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वृषभदेव तथा शिव-सम्बन्धी प्राच्य मान्यताएँ
___ डा. राजकुमावार जैन एम० ए० पी-एच० डो.
वैदिक हर के विकसित रूप
शतपथ ब्राह्मण १ मे कद्र के जो-रुद्र, शर्व, पशुपति, मानिन किया है कि रुद्र झझावात के 'ख' का प्रतीक है। उग्र, प्रशनि, भव, महादेव, ईशान, कुमार-ये नौ नाम डा० मेक डौनल ने रुद्र और अग्नि के माम्य पर दृष्टि हैं, वे अग्निदेव के ही विशेषण उल्लिखित किये गये हैं और रखते हए कहा कि रुद्र विशुद्ध झंझावात का नहीं; अपितु 'ऋषभदेव तथा वैदिक अग्निदेव' में उपस्थित किये गये विनाशकारी विद्यत के रूप में झझावात के विध्वसक विवरण मे स्पष्ट है कि भगवान ऋषभदेव को ही वैदिक स्वरूप का प्रतीक है६ । श्री भाण्डारकर ने भी कद्र को प्रकृति काल मे अग्निदेव के नाम से अभिहित किया जाता था, की विनाशकारी शक्तियो का ही प्रतीक माना है६ । अग्रेज फलतः रुद्र, महादेव, अग्निदेव, पशुपति प्रादि ऋपभदेव विद्वान म्यर की भी यही मान्यता है । विल्मन ने ऋग्वेद के ही नामान्तर है।
की भूमिका में भद्र को अग्नि अथवा इन्द्र का ही प्रतीक वैदिक परम्पग में वैदिक रुद्र को ही पौराणिक तथा माना है। प्रो. कीथ ने रुद्र को झझावात के विनाशकारी प्राधुनिक शिव का विकसित रूप माना जाता है। जब कि रूप का ही प्रतीक माना है. उसके हितकर रूप का नही। जैन परम्परा में भगवान ऋषभदेव को ही शिव, उनके मोक्ष इसके अतिरिक्त रुद्र के घ तक बाणों का स्मरण करने हए मार्ग को शिवमार्ग तथा मोक्ष को शिवगति कहा गया है। कुछ विद्वानो ने उन्हे मृत्यु का देवता भी माना है और यहां रुद्र के उन समस्तक्रम-विकसित रूपों का एक सक्षिात इसके समर्थन में उन्होने ऋग्वेद का यह मून प्रस्तुत किया विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है। ऋग्वेद में रुद्र मध्यम है, जिममे रुद्र का केशियो के साथ उल्लेख किया गया है। श्रणी के देवता हैं उनकी स्तुति में तीन पूर्ण सूक्त को न्द्र की एक उपाधि 'कपदिन' है१० । जिसका मथ गये हैं। इसके अतिरिक्त एक अन्य सूक्त में पहले छह मत्र है जटाजूटधारी और एक अन्य उपाधि है 'कल्पली किन्'११ रुद्र की स्तुति में हैं और अन्तिम तीन सोम की स्मृति जिसका अर्थ है, दहकने वाला, दोनों की मार्थकता रुद्र के में एक अन्य सूक्त में रुद्र और सोमका साथ स्तवन किया नेशी तथा अग्निदेव रूप में हो जाती है। गया है ३ अन्य देवतामों की स्तुति में भी जो सूक्त को अपने मौम्यरूपो में रुद्र को 'महाभिषक' बतलाया गया है गये हैं उनमें भी प्रायः रुद्र का उल्लेख मिलता है, इन जिमकी औपधियाँ ठण्डी और व्याधिनाशक होती है। रुद्र सूक्तों में रुद्र के जिस स्वरूप की वर्णना हुई है, उसके अनेक मूक्त में रुद्र का सर्वज्ञ वृषभ रूप से उल्लेख किया गया है चित्र हैं और उनके विभिन्न प्रतीकों के सम्बन्ध में विद्वानों और कहा गया है१२ 'हे विशुद्ध दीप्तिमान मर्वज वृषभ, की विभिन्न मान्यताए हैं । रुद्र का शाब्दिक अर्थ, मरुतो ५. मेकडौनल · वैदिक माईथोलोजी, पृष्ठ स०७८ के माथ उनका संगमन, उनका बभ्र वर्ण और सामान्यतः ६. भाण्डारकर : वैष्णविज्म शैविज्म उनका क्रूर स्वरूप इन सबको दृष्टि में रखते हुए कुछ ७. म्यर : मोरिजिनल संस्कृत टेक्स्टम, विद्वानों की धारणा है कि रुद्र झझावान के 'ख' का प्रतीक ८. विल्सन : ऋग्वेद भूमिका हैं.४ जर्मन विद्वान वेबर ने रुद्र के नाम पर बल देते हुए मनु- ९. कीथ : रिलिजन एण्ड माइथोलोजी श्राफ दी ऋग्वेद,
पृष्ठ सं० १४७ १. ऋग्वेद : १. ११४, २, ३३.७, ४६
१०. ऋग्वेद : १. ११४, १ और ५ २. ऋग्वेद १, ४३
११. वही : १, ११४; ५ ३. वही : ६,७४
१२. एव बभ्रो वृषभ चेकितान यथा देव न हयाषं न हसि ४. वेबर इण्दोश स्टूडीन, २, १६.२२
ऋग्वेद : २, ३३, १५