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________________ गंधावल और जैन मूर्तियां एस० पी० गुप्ता और बो० एन० शर्मा गन्दावल मध्यप्रदेश के देवास जिले मे सोनकच्छ नामक तहसील के मुख्यालय (हेडक्वार्टर) मे लगभग पाच मील उत्तर की ओर एक छोटी नदी के तट पर स्थित है जो काली मिन्ध में गिरती है। यहाँ पर जैन तथा हिन्दुप्रो — दोनो ही धर्मों या मतावलम्बियों के देवान्नयों के अवशेष प्राप्त है। गन्धावल ग्राम के निवामियां के घरो कुपो, उद्यानों एवं खेतो मे बिखरी हुई इन प्रस्तर प्रतिमानों को सख्या लगभग दो सी है । गन्थावल एक ऐसे प्राचीन व्यापारिक मार्ग पर अवस्थित है जहाँ से कि एक मोर उज्जैन, नागदा, आदि को सड़के जानी है। दूसरी घोर देवास और इन्दौर को तथा तीसरी प्रोर भोपाल एव सांची की ओर (विदिशा भेलसा की ओर मे) मिलाती है । यह स्थान निशानी राजा के प्रतयंत रहा है। जिसका एक मात्र प्रमाण यहाँ के प्राचीन मन्दिर एव मूर्तिया है। मध्यकाल मे गन्धावन वाणिज्य का भी प्रमुख केन्द्र था और यहाँ के अधिकतर मन्दिर व्यापारी वर्ग द्वारा इकट्ठी की हुई धनराशि से बनवाये गये प्रतीत होते है ! परन्तु अभाग्यवश ये सुन्दर स्थल प्राज भग्न है. और यहाँ के भग्नावशेषों की सुरक्षा के लिए भी कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है । किवदन्तियों के अनुसार किसी समय महाराज गर्दभिल्ल यहा शासन करने थे। उन्हीं के नाम पर यह स्थान 'गन्धावन' कहा जाने लगा । यहाँ पर बने एक देवालय में कुछ समय पूर्व एक पापाण प्रतिमा बनी थी जिमको इस ग्राम के निवासी महाराज गर्दभिल्ल की प्रतिमा बताने है। कुछ समय पूर्व मध्य प्रदेश के भूतपूर्व मी डा० कं नागनाथ काटजू इस स्थान को देखने गये थे। उपर्युक्त देवालय के सामने उन्होंने एक ऐसा पाषाण पट्ट देना जिसके दोनों धोर हो मूर्तिया उत्कीर्ण है। हम पर एक मोर गरुड़ासन लक्ष्मीनारायण चित्रित है और दूसरी पोर धन्य लघु मूर्तियों के साथ-साथ भूतिय के ऊपरी भाग मे गन्धवों का भी चित्रण किया गया हैं । डा० काटजू महोदय ने केवल इसी के एक मात्र प्राधार पर गन्धावन के स्थान पर इसे गन्धर्वपुरी की संज्ञा प्रदान की और तब से इस क्षेत्र के भी कुछ लोग इसे गन्धर्वपुरी कहने लगे हैं। किन्तु उपर्युक्त दोनों ही प्रमाण इतने काट नहीं है कि यह कहा जा सके कि शताब्दियों पूर्व इस स्थान का नाम गन्धावल अथवा गन्धर्वपुरी रहा होगा । और जब तक हमे शिलालेखादि का कोई अन्य प्रमाण इम स्थल से इस सम्बन्ध में प्राप्त नहीं हो जाता, यह सदिग्धता बनी ही रहेगी ! जैसा कि हम ऊपर बता चुके है कि इस स्थान पर दर्जनों की सख्या मे जैन प्रस्तर प्रतिमाएं बिखरी हुई है जो इस समय भी वहां देखी जा सकती है, परन्तु यहाँ हम यहाँ मे उपलब्ध कुछ महत्वपूर्ण प्रतिमायो का संक्षेप मे वर्णन एवं उनका चित्रण 'अनेकान्त' के पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत कर रहे है। यहाँ यह बताना भी प्रावश्यक. है कि मध्य युग में यहाँ जैनियो का दिगम्बर सम्प्रदाय सम्भवतः अधिक प्रभावशाली था; क्योंकि प्राप्त प्रतिमाएँ यद्यपि पर्याप्त रूप से खण्डित हो गई है तो भी खड्गासन नग्न मूर्तिया ही यहाँ अधिक है। १. तीर्थंकर प्रतिमा गन्धावन की प्रतिमानों में तीर्थंकर की यह विशाल प्रतिमा जो लगभग माढ़े ग्यारह फुट ऊँची है अपना विशेष स्थान रखती है । प्रस्तुत प्रतिमा में जो यद्यपि अत्यधिक खण्डित है, जैन प्रतिमा की प्रायः सभी विशेषताओं का १. यह विशाल प्रतिमा अपने प्रकार की केवल एक अकेली ही नहीं हैं। इससे भी कहीं विशाल प्रतिमानों मे श्रवणबेलगोला की बाहुबलि (५७ फीट) तथा अनवर क्षेत्र में कई अत्यन्त विशाल प्रतिमाएँ हैं !
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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