमा में सोने मे जेता ने इसी राजा के राज्य मे १६०७ ई० मे सैकड़ों में जैनधर्म का उत्थान हुआ। नगर मे जिसका प्राचीन भात मूर्तियों की प्रतिष्ठा को। मिर्जा राजा जयसिंह के मन्त्रा नाम वीरमपुर था, जैनधर्म का पन्द्रहवी व सोलहवी मोहनदास ने मामेर में विमलनाथ का मन्दिर बनवाया शताब्दी में अच्छा प्रभाव रहा। राउल राऊड़, कुषकरण और उसे स्वर्णकलश से सुशोभित किया। सवाई जयसिंह और मेघविजय के समय जैन मन्दिरों के कुछ हिस्सों को के समय रामचन्द्र छाबड़ा, राव कृपाराम तथा विजयराम सुधरवाया गया। १६१२ ई० मे सूर्यसिंह के राज्य मे छाबड़ा नाम के तीन दीवान हुए जिन्होंने जैनधर्म का वस्तुपाल ने पाश्र्वनाथ के मन्दिर की प्रतिष्ठा की। १६२६ प्रचार किया। रामचन्द्र ने शाहबाद मे जैनमन्दिर बनाया। ई० में जयमल ने गजसिंह के समय जालोर के प्रादिनाथ. तथा राव कृपारामन चाकसू तथा जयपुर में जैन मन्दिर पार्श्वनाथ तथा महावीर के मन्दिरो मे मूर्तियों की स्थापना बनाये । सवाई माधोसिंह के समय बालचन्द्र छाबड़ा ने की। इसी राजा राज्य नेपाली तथा पुराने जनमन्दिरों को ठीक करवाया तथा नये मन्दिरो को मेहता में भी प्रतिया ह मार बनवाया । केशरीसिंह कासजीवाल ने जयपुर में सिरमोरियो महाराजा अभयसिंह के राज्य में प्रतिष्ठा महोत्सव मनाया का मन्दिर बनवाया पोर कन्हैयाराम ने वेदों का चैत्यालय गया। यहाँ के दीवान रामसिंह ने साहो का मन्दिर का निर्माण करवाया। नन्दलाल ने जयपुर पौर सवाई बनाया तथा उसमे अनेक मूर्तियों की प्रतिष्ठा की । - माधौपुर मे जैन मन्दिर बनवाये । पृथ्वीसिंह के राज्य में बीकानेर के शासक बीका जी और उसके उत्तरा- पुरन्द्रका सुरेन्द्र कीर्ति के उपदेश से अनेक मूर्तियों की प्रतिष्ठा धिकारी जैनधर्म और जैन साधुनों के प्रति श्रद्धा रखते हुई । बालचन्द छाबड़ा का पुत्र रामचन्द जगतसिंह थे। उनके समय में भाडासर, चिन्तामणि और नेमिनाथ का मुख्य मन्त्री था और उसने भट्टारक सुरेन्द्रकीति के के मन्दिर बीकानेर में बने । कर्मचन्द्र की प्रार्थना पर उपदेशों से जूनागढ़ तथा जयपुर में मूर्तियों की प्रतिष्ठा की। बखतराम भी जो जगतसिंह का दीवान रहा ४१. नाहर जैन लेख संग्रह, नं० २११२ जयपुर के चौड़े रास्ते में यशोदानन्द जी का जैन मन्दिर बनवाया।*
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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