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________________ माचार्य सकलबीति और उनकी हिन्दी सेवा में महसाणा में हो गया था जिसकी स्मृति स्वरूप एक बालबीजी प्रस्तर पीठिका महसाणा में माज भी विद्यमान है। जीव दया दुइ पालोयिए मन कोमल कीजह । सीखामण-रास प्राप सरीखा जीव सबै मत माहि परीजह ।। नाहण धोवण काज सवे पाणी गली (भ. सकलकोतिकृत) कर प्रनगलि नीरिन कीलीयिए। दांतणमनमोउ ।। पणमवि जिण वरवीर सीखामण कहिस्यू। गाईघाईन मारीयिए सविचुपद जाणु समरवि गौतम धीर जिणवाणी भणिस्यू ॥१॥ कण सलकण मन विणज करु मन जिम वा प्राणु । लाख चउरासीय जीव फिरतो मानवभव लाघउ कुलवंतु । पशु गाढा नवि वाधीयिए नवि छेद करीजह । इन्द्रीय प्रायु निगमयदेह बुद्धि विना विफला सब एह ॥२॥ मान उपहिसू लोभ करी नवि भार करीजा ॥२॥ एकमनां गुरु वाणी सुणीजा बुद्धि विवेक सही पामीजह। नरिणा लहिणइ देवइ काजिकरी लांघण मकराव च्यारिहाथ जोवा पढऊ कुशास्त्र मकानिय सुणु णमोकार दिन रमणीय गिणु। भूमि पग बाउ मावु । एकमना जिणवर पाराधु स्वर्ग भुगतिजिय हेला साघु।। फामू माहार जाग लह मन मोफणी रांधु। जासु शेख जेबीजादेव तिण तणी नवि कीजह सेव । प्रगी ठूमन तहि करु मन मायुध साधु ॥३॥ गुरु निग्रंथ एक प्रणमीजह कुगुरुतणी न वि सेवा कीजह।४। लाकउ नवि कपा वीयिए नीरा न चबाबु । घरमवतनी सगतिकरु पापी सगति तह्मि परिहरु । सगाह तण वीवाह सही मकरु मकरावु । जीवदया एकधर्म जरीजह तु निश्चय संसार तरीजइ ॥५॥ लोह मध विष लाख ढोर व्यवसा छडावु । श्रावक धर्म करु जगि सार नहिल्यु तह्मि सयम भार । मीणमहूडा कदमूल माखण मत वावु ॥४॥ धरम प्रपचि रहित ताि करू कुधर्म सविदूरिह परिहता। कटोल सावू पानधाह घाणी नवि कीजह । जीवेत माय बार स्य नेह धरम करावु रहित सदेह । खटक शाल हयीमार पागि मागी नवि दीजह । यू पाहा पूठिइ जे काई कीजइ ते सहूइ फोक हारीजइ ।। खटक शाल नारीय बालक री सकरी कातर मन मारु । दृढ़ समकित पालु जगिसार मूढ़पणू मकु सवि वार । तिलक वट, जलि, नवि घालीयिा मू पां मन सारु ॥५॥ रोग क्लेश ऊपन्ना जाण धरम करू सकति परिणामाणी।। जूठा बचन न बोलीयिर करकम परिहरु । मडल पूछ करुहइ नवि कीजइ मरम म बोलु कहि तण चाडी मन करु । करम तण फलनवि छुटीजइ। धरम करति नवि बारीयिए नवि पर निदीजह । प्राविइ मरणि तह्मोदढ़ होज्यो दीक्षा प्रण सण विधिलेज्यो। पर तणा गुण ढाकी प्रापतणा गुण नवि बोलोजा ॥६॥ धरम करीनइ फल मन मागु मारगि भुगति तणइ तह्मलागु॥ नीलज धे नवि बोलीयिए हासा मन कर । कुल प्राब्यू मिथ्यात न कोजइशका सविटाली घालीजइ।१० प्राल न दीजइ कीण परिईनवि दूषण धरु । ये समकित पालइ नर नारिते निश्चित रसिई संसारि। प्रार छयू नवि बोलीयिए नवि नात करीजइ । जे मिथ्यात धणेरु करिस्यूँ सिइते ते ससारिघणू बूडेमि ।११। गालि न दीजइ वचन सार मीठू बोलीजह ॥७॥ ॥ वस्तु॥ परिधन सवि तहि परिहरुए चोरी नवि कीजह । जीव राखह जीव राखहु काय छह भेदि मशीय लक्षच्युह चोरी प्राणी वस्तु सही मूलिईनवि लीज। भाग मीय। अधिक लेई नइ कीण परई उडू मन पालु । एक चित्त परिणाम प्राणी प्रचालत वइसतसू वताहा ॥ सरवर विसाहाणा माहि सही निरवर मन धालु ।।।। जीव जातिसंठाण जाणीय ये नरमन कोमल करीय। पणिमोसु परिहरुए पडायूमन लेज्यो। पालइ दया अपार सार सौख्य सवि भोगवियते, कूर प्रलेप्पू प्रमत करुए मन परराहि केज्यो। ते तरसिंह ससार । घर नारि विन नारि सवि माता सम जाण ।
SR No.538019
Book TitleAnekant 1966 Book 19 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1966
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size23 MB
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